नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को उस जनहित याचिका (Public interest litigation) की सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें सार्वजनिक हस्तियों (Public figures) द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषणों (Inflammatory speeches) के खिलाफ तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि ये बयान राष्ट्रीय एकता, सुरक्षा को खतरे में डालते हैं और विभाजनकारी विचारधाराओं को बढ़ावा देते हैं।
CJI संजीव खन्ना (CJI Sanjiv Khanna) और जस्टिस संजय कुमार (Justice Sanjay Kumar) की पीठ ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों और गलतबयानी के बीच अंतर होता है। इसके साथ ही इसने जनहित याचिका दायर करने वाली ‘हिंदू सेना समिति’ के वकील से कहा कि शीर्ष अदालत इस मामले में नोटिस जारी करने को लेकर इच्छुक नहीं है।
पीठ ने कहा, ‘हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत वर्तमान रिट याचिका पर विचार करने को लेकर इच्छुक नहीं हैं, जो वास्तव में ‘कथित बयानों’ को संदर्भित करता है। इसके अलावा, भड़काऊ भाषण और गलतबयानी के बीच अंतर है… यदि याचिकाकर्ता को कोई शिकायत है, तो वे कानून के अनुसार इस मामले को उठा सकते हैं।’ पीठ ने कहा कि वह मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी नहीं कर रही है।
जनहित याचिका में न्यायालय से भड़काऊ भाषणों को रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने और सार्वजनिक व्यवस्था तथा राष्ट्र की संप्रभुता को खतरे में डालने वाले बयान देने वाले व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई अनिवार्य करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया था।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता कुंवर आदित्य सिंह और स्वतंत्र राय ने कहा कि नेताओं की टिप्पणियां अक्सर उकसावे वाली होती हैं, जिससे संभावित रूप से सार्वजनिक अशांति फैल सकती है।
उन्होंने मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा और भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत सहित विभिन्न राजनीतिक हस्तियों की हालिया टिप्पणियों का भी हवाला दिया, जिनकी बयानबाजी ने कथित तौर पर सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डाल दिया था।
वर्मा ने अपनी टिप्पणी में श्रीलंका और बांग्लादेश में हो रहे विरोध प्रदर्शनों से तुलना करते हुए (भारत में) संभावित लोकप्रिय विद्रोह की चेतावनी दी थी, जबकि टिकैत ने कथित तौर पर किसानों के विरोध प्रदर्शन का इस तरह से उल्लेख किया, जिससे हिंसक विद्रोह की आशंका थी। याचिका में कहा गया है कि सरकार भड़काऊ भाषण पर कानूनी प्रतिबंध लगाने के मामले में असंगत रही है।
‘हिंदू सेना समिति’ ने भड़काऊ भाषणों को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने, उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने और नेताओं के अनिवार्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए निर्देश सहित कई राहत मांगी थीं।
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