इंदौर, संजीव मालवीय।
भाजपा (BJP) संगठन (Organization) के लिए सफल प्रयोगों के लिए जाने जाने वाले मध्यप्रदेश (MP) में अब एक बार फिर नया प्रयोग होने जा रहा है। अब तक मंडल अध्यक्ष किसी विधायक (MLA) या किसी बड़े नेता (Big leaders) की पसंद के बनते थे, लेकिन राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री शिवप्रकाश और क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल की जोड़ी अब संगठन को मठाधीशों से मुक्त करना चाहती है। इसकी शुरुआत मंडल चुनाव से की जा रही है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट कह दिया है कि मंडल अध्यक्ष संगठन और कार्यकर्ताओं की पसंद का होना चाहिए, न कि विधायक का। अगर यह प्रयोग सफल होता है तो इससे संगठन सशक्त होगा और गुटबाजी को बढ़ावा नहीं मिलेगा।
अक्सर यह होता आया है कि सत्ता में जिनका बोलबाला रहता है, वे लोग अपने क्षेत्र में संगठन में भी अपने खास को तवज्जो देते हैं, ताकि चुनाव में उन्हें फायदा हो सके। ऐसा अधिकांश विधायक और पार्षद करते हैं। हालांकि भाजपा की अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है, लेकिन कई मठाधीश इस प्रक्रिया को ही धत्ता बताकर सबकुछ अपनी मनमानी से करवा लेते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि किसी विधायक को जब टिकट नहीं मिलता है तो उसके समर्थक काम करने इनकार कर देते हैं या स्वत: ही दूर हो जाते हैं। कुछ बेमन से काम करते हैं, जिसका खामियाजा पार्टी को चुनाव में उठाना पडता है। वहां पार्टी को संगठन खड़ा करने में फिर मुश्किल आ जाती है। विधायक की सीट भी बदली जाती है तो संगठन में काम करने वाले उसके समर्थक दूसरी जगह पहुंच जाते हैं। कुल मिलाकर इससे संगठन को भारी नुकसान होता है। भाजपा संगठन चाह रहा है कि अब पार्टी के प्रमुख पदों पर ऐसे लोगों को ही बिठाया जाए, जो निष्पक्ष हो, किसी गुट के नहीं हो और पार्टी का काम ईमानदारी से करें। इसलिए बार-बार चुनाव से संबंधित बैठक में कहा जा रहा है कि कोई भी मंडल अध्यक्ष विधायक समर्थक नहीं हो। दरअसल पार्टी को मजबूत करने का बीड़ा राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री शिवप्रकाश और क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल ने उठाया है। दोनों ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा उससे जुड़े संगठनों में प्रचारक रहे हैं और लंबे समय से संगठन को समझते हैं। शिवप्रकाश प्रदेश के चुनाव प्रभारी भी हैं। उन्हीं के मार्गदर्शन में पार्टी ने महाराष्ट्र चुनाव में इतनी सीट लाने में सफलता प्राप्त की है। दोनों की जोड़ी इन दिनों प्रदेश में सक्रिय हैं और जामवाल तो हर संभाग में जाकर फीडबैक ले रहे हैं। दोनों का ध्यान सत्ता और संगठन को अलग-अलग रखने पर हैं। जामवाल तो स्पष्ट कह रहे हैं कि विधायक या अन्य जनप्रतिनिधि के दबाव में आकर संगठन में नियुक्तियां नहीं की जाएं। संगठन के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि जब सत्ता और संगठन एकसाथ ही काम करने लगते हैं तो संगठन को ज्यादा नुकसान होता है। फिलहाल प्रदेश की धरती से इस प्रयोग की शुरुआत की जा रही है और अगर ऐसा रहता है तो पार्टी को एक सशक्त संगठन मिलेगा, जिसका लाभ भाजपा को आने वाले समय में होगा।