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किसान ने इस तकनीक से बचाया पानी और खेती से कमा रहा 2.5 करोड़

December 23, 2024

फरीदकोट: आज के समय एक बार फिर युवा खेती की ओर रुख कर रहे हैं. आज हम आपको एक युवा किसान की कहानी बताते हैं जो खेती से बंपर कमाई कर रहे हैं. बता दें कि दस साल पहले जब उनके साथी विदेश जाकर डॉलर कमाने के सपने देख रहे थे, तब बोहर सिंह गिल उर्फ़ यदवीर सिंह गिल ने अपने वतन और पुश्तैनी काम खेती को चुना. पंजाब के फरीदकोट जिले के सैदेके गांव के इस 34 वर्षीय किसान ने आज खेती से वह मुकाम हासिल किया है जो उनके विदेश गए साथियों के डॉलर की कमाई के बराबर है.

रिपोर्ट के अनुसार, बोहर ने अपनी पुश्तैनी 37 एकड़ जमीन से शुरुआत की और धीरे-धीरे 250 एकड़ जमीन पट्टे पर लेकर खेती का दायरा बढ़ाया. उन्होंने परंपरागत गेहूं और धान से शुरुआत की, लेकिन जल्द ही आलू की खेती में कदम रखा. पहले 2 एकड़ पर आलू उगाने के अच्छे नतीजों ने उन्हें गेहूं छोड़कर आलू पर ध्यान दिया. बता दें कि आज वह 250 एकड़ में डायमंड और एलआर जैसे शुगर-फ्री आलू की किस्में उगाते हैं.


दो नहरों के बीच स्थित इस गांव में पानी की कमी की समस्या को ध्यान में रखते हुए, बोहर ने दो साल पहले स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली अपनाई. यह प्रणाली न केवल 50% पानी की बचत करती है, बल्कि मिट्टी को भी समृद्ध करती है. उन्होंने बताया, “स्प्रिंकलर से सिंचाई के दौरान पानी के दबाव से हवा में मौजूद नाइट्रोजन मिट्टी तक पहुंचती है, जिससे यूरिया की खपत 40% कम हो जाती है.” आज उनकी 150 एकड़ जमीन पर यह प्रणाली काम कर रही है.

बता दें कि स्प्रिंकलर प्रणाली (sprinkler system) के जरिए बोहर ने आलू की पैदावार में प्रति एकड़ 25 क्विंटल और मक्का में 10 क्विंटल की बढ़ोतरी दर्ज की है. वह नैनो यूरिया का इस्तेमाल करते हैं, जो सिंचाई के दौरान पूरे खेत में समान रूप से फैलता है. बोहर ने बताया कि स्प्रिंकलर प्रणाली पर सरकार 80% तक सब्सिडी देती है और महिला किसानों के लिए यह 90% तक है. सब्सिडी के बाद इसकी लागत केवल ₹15,000 प्रति एकड़ आती है.

हालांकि, 200 एकड़ की पट्टे पर ली गई जमीन के लिए ₹70,000 प्रति एकड़ का सालाना किराया चुकाना पड़ता है, लेकिन उनकी नई तकनीक से खेती से बंपर कमाई हो रही है. बता दें कि सभी खर्चों को निकालने के बाद प्रति एकड़ ₹1 लाख का शुद्ध मुनाफा होता है. 250 एकड़ से उनकी सालाना कमाई ₹2.5 करोड़ तक पहुंच जाती है. सबसे खास बात ये है कि बोहर पराली नहीं जलाते, बल्कि उसे मिट्टी में मिलाकर जैविक उर्वरक के रूप में इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा, उन्होंने ₹5 करोड़ की आधुनिक कृषि मशीनें खरीदी हैं. वह हर साल 250 अस्थायी और 20 स्थायी लोगों को रोजगार भी देते हैं.

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