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जम्मू-कश्मीर की आरक्षण पॉलिसी पर मचा बवाल, CM उमर अब्दुल्ला के खिलाफ बेटे भी प्रदर्शन में शामिल

December 23, 2024

जम्मू: जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के सरकार बनने के कुछ ही समय बाद अपनी ही पार्टी और अपने ही सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और श्रीनगर से लोकसभा सदस्य आगा सैयद रुहुल्लाह मेहदी ने सोमवार (23 दिसंबर) को आरक्षण नीति को लेकर मुख्यमंत्री अब्दुल्ला के निवास के बाहर शांति पूर्ण विरोध प्रदर्शन किया. दरअसल, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मेहदी ने रविवार को प्रदर्शन की घोषणा करते हुए कहा था कि वह जम्मू और कश्मीर में मौजूदा आरक्षण नीति के खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध करेंगे, जो अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद लागू की गई थी.

सामान्य वर्ग का आरक्षण घटाकर आरक्षित श्रेणियों के लिए बढ़ाया गया. पहाड़ी जनजाति और तीन अन्य समूहों के लिए 10% आरक्षण, जिससे अनुसूचित जनजाति (ST) का कुल आरक्षण 20% हो गया. ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए 8% आरक्षण के साथ 15 नई जातियों को शामिल किया गया.

मार्च 2023 में प्रशासनिक परिषद ने जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2023 को मंजूरी दी. SEBC आयोग की सिफारिशों के आधार पर ओबीसी और अन्य श्रेणियों के लिए आरक्षण संरचना में संशोधन किया गया. इसे चुनावी प्रक्रिया से पहले लागू किया गया, जिसके बाद राजनीतिक और सामाजिक तौर पर जमकर आलोचना हुई.

प्रदर्शनकारियों में छात्रों के साथ अब्दुल्ला की अपनी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य और सांसद रूहुल्लाह मेहदी भी मौजूद थे. रविवार को एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने आरक्षण नीति में तर्कसंगतता की मांग के लिए सीएम के आवासीय कार्यालय के बाहर गुपकर रोड पर विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था. विपक्षी पीडीपी के नेता वहीद पारा और इल्तिजा मुफ्ती के साथ-साथ अवामी इतिहाद पार्टी के नेता शेख खुर्शी भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए हैं.


इन सबके अलावा, अब्दुल्ला के बेटे भी मेहदी और छात्रों के साथ शामिल होने के लिए बाहर आए और प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुटता दिखाई. एनसी सांसद रूहुल्ला मेहदी ने कहा “मुझे बताया गया है कि निर्वाचित सरकार और अन्य अलोकतांत्रिक रूप से थोपे गए कार्यालय के बीच कई मुद्दों पर कामकाज के नियमों के वितरण को लेकर कुछ भ्रम है और यह विषय उनमें से एक है। मुझे विश्वास है कि सरकार जल्द ही नीति को तर्कसंगत बनाने का निर्णय लेगी।”

जम्मू-कश्मीर सरकार ने 10 दिसंबर को नौकरियों और प्रवेश में आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया. इस पैनल में स्वास्थ्य मंत्री सकीना इटू, वन मंत्री जावेद अहमद राणा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सतीश शर्मा शामिल हैं. अभी तक समिति की ओर से अपनी रिपोर्ट पेश करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है. दो दिन बाद, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने आरक्षण नीति को चुनौती देने वाली एक नई याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से तीन सप्ताह की समयावधि के भीतर जवाब मांगा.

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रविवार को कहा कि उनकी सरकार ने आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए एक समिति गठित की है, लेकिन वह इस मामले में कोर्ट के निर्देशों का पालन करेगी. अब्दुल्ला ने कहा साफ किया कि उनकी पार्टी जेकेएनसी अपने घोषणापत्र के सभी पहलुओं की समीक्षा करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. अब्दुल्ला ने कहा कि नीति को उच्च न्यायालय में भी चुनौती दी गई है, उन्होंने कहा कि उनकी सरकार निश्चित रूप से अंतिम कानूनी विकल्प समाप्त होने पर किसी भी निर्णय से बंधी होगी.

मुख्यमंत्री ने आगे कहा, “मेरे संज्ञान में आया है कि आरक्षण नीति को श्रीनगर में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई जा रही है. शांतिपूर्ण विरोध एक लोकतांत्रिक अधिकार है और मैं किसी को भी इस अधिकार से वंचित करने वाला आखिरी व्यक्ति होऊंगा, लेकिन यह जानते हुए विरोध करें कि इस मुद्दे को नजरअंदाज नहीं किया गया है या दबाया नहीं गया है.” उन्होंने लोगों को आश्वासन दिया कि सभी की बात सुनी जाएगी और प्रक्रिया के बाद निष्पक्ष निर्णय लिया जाएगा.

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