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    महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा की हवा में बागी और निर्दलीय भी उड़े

  • November 25, 2024

    मुंबई। हाल ही में संपन्‍न हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Elections) के नतीजे हर लिहाज ऐतिहासिक रहे, क्‍योंकि इस बार भाजपा (BJP) ने रिकॉर्ड 132 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस भी पहली बार केवल 16 सीटों पर सिमट गई। वहीं पार्टियों से बगावत कर निर्दलीय भी इस आंधी में उड़ते नजर आए।

    महाराष्ट्र की 15वीं विधानसभा चुनाव में मतगणना के बाद कुल 288 विधायकों वाली विधानसभा में 21 महिला विधायक चुनीं गईं हैं। जबकि इस बार कुल 363 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। इनमें से एनडीए गठबंधन और महाविकास आघाड़ी ने 30-30 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था, बाकी अन्य के रूप में अपनी तकदीर आजमा रहीं थीं। यह जानकारी चुनाव आयोग के आंकड़ों से मिली है।



    महाराष्ट्र में हमेशा से निर्दलीय विधायकों की बड़ी संख्या रही है। इस बार चुनाव में 2,087 निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरे, जो 2019 के 1,400 निर्दलीयों की तुलना में लगभग 50% अधिक हैं। बावजूद इसके, सिर्फ दो निर्दलीय जीत सके। इनमें जुन्नर से शरद दादा सोनवणे ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद) के सत्यशील शेलकर को 6,664 मतों के अंतर से हराया। चंदगड़ से शिवाजी पाटिल ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजीत) के राजेश पाटिल को 24,134 वोटों से हराया। रविवर को शिवाजी पाटील ने बीजेपी को समर्थन दे दिया। उन्होंने डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को पत्र सौंपा। ऐसे में बीजेपी का अकेले संख्याबल 133 हो गया है।

    दो दर्जन सीटों पर बिगाड़ा खेल
    हालांकि, निर्दलीयों की कम जीत के बावजूद, उन्होंने कई सीटों पर प्रमुख पार्टियों के लिए चुनौती खड़ी की है। महाराष्ट्र में 23 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार सीधी टक्कर में थे। इनमें से, 21 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे। अहेरी, ऐरोली, अमलनेर, अष्टी, बडनेरा, कल्याण (पूर्व), कन्नड, कर्जत, करमाला, कोल्हापुर (उत्तर), मेढा, मालेगांव (आउटर), मावल, नंदगांव, नवापुर, पाटन, रामटेक, रिसोड, शिरपुर, श्रीगोंडा और वरोरा सीट पर निर्दलीय सीधी टक्कर में थे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हीना गावित, समीर भुजबल और रंजीत शिंदे जैसे निर्दलीय उम्मीदवारों ने कई सीटों पर प्रमुख पार्टियों के वोट काटे और नतीजों को प्रभावित किया।

    एनसीपी को सीटें देने पर बगावत
    महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में 70 से अधिक बागी नेताओं ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपनी किस्मत आजमाई थी। जुन्नर से शरद सोनवाने, शिवसेना से टिकट की दौड़ में थे लेकिन टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा और एनसीपी (शरद) के सत्यशील शेरकर को 6,664 वोटों से हराया। महायुति उम्मीदवार और वर्तमान विधायक अतुल बेंके एनसीपी (अजीत) तीसरे स्थान पर रहे। इसी तरह, भाजपा के बागी शिवाजी पाटिल ने एनसीपी (अजीत) के राजेश नरसिंगराव पाटिल को 24,134 वोटों से हराकर चंदगढ़ में जीत दर्ज की। ये दोनों सीटें उपमुख्यमंत्री अजित पवार के गुट को आवंटित की गई थीं, जिससे महायुति में बगावत हुई थी।

    बड़े चेहरे भी हार गए चुनाव
    अक्कलवुआ में भाजपा के खिलाफ बागी हुई पूर्व सांसद हीना गवित और नंदगांव में एनसीपी (अजीत) के पूर्व विधायक समीर भुजबल ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था। गवित तीसरे स्थान पर और भुजबल दूसरे स्थान पर रहे। सांगली में कांग्रेस की जयश्री पाटिल ने 32,736 वोट प्राप्त किए, जबकि एमवीए के आधिकारिक उम्मीदवार पृथ्वीराज पाटिल 36,135 वोटों से हार गए। अकोला (पश्चिम) में भाजपा के हरीश अलीमचंदानी ने 21,481 वोट प्राप्त किए, जो महायुति उम्मीदवार विजय अग्रवाल को जीत के लिए आवश्यक 1,283 वोटों से कहीं ज्यादा था। कांग्रेस के बागी सुरेशकुमार जेठलिया ने पार्टुर में 53,921 वोट प्राप्त किए, जिससे महायुति उम्मीदवार को 4,720 वोटों से हार का सामना करना पड़ा।

    निर्दलीयों को जनता ने नकारा
    2024 में निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रदर्शन ऐतिहासिक रूप से सबसे कमजोर रहा है। इस बार सिर्फ दो निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल हुए, जो 1962 के बाद का सबसे निचला आंकड़ा है। 1990 में, जब कांग्रेस बहुमत से चार सीटें चूक गई थी, 13 में से 12 निर्दलीयों ने शरद पवार की सरकार को समर्थन दिया था। 1995 में, जब 3,196 निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में थे, उनमें से रिकॉर्ड 45 निर्दलीयों ने जीत दर्ज की और शिवसेना-भाजपा सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई निर्दलीय मंत्री भी बने। 1999 में, जब कांग्रेस और एनसीपी अलग-अलग चुनाव लड़े, 12 निर्दलीयों ने जीत दर्ज कर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार (डेमोक्रेटिक फ्रंट) बनाने में मदद की।

    पिछले चार चुनावों में निर्दलीयों का रिकॉर्ड
    2004 में 1,083 निर्दलीय उम्मीदवारों में से 19 ने जीत दर्ज की।
    2009 में 1,820 निर्दलीयों में से 24 जीते।
    2014 में 1,699 में से 7 निर्दलीयों ने जीत दर्ज की।
    2019 में 1,400 में से 13 निर्दलीय सफल हुए।

    महाराष्ट्र में क्यों गिर रहा है निर्दलियों का प्रभाव?
    महाराष्ट्र में निर्दलीयों का प्रभाव अब उतना मजबूत नहीं रहा जैसा 1990 और 1995 के दशक में था। 2024 के चुनावों में, निर्दलीय अब ‘किंगमेकर’ की भी भूमिका निभाने में असमर्थ दिख रहे हैं। इस बार पार्टियों से बगावत करने वाले उम्मीदवारों को जनता ने इसलिए भी समर्थन नहीं दिया क्योंकि, एनसीपी और शिवसेना के टूटने के बाद जनता के सामने कई विकल्प मौजूद थे। इसके अलावा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, बहुजन विकास आघाडी, वंचित बहुजन आघाडी, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों के प्रत्याशी भी मैदान में थे। कई बागी उम्मीदवार परिवारवाद का भी शिकार हुए, जिसे जनता ने नकारा है। कई निर्दलीय उम्मीदवार केवल नाम के लिए चुनाव लड़ते हैं।

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