नई दिल्ली । ऑटो चालको (Drivers)पर आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) और भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) दोनों मेहरबान हैं। वे ऑटो वालों के लिए तमाम तरह के वादे कर रही हैं। दोनों पार्टियां इनको साधने का प्रयास करने में जुटी हुई हैं। अरविंद केजरीवाल ने सबसे पहले ऑटो चालकों के लिए 5 गारंटी का ऐलान कर दिया तो भाजपा ने भी उसी दिन सात वादे कर दिए हैं। असल में इसके पीछे ऑटोचालकों की दिल्ली में राजनीतिक ताकत है।
दिल्ली की लास्ट माइल कनेक्टिविटी में अहम योगदान निभाने वाले आटो चालक सियासत का रुख मोड़ने की कुव्वत भी रखते हैं। इसके चलते ये दोनों दलों के लिए अहम हो गए हैं और दिल्ली में दंगल में भाजपा और आप ऑटो चालकों को साधने के लिए दांव चल रहे हैं। ऑटो चालक छह विधानसभा क्षेत्रों में राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं।
एक लाख से ज्यादा ऑटो चालक राजधानी में ऑटो चालकों की संख्या करीब एक लाख के आसपास है। सर्वे एजेंसी सीएसडीएस के मुताबिक, दिल्ली में ऑटो चालक, मैकेनिक आदि पेशे के करीब चार प्रतिशत वोटर्स हैं। राजधानी दिल्ली में करीब एक दर्जन से ज्यादा ऑटो ड्राइवर्स एसोसिएशन सक्रिय हैं। संख्या के साथ साथ उनका फीडबैक भी अहम है।
साथ ही ऑटो चालक चुनाव में फीडबैक लेने का सबसे बड़ा माध्यम बन गए हैं। चुनाव के दौरान ये अपनी सवारी से मुद्दे, नेता आदि के बारे में जानकारी लेते हैं और फिर संबंधित नेताओं या पार्टियों तक पहुंचा देते हैं। ऐसे में ऑटो चालक हर पार्टी के लिए संदेश देने का अहम स्त्रोत साबित होते हैं। इसी कारण इनपर हर दल की नजर है।
बिहार और यूपी से आनेवाले चालकों की संख्या बढ़ी
दल्ली में ऑटो चालक प्रमुख तौर पर शाहदरा, पंजाबी बाग, कोंडली, सरायकाले खां, संगम विहार और बुराड़ी इलाके की राजनीति को प्रभावित करते हैं। 1990 के दशक में अधिकांश ऑटो चालक पंजाब के होते थे, लेकिन अब बिहार और यूपी से आने वाले चालकों की तादाद भी काफी ज्यादा हो गई। दिल्ली में ऑटो चालकों के मुख्य मुद्दा ट्रैफिक नियमों का रेगुलराइजेशन है। इसके अलावा राष्ट्रीय राजधानी में ई-रिक्शा की बढ़ोतरी और महिलाओं के लिए फ्री-बस सर्विस ने भी कारोबार प्रभावित किया है।
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