भोपाल। बरसों से वक्फ संपत्तियों (Waqf Properties) के निगराह बने बैठे लोगों की नीयत में खोट समा गई है। बाबा आदम के जमाने के तय किराए से अब भी संचालन हो रहा है। हद यह है कि इस “चिंदी” किराए (Rents) का हिसाब भी बोर्ड को नहीं दिया जा रहा है। इन संपत्तियों से बड़ी कमाई करने के बावजूद बोर्ड के हिस्से की छोटी रकम की अदायगी भी बरसों से नहीं की गई है। मप्र (Madhya Pradesh) वक्फ बोर्ड ने अब ऐसे दागदार प्रबंधकों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाना शुरू किया है। बोर्ड ने प्रदेशभर के ऐसे पुराने बकायादारों को कानूनी चिट्ठी भेज दी हैं। इनमें राजधानी भोपाल (Bhopal) के बड़े बकायादार भी शामिल हैं।
मप्र वक्फ बोर्ड के आधिपत्य में प्रदेशभर में करीब 15 हजार से ज्यादा संपत्तियां मौजूद हैं। इन छोटी बड़ी संपत्तियों में कई बेशकीमती और पूर्णतः व्यवसायिक हैं। लेकिन सूत्रों का कहना है कि इनमें से अधिकांश संपत्तियां ऐसे लोगों के हाथों में हैं, जिन्हें बरसों पहले बोर्ड ने इनकी निगरानी के लिए पाबंद किया था। बताया जाता है कि कालांतर में यह वक्फ प्रबंधक अब इन संपत्तियों के मालिक बन बैठे हैं। इन मकान, दुकान, कृषि भूमि और अन्य जायदाद से वे बड़ी राशि कमा रहे हैं, लेकिन इसका लेखजोखा बोर्ड को नहीं पहुंचा रहे हैं। वक्फ अधिनियम के मुताबिक वक्फ संपत्तियों से होने वाली कमाई का 7 प्रतिशत हिस्सा भी वे बोर्ड को नहीं पहुंचा रहे हैं।
मप्र वक्फ बोर्ड ने ऐसे बकायादारों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाना शुरू कर दिया है। बरसों के बकायादारों को कानूनी नोटिस भेज कर उनसे रकम जमा कराने का तगादा किया जा रहा है। इन नोटिस में अब बकाया राशि का हिसाब नई पट्टा अधिनियम के मुताबिक लगाया जा रहा है। इस स्थिति से जहां बकायादारों की लंबित राशि कई गुणा अधिक हो गई है, वहीं बोर्ड को मिलने वाली आमदनी का हिसाब भी करोड़ों रुपए में हो गया है।
राजधानी भोपाल में ऐन वक्फ बोर्ड दफ्तर से लगे एक यतीमखाना और इसकी दो अन्य सहयोगी संस्थाओं को मप्र वक्फ बोर्ड ने बरसों पहले अपनी संपत्ति का केयर टेकर बनाया था। इन संपत्तियों से होने वाली आमदनी से यतीम और गरीब बच्चों की परवरिश का मकसद तय किया गया था। लेकिन बदलते दौर के साथ यतीमखाना प्रबंधकों ने इस वक्फ संपत्ति का कमर्शियल इस्तेमाल शुरू कर दिया है। जिससे उसे लाखों रुपए महीना की आमदनी हो रही है। इसके अलावा इस बड़ी संपत्ति पर हर साल लगने वाले इज्तिमा बाजार से भी यतीमखाना प्रबंधक करोड़ों रुपए की आमदनी कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि बरसों से जारी इस व्यवस्था में यतीमखाना प्रबंधन सीमित लोगों के हाथों में ही सिमट कर रह गया है। इस समिति द्वारा न तो बोर्ड को आमदनी का हिसाब दिया जा रहा है और न ही विधिवत पहुंचाई जाने वाली 7 प्रतिशत राशि ही बोर्ड को मिल रही है।
मप्र वक्फ बोर्ड ने बरसों के लंबित हिसाब और बकाया राशि की मांग के साथ यतीमखाना प्रबंधन को कानूनी नोटिस भेजा है। साथ ही इस मामले की सूचना जिला कलेक्टर को भेजते हुए अवगत कराया है कि इस मेले में लगने वाली दुकानों में देशभर के दुकानदार शामिल होते हैं। यतीमखाना प्रबंधन द्वारा न तो इन दुकानदारों का पुलिस वेरिफिकेशन करवा रही है और न ही इनके बैक ग्राउंड के बारे में जानकारी लेकर बोर्ड को पहुंचा रही है। ऐसी स्थिति में मेले के दौरान व्यवस्थागत और सुरक्षात्मक दृष्टि से भी कोई हादसा होने की आशंकाएं बनी हुई हैं। बोर्ड प्रशासन ने यतीमखाना प्रबंधन से लंबित हिसाब और बकाया राशि नई दरों से जमा कराने के लिए तगादा लगाया है।
मप्र वक्फ बोर्ड ने सेंट्रल लाइब्रेरी ग्राउंड के पास स्थित मस्जिद की दुकानों को लेकर भी नोटिस जारी किया है। बताया जा रहा है कि इस वक्फ प्रबंधन कमेटी ने इन दुकानों का किराया अब भी बरसों पुरानी दरों पर होना बताया है। लेकिन बोर्ड सूत्रों को मिली जानकारी में यहां किराए की दरें हजारों रुपए हैं। बोर्ड ने इस प्रबंधन कमेटी को भी नई दरों के लिहाज से किराया तय कर बकाया राशि का हिसाब तलब किया है।
मप्र वक्फ बोर्ड ने हाल ही में तय किए गए फैसले में प्रदेश भर की वक्फ संपत्तियों की आमदनी का आधा हिस्सा शिक्षा पर खर्च करने की तैयारी की है। जबलपुर, उज्जैन, भोपाल जैसी बड़ी वक्फ संपत्तियों वाले शहरों से इस दिशा में काम शुरू भी कर दिए गए हैं। लेकिन कई छोटे बड़े वक्फ से रुके हिसाब और आमदनी ब्यौरे ने इस बड़े काम को रोक रखा है।
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