नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय और इसके निदेशक को कहा है कि वे सरकारी अभियोजकों को तथ्यों से संबंधित निर्देश दे सकते हैं, लेकिन वे वकीलों को ये नहीं बता सकते कि उन्हें अदालत में कैसे व्यवहार करना चाहिए और मामले की सुनवाई के दौरान क्या तर्क देने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी वकीलों की स्वतंत्रता पर जोर दिया और न्यायिक कार्यवाही में जांच एजेंसियों के प्रभाव को सीमित करने के परिपेक्ष्य में ये बात कही।
न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने बुधवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दो आरोपियों को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। पीठ ने माना कि दोनों आरोपी लंबे समय से जेल में बंद हैं और निकट भविष्य में मुकदमा शुरू होने की उम्मीद नहीं है। इस दौरान पीठ ने कहा कि ‘हम यहां यह भी ध्यान दे सकते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय और उसके निदेशक मामले के तथ्यों पर सरकारी अभियोजकों को निर्देश दे सकते हैं, लेकिन इस बारे में कोई निर्देश नहीं दे सकते कि वकील के रूप में उन्हें अदालत के समक्ष क्या करना चाहिए।’ ट्रायल कोर्ट ने भी पहले इसी मामले में एक आरोपी कौसर इमाम सिद्दीकी को जमानत देते हुए मुकदमे में देरी करने के लिए ईडी की आलोचना भी की थी।
न्यायमूर्ति ओका ने ईडी के निदेशक को ट्रायल कोर्ट के पहले के निर्देश को ‘कठोर’ बताया और कहा कि सरकारी अभियोजकों को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम करना चाहिए। पीठ ने कहा, यह पहले से तय है कि सरकारी अभियोजक को पारदर्शी होकर काम करना चाहिए।
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