डेस्क: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार (13 नवंबर) को “बुलडोजर जस्टिस” (Bulldozer Justice) की प्रवृत्ति पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि अधिकारी किसी व्यक्ति के घर को केवल इस आधार पर नहीं गिरा सकते कि उस पर कोई अपराध का आरोप है. मामले पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे अराजक स्थिति बताया है.
एआईएमआईएम प्रमुख ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा, “सुप्रीम कोर्ट का बुलडोजर फैसला एक स्वागत योग्य राहत है. इसका सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा इसकी वाक्पटुता नहीं, बल्कि लागू करने योग्य दिशा-निर्देश हैं. उम्मीद है कि वे राज्य सरकारों को मुसलमानों और अन्य हाशिए के समूहों को सामूहिक रूप से दंडित करने से रोकेंगे. हमें याद रखना चाहिए कि नरेंद्र मोदी ने भी बुलडोजर राज का जश्न मनाया है, जिसे आज सुप्रीम कोर्ट ने “अराजक स्थिति” कहा है.”
जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा, “कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती. केवल आरोप के आधार पर, अगर कार्यपालिका व्यक्ति की संपत्ति को ध्वस्त करती है तो यह कानून के शासन के सिद्धांत पर प्रहार होगा. कार्यपालिका जज बनकर आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति को ध्वस्त नहीं कर सकती.”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन एक ऐसा ढांचा प्रदान करता है जो सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों को पता हो कि उनकी संपत्ति मनमाने ढंग से नहीं ली जाएगी. अदालत ने आगे कहा कि ऐसे मामलों में भी जहां लोग ध्वस्तीकरण आदेश का विरोध नहीं करना चाहते हैं, उन्हें खाली करने और अपने मामलों को व्यवस्थित करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा, “महिलाओं, बच्चों और बीमार व्यक्तियों को रातों-रात सड़कों पर घसीटते हुए देखना सुखद दृश्य नहीं है.” साथ ही पीठ ने कहा, “अगर अधिकारी कुछ समय तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें तो उन पर कोई विपत्ति नहीं आ जाएगी.” इसके अलावा, पीठ ने कार्यपालिका के लिए संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले पालन करने हेतु दिशा-निर्देशों की एक सूची जारी की.
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