अजमेर। संभल (Sambhal) की जामा मस्जिद (Jama Masjid) को लेकर उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में मचे बवाल के बीच अब राजस्थान (Rajasthan) के अजमेर शरीफ दरगाह (Ajmer Sharif Dargah) को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। हिंदू सेना की ओर से दायर याचिका सुनवाई के लिए अजमेर की स्थानीय अदालत में स्वीकार किए जाने के बाद मुस्लिम पक्ष ने सरकार से मांग की है कि इस तरह हर मस्जिद में मंदिर तलाशने की नई प्रथा पर रोक लगानी चाहिए। ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल के चेयरमैन और अजमेर शरीफ दरगाह के प्रमुख के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती (Syed Naseeruddin Chishti) ने कहा है कि दरगाह 850 साल पुरानी है और इसे 100 साल पुरानी एक किताब से खारिज नहीं किया जा सकता है।
चिश्ती ने कहा कि अदालत ने संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए गए हैं, एक है दरगाह समिति, ASI और तीसरा अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय। मैं ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का वंशज हूं, लेकिन मुझे इसमें पक्ष नहीं बनाया गया है। फिर भी यह हमारे बुजुर्गों से जुड़े दरगाह का मामला है। हमने इस पर निगाह बना रखी है। हम अपनी कानूनी टीम के संपर्क में हैं, जो भी उनकी सलाह होगी उसके मुताबिक हमें जो कानूनी कदम उठाना होगा उठाएंगे। उन्होंने कहा कि यह न्यायिक प्रक्रिया है, किसी को भी अदालत जाने का अधिकार है। अदालत में याचिकाएं सुनी जाती हैं और खारिज भी की जाती हैं।
सैयद नसरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि नई परिपाटी देश में बनाई जा रही है कि आए दिन कभी किसी मस्जिद में मंदिर का दावा किया जा रहा है कभी किसी दरगाह में। यह हमारे देश के हित में नहीं है। आज भारत ग्लोबल शक्ति बनने जा रहा है, हम कब तक मंदिर-मस्जिद के विवाद में फंसे रहेंगे। हम आने वाली पीढ़ियों को क्या मंदिर-मस्जिद विवाद देकर जाएंगे। सस्ती लोकप्रियता के लिए लोग ऐसे कदम उठाते हैं जिससे करोड़ों लोगों की आस्था को ठेस पहुंचती है। अजमेर दरगाह से पूरी दुनिया के मुस्लिम, हिंदू, सिख, ईसाई सब जुड़े हुए हैं, सबकी आस्था यहां से जुड़ी है।
चिश्ती ने दरगाह के इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि सभी धर्मों के लोगों की यहां अस्था है। उन्होंने कहा, ‘अजमेर का इतिहास 850 साल पुराना है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती 1195 में हिन्दुस्तान में आए और 1236 में निधन हुआ। उसके बाद से ही दरगाह यहां कायम है। इन 850 साल में कई राजे-रजवाड़े, मुगल, ब्रिटिश यहां आकर गुजरे, सबकी आस्था यहीं से जुड़ी रही। सबने अपनी अकीदत का नजराना पेश किया। यहां चांदी का कटोरा जयपुर महाराज ने चढ़ाया था। यह दरगाह मोहब्बत अमन का पैगाम देती है। यह करोड़ों लोगों की आस्था को ठेस है। यह समाज को बांटने और देश को तोड़ने का काम किया जा रहा है।’
उन्होंने संभल की घटना की भी निंदा की और कहा कि भारत सरकार से हस्तक्षेप की अपील की। उन्होंने कहा कि कोई कानून लाया जाए कि इस तरह किसी धार्मिक स्थलों पर अंगुली ना उठे। 1947 से पहले के जो मुकदमे हैं उनमें जो अदालत के फैसले आते हैं उनको सबने स्वीकार किया है। लेकिन नए विवाद ना खड़े करें। मोहन भागवत जी ने 2022 में कहा था कि क्या जरूरत है कि हर मस्जिद में शिवालय ढूंढा जाए।
नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि जहां तक अजमेर दरगाह की बात है, इस पर 1955 में जब ख्वाजा दरगाह साहब ऐक्ट बनाया जा रहा था उससे पहले एक जांच समिति बनाई गई थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के तब के जज जस्टिस गुलाम हसन ने इसकी पूरी जांच की थी। इसमें किसी मंदिर या अन्य धार्मिक स्थल का कोई जिक्र नहीं है। गरीब नवाज पर कई गैर मुस्लिम लेखकों ने भी किताबें लिखी हैं उनमें कहीं ऐसा कोई जिक्र नहीं है। वादी ने 1019 में हरबिलास शारदा जी की किताब की बुनियाद पर दावा किया है, वह इतिहासकार नहीं थे। उनकी किताब में लिखी बात कहीं साबित नहीं होती है, 100 साल की किताब से 850 साल पुराने इतिहास को नहीं मिटाया जा सकता है।
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