नई दिल्ली । वैज्ञानिकों (Scientists) का काम ही होता है, अपने जीते-जी प्रयोग को सफल बनाना और दुनिया के सामने पेश करना, लेकिन ऑस्ट्रेलिया (Australia) में वैज्ञानिकों का एक समूह ऐसे प्रयोग पर काम कर रहा है जो 100 साल पहले शुरू हुआ था और इसके पूरा होने में अभी 100 साल और लगने वाले हैं। आप यकीनन जानना चाहेंगे, कि ऐसा कौन सा प्रयोग चल रहा है? जिस वैज्ञानिक ने साल 1927 में इसे शुरू किया था, वह इस प्रयोग में 34 साल लगाकर दुनिया छोड़ चुके हैं और उनके प्रयोग को दूसरे वैज्ञानिक जारी रखे हुए हैं।
दुनिया के सबसे लंबे और धीमी गति से चलने वाले प्रयोग को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह मिली है। इस प्रयोग को ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक चला रहे हैं। इस प्रयोग की शुरुआत करीब 100 वर्ष पूर्व 1927 में शुरू की गई थी। इस प्रयोग का नाम है-‘पिच ड्रॉप एक्सपेरीमेंट’ 1927 में थॉमस पार्नेल नामक एक ऑस्ट्रेलियाई भौतिक विज्ञानी ने इसे शुरू किया, वह इस प्रयोग पर 34 साल ही काम कर पाए। उनकी मौत के बाद इस प्रयोग को विवि के अन्य वैज्ञानिक आगे बढ़ा रहे हैं। इस प्रयोग का उद्देश्य पिच नामक तारकोल जैसे पदार्थ की तरलता और उच्च चिपचिपाहट दोनों को मापना है।
यह प्रयोग क्या है?
पार्नेल ने पिच के एक नमूने को गर्म किया और उसे सीलबंद स्टेम वाले कांच की फ़नल में डाला। उन्होंने पिच को तीन साल तक ठंडा होने और जमने दिया। 1930 में उन्होंने फ़नल की भाप को बूंद के रूप के गिरने का इंतज़ार किया। 1927 को शुरू हुए इस प्रयोग में अभी तक 9 बूंद ही जमीन पर गिरी हैं। विश्वविद्यालय के अनुसार , पार्नेल के बाद, दिवंगत प्रोफेसर जॉन मेनस्टोन 1961 में इस प्रयोग के संरक्षक बने और इसे 52 वर्षों तक जारी रखा। प्रयोग की शुरुआत से ही पिच धीरे-धीरे फ़नल से बाहर टपकती रही। इसकी पहली बूंद गिरने में आठ साल लग गए, और उसके बाद पांच और बूंदें गिरने में 40 साल से ज़्यादा लग गए।
पिछले अपडेट के अनुसार, अब तक नौ बूंदें गिर चुकी थीं और इस दशक में एक और गिरने की उम्मीद है। हालांकि, विभिन्न गड़बड़ियों के कारण, किसी ने वास्तव में एक भी बूंद गिरते हुए नहीं देखा है। इसलिए इस प्रयोग के अभी एक और शताब्दी तक चलने के आसार हैं।
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