डेस्क: मंदिर-मस्जिद विवादों पर लगभग 10 कानूनी मामले लंबित होने को लेकर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को ऐसे विवादित मुद्दों को बार बार उठाने को लेकर अपनी असहमति जताई थी. रोजाना इस तरह की विभाजनकारी बहस उठाने को उन्होंने अस्वीकार बताते हुए एकता पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत पर जोर दिया. वहीं अब विश्व हिंदू परिषद ने अब भागवत की बात को दोहराया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने कहा कि ये मुद्दे ऐतिहासिक महत्व के उदाहरण हैं. उन्होंने आक्रमण के दौरान लाखों मंदिरों के विनाश के बारे में बताते हुए कहा, “हमने 1984 में घोषणा की थी कि हम केवल तीन मंदिरों को पुनः प्राप्त करना चाहते हैं, जिनमें अयोध्या में राम जन्मभूमि, काशी और मथुरा के मंदिर शामिल हैं. हमने राम जन्मभूमि के लिए एक लंबी कानूनी और सामाजिक लड़ाई लड़ी, लेकिन तब से हमने एक संगठन के रूप में कभी भी किसी मंदिर के लिए आंदोलन का नेतृत्व नहीं किया.
वीएचपी संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने 1978 में संभल के मंदिरों को बंद करने की घटना की ओर इशारा भी किया, जिसके बारे में प्रशासन ने पता लगाया था न की किसी सामाजिक संगठन ने. वहीं मथुरा और काशी में चल रहे संघर्षों का जिक्र करते हुए उन्होंने तर्क दिया कि मुस्लिम नेताओं को भी अब इस तरह के कृत्यों में आक्रमणकारियों की भूमिका को स्वीकार करना चाहिए. वह बोले, “हमने अयोध्या के लिए लड़ाई लड़ी और उसे हासिल किया और तब से लेकर अब तक हम किसी आंदोलन में शामिल नहीं हुए. यही कारण है कि समाज के लोग इसको लेकर सामने आकर मुद्दे उठाने लगे हैं.
आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने पुणे में विश्वगुरु भारत व्याख्यान में बोलते हुए एकता लाने को कहा और विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ वॉर्निंग भी दी है. राम मंदिर के निर्माण को संबोधित करते हुए वह बोले, “राम मंदिर का निर्माण हिंदुओं की आस्था का विषय था और इससे कोई हिंदू नेता नहीं बन जाता. राम मंदिर तो सभी भारतीयों की आस्था का विषय है.”
मोहन भागवत ने नफरत या दुश्मनी को बढ़ावा देने से बचने का आग्रह किया, साथ ही मंदिरों और मस्जिदों पर नए विवादास्पद मुद्दों को उठाने से परहेज करने को कहा. वह बोले, “हमें विभाजन की भाषा, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक भेदभाव और सभी तरह के वर्चस्व संघर्षों को त्यागना चाहिए. बजाय इसके, हमें अपनी संस्कृति के तहत एकजुट होना चाहिए.”
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