मुम्बई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra assembly elections) में कुछ खास सीटों पर सबकी नजरें हैं। ऐसी ही सीटों में पुणे जिले (Pune district) की बारामती विधानसभा सीट (Baramati assembly seat) भी शामिल है। ये वही सीट है जहां से कभी राष्ट्रवादी कांग्रेस (Nationalist Congress) (शपा) के नेता शरद पवार जीतते थे। इस चुनाव में बारामती सीट पर पवार परिवार से ताल्लुक रखने वाले दो चेहरों के बीच लड़ाई है। तरफ शरद पवार के भतीजे अजित पवार हैं तो दूसरी तरफ अजित पवार के भतीजे योगेंद्र पवार हैं।
पहले जान लेते हैं बारामती सीट के बारे में
1960 में महाराष्ट्र होने से पहले यह राज्य बॉम्बे कहलाता था जिसमें गुजरात भी शामिल था। देश की आजादी के बाद बॉम्बे प्रेसिडेंसी में पहली बार 1951 में विधानसभा चुनाव हुए। जब बॉम्बे का पहला विधानसभा चुनाव हुआ तब बारामती विधानसभा सीट अस्तित्व में आ चुकी थी। पहले चुनाव में बारामती से कांग्रेस के मलिक दादासाहेब को जीत मिली। उन्होंने पीजेन्ट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्लूपी) के प्रत्याशी जगताप बापूजी को 11593 वोट से शिकस्त दी।
1956 में बॉम्बे में दूसरी बार विधानसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में बारामती सीट पर दो उम्मीदवारों को जीत मिली। पीडब्लूपी से जगताप बापूजी तो ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन (एससीएफ) से संभाजी बन्दोबा जीतने में सफल रहे। बता दें कि 1961 से पहले चुनावों में कुछ सीटों पर दो-दो विधायक या सांसद चुने जाते थे। इस व्यवस्था को 1961 के दो-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र (उन्मूलन) अधिनियम के जरिए खत्म कर दिया गया था।
अब आता है 1962 का विधानसभा चुनाव… इस चुनाव में महाराष्ट्र राज्य अस्तित्व में आ चुका था। इस बार बारामती सीट पर कांग्रेस की मालतीबाई शिरोले को जीत हासिल हुई। मालतीबाई ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) के उम्मीदवार मानसिंग तुले को 9198 मत से हराया।
बारामती में शरद पवार की एंट्री
साल 1967…महाराष्ट्र के लिए एक और चुनावी साल…इस चुनाव में बारामती सीट पर एक युवा चेहरे की एंट्री होती है। यही युवा आगे चलकर महज 38 साल की उम्र में महाराष्ट्र का सबसे युवा मुख्यमंत्री बनता है। 1978 में जब यह युवा मुख्यमंत्री बनता है तो वह देश का सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री होता है। यह शख्स एक, दो, तीन नहीं बल्कि कुल चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद संभालता है। हम बात कर रहे हैं शरद पवार की। अपने करियर के शुरुआती दिनों में, पवार को उस समय महाराष्ट्र के एक बेहद प्रभावशाली राजनेता यशवंतराव चव्हाण का शिष्य माना जाता था। 1967 में 27 वर्ष की छोटी उम्र में पवार को कांग्रेस पार्टी ने बारामती सीट से उम्मीदवार बनाया। पवार ने बारामती में पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया (पीडब्लूपी) के बीएस काकड़े को 16359 मत से हराकर जीत दर्ज की।
1972 में बारामती में शरद पवार ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार हनुमानराव मोरे को 37473 वोट से हराया। 1972 के बाद महाराष्ट्र में जब अगला विधानसभा चुनाव होता है तो देश आपातकाल का दंश झेल चुका होता है और इस बीच बहुत सी चीजें बदल जाती हैं। साल 1978 में जब चुनाव हुए तो एक बार फिर मुकाबला शरद पवार और हनुमानराव मोरे के बीच हुआ। हालांकि, मोरे इस बार जनता पार्टी के टिकट पर किस्मत आजमाते हैं लेकिन वह अपनी हार का अंतर ही कम कर पाते हैं। कांग्रेस के टिकट पर उतरे शरद पवार ने मोरे को 18,638 वोट से हरा देते हैं।
शरद पवार ने जब बगावत की
ये वो समय था जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी। महाराष्ट्र में कांग्रेस के दो धड़ों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस (आई) को 62 वहीं कांग्रेस को 69 सीटों पर जीत मिली। वहीं, कांग्रेस 69 सीटें जीतने में सफल रही। चंद महीने पहले केंद्र की सत्ता में आई जनता पार्टी 99 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी तो बनी पर वह भी 145 के बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई। चुनाव के बाद कांग्रेस और कांग्रेस (आई) ने मिलकर सरकार बनाई। कांग्रेस के वसंतदादा पाटिल मुख्यमंत्री बने। शरद पवार को पाटिल कैबिनेट में जगह मिली। तीन महीने पहले इंदिरा को जिस पार्टी से निकाला गया उसी पार्टी के साथ मिलकर इंदिरा की नई पार्टी सत्ता में भागीदारी कर रही थी। इंदिरा की पार्टी का प्रभाव सत्ता में बढ़ रहा था। दूसरी तरफ शरद पवार की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा भी बढ़ रही थी। इंदिरा गुट के बढ़ते दखल ने शरद की नाराजगी को बढ़ाने का काम किया।
