नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की उच्चाधिकार प्राप्त समिति (High Powered Committee) ने पिछले दो दशकों में हरियाणा, पंजाब समेत देश में कृषि (Agriculture) लागत व कर्ज (Loan) बढ़ने व उपज उत्पादन (Yield Production) घटने पर चिंता जताई है। समिति ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) को कानूनी मान्यता देने और प्रत्यक्ष आय मदद की पेशकश की संभावना पर गंभीरता से विचार करने की सिफारिश की है।
शंभू सीमा पर आंदोलनरत किसानों की शिकायतों का समाधान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश नवाब सिंह के नेतृत्व में 2 सितंबर को उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि किसानों के विरोध का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने शुक्रवार को समिति की अंतरिम रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लिया। 11 पेज की अंतरिम रिपोर्ट में समिति ने कहा कि यह सर्वविदित तथ्य है कि देश में किसान विशेषकर पंजाब और हरियाणा में पिछले दो दशकों से अधिक समय से लगातार बढ़ते कृषि संकट का सामना कर रहा है। हरित क्रांति के प्रारंभिक उच्च लाभ के बाद 1990 के दशक के मध्य से उपज और उत्पादन वृद्धि में स्थिरता संकट की शुरुआत का संकेत है।
समिति ने कहा कि हाल के दशकों में किसानों और कृषि श्रमिकों पर कर्ज कई गुना बढ़ गया है। वर्ष 2022-23 में पंजाब में किसानों का संस्थागत ऋण 73,673 करोड़ रुपये था, जबकि राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड, 2023) के अनुसार, हरियाणा में यह 76,630 करोड़ रुपये से भी अधिक था।
किसानों पर गैर-संस्थागत ऋण का एक महत्वपूर्ण बोझ है, जो राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन 2019 के अनुसार पंजाब में किसानों पर कुल बकाया ऋण का 21.3 प्रतिशत और हरियाणा में 32 प्रतिशत होने का अनुमान है। रिपोर्ट में कहा गया, कृषि उत्पादकता में गिरावट, उत्पादन लागत में इजाफा, अपर्याप्त मार्केटिंग सिस्टम और कृषि रोजगार में कमी ने कृषि आय को घटा दिया है। छोटे और सीमांत किसान व खेतिहर मजदूर इस आर्थिक संकट से सबसे अधिक प्रभावित हैं।
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