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    आंबेडकर मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल हुए आक्रामक, बनाना चाहते दिल्ली चुनाव का मुद्दा

  • December 20, 2024

    नई दिल्‍ली । दिल्ली में विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) से पहले ‘कानून व्यवस्था’ को मुद्दा बनाने की भरसक कोशिश में जुटे आम आदमी पार्टी (AAP) के मुखिया को भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खिलाफ नया हथियार मिल गया है। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर (baba saheb bhimrao ambedkar) को लेकर गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) की टिप्पणी को भी अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) दिल्ली चुनाव का मुद्दा बनाना चाहते हैं। अमित शाह पर बाबा साहब के आपमान का आरोप लगाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने इस बात का ऐलान कर दिया कि वह दिल्ली के कोने-कोने और घर-घर में इस बात को लेकर जाएंगे। बुधवार को सड़क पर बैठकर उन्होंने अपना आक्रोश जाहिर किया।

    ‘आप’ के इस गुस्से के पीछे असल में एक सियासी गणित भी है। पार्टी की कोशिश दिल्ली चुनाव में इसे मुद्दा बनाकर फायदा उठाने की है। 10 सालों की एंटी इनकंबेंसी का सामना कर रही ‘आप’ को उम्मीद है कि वह इस विवाद के जरिए दलित वोटर्स को अपने पाले में ला सकती है। उसकी नजर दिल्ली में 12 आरक्षित सीटों पर है जहां दलित समुदाय की अच्छी आबादी है और उम्मीदवार की हार-जीत में उनकी भूमिका अहम है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में ‘आप’ ने इन सीटों पर भाजपा-कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था। वहीं, 2013 में भी अधिकतर आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की थी।

    दिल्ली में बवाना, सुल्तानपुर माजरा, मंगोलपुरी, पटेल नगर, मादीपुर, देवली, आंबेडकर नगर, कोंडली, सीमापुरी, गोकलपुर, करोलबाग, त्रिलोकपुरी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें हैं। आगामी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा इन सीटों पर खराब सड़कें, गंदे पानी जैसी समस्याओं को खूब जोरशोर से उठा रही है। झुग्गियो में जाकर भाजपा नेता केजरीवाल के शासन की कमियां गिना रहे हैं, जहां अधिकतर दलित, पिछड़े और वंचित समुदाय के लोग रहते हैं। ऐसे में ‘आप’ ने भाजपा पर आंबेडकर के अपमान का आरोप लगाकर काट निकालने की कोशिश की है। यही वजह है कि ‘आप’ इस मुद्दे पर खुद को कांग्रेस से अधिक आक्रामक दिखाना चाहती है।


    जिसके साथ दलित उसकी दिल्ली
    दिल्ली के चुनावी इतिहास को देखें तो यह साफ हो जाता है कि जिसने भी आरक्षित सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया उसी की सरकार बनी है। 1993 में दिल्ली में 13 आरक्षित सीटें थीं। इनमें से आठ पर जीत हासिल करके भाजपा ने सरकार बना थी। इसके बाद से यदि उसे लंबा बनवास झेलना पड़ा है तो उसके पीछे आरक्षित सीटों पर खराब प्रदर्शन भी एक वजह है। 1998 में कांग्रेस ने सभी 12 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज करके सरकार बनाई तो 2003 में 10 और 2008 में 9 सीटों पर कब्जा करके लगातार तीन बार सरकार बनाई। 2013 में ‘आप’ ने जिन 28 सीटों पर जीत दर्ज की उनमें से 9 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थीं। इस प्रदर्शन के बल पर उसे सरकार बनाते ही कांग्रेस के सहयोग से सत्ता का स्वाद चखने का मौका ममिला। इसके बाद 2015 और 2020 में ‘आप’ ने एकतरफा जीत हासिल करके प्रचंड बहुत पाई।

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