वहीं, सरकार गठन के महज चार महीने बाद भी शरद पवार ने अपने ही गुरू के खिलाफ बगावत कर दी। 12 जुलाई 1978 को उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। उन्हें 40 बागी विधायकों का समर्थन हासिल था। बागियों के साथ मिलकर शरद पवार ने जनता पार्टी की मदद से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंच गए। महज 38 साल की उम्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनकर उन्होंने रिकॉर्ड बना दिया।
शरद पवार को फिर मिली जीत
1978 के बाद महाराष्ट्र में अगला विधानसभा चुनाव दो साल बाद ही कराने पड़े। साल 1980 में हुए चुनाव में शरद पवार इंडियन कांग्रेस (यू) के टिकट पर उतरे। इस बार उन्होंने इंडियन कांग्रेस (आई) के धोंडीबा चोपड़े को 28369 वोट से शिकस्त दी।
1985 के चुनाव में शरद पवार इंडियन नेशनल कांग्रेस (संयुक्त) के उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमाई। उन्होंने कांग्रेस के मुगुटराव काकड़े को 18044 वोट से पटखनी दी।
अब आता है 1990 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव। इस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर उतरे शरद पवार का निर्दलीय धोंडीबा चोपड़े से सामना हुआ। शरद ने यह चुनाव 88223 वोट के बड़े अंतर से जीता।
बारामती की सियासत में अजित पवार की एंट्री
अब आता है साल 1991 जब बारामती सीट पर उपचुनाव की जरूरत पड़ती है क्योंकि पवार 10वीं लोकसभा के लिए चुने जाते हैं। यह लोकसभा चुनाव में उनकी दूसरी जीत थी। इससे पहले शरद पवार 8वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे लेकिन मार्च 1985 में इस्तीफा दे दिया था।
1991 के उपचुनाव से शरद पवार के परिवार के शख्स की बारामती की सियासत में एंट्री होती है। यह शख्स भी अपने चाचा की तरह बाद में बारामती की सियासत का पर्याय बन जाता है। हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के मौजूदा उपमुख्यमंत्री अजित पवार की। 1991 के उपचुनाव में बारामती सीट पर अजित अपने चाचा की जगह लेते हैं और लगातार जीतते हैं।
कांग्रेस से अलग धड़ा बना ‘राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी’
1995 के बाद महाराष्ट्र में अगले विधानसभा चुनाव 1999 में हुए। इस चुनाव में अजित पवार कांग्रेस नहीं बल्कि इससे अलग हुए धड़े ‘राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी’ के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार तवारे कृष्णराव तावड़े को 50366 वोट से शिकस्त दी।
2005 में बारामती सीट का मुकाबला एनसीपी और शिवसेना के बीच हुआ। परिणाम फिर एनसीपी उम्मीदवार अजित पवार के नाम रहा। उन्होंने शिवसेना के पोपटराव मानसिंगराव टुपे को 66157 वोट से हराया।
2009 के महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में एनसीपी के अजित पवार को जीत हासिल हुई। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार शंकरराव तावड़े को 102797 वोट के विशाल अंतर से हरा दिया।
2014 और 2019 अजित बड़े अंतर से जीते
अब आता है 2014 का विधानसभा चुनाव जिसमें बारामती सीट पर पहली बार एनसीपी और भाजपा का मुख्य मुकाबला हुआ। बारामती की सियासी लड़ाई फिर एनसीपी के नाम रही। अजित पवार ने भाजपा उम्मीदवार प्रभाकर दादाराम गावड़े को 89791 मत के एक बड़े अंतर से शिकस्त दी।
2019 के विधानसभा चुनाव में बारामती में मुकाबला फिर एनसीपी और भाजपा के बीच रहा। एनसीपी ने अजित पवार को अपना उम्मीदवार बनाया तो भाजपा के टिकट पर गोपीचंद कुंडलिक पडलकर उतरे। अजित पवार ने यह चुनाव 165265 मत के विशाल अंतर से जीता। एनसीपी प्रत्याशी 195641 को 55793 वोट मिले जबकि भाजपा प्रत्याशी को महज 30376 वोट मिले।
इस बार चाचा-भतीजे आमने-सामने
अब बात 2024 के चुनाव की कर लेते हैं। महाराष्ट्र की बारामती सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है क्योंकि इस बार पवार के दो सदस्य ही आमने-सामने हैं। 2023 में अपने चाचा से बगावत करने वाले अजित पवार एनसीपी के टिकट पर उतरे हैं। दूसरी ओर शरद पवार ने अपने पोते योगेंद्र पवार को चेहरा बनाया है। बारामती सीट पर कुल 23 प्रत्याशी मैदान में हैं लेकिन लोगों की नजरें चाचा-भतीजे के मुकाबले पर होगी।
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