जिला प्रशासन जरा खुद के गिरेबां में झांककर देखे… पूरे शहरभर को अग्निशमन संयंत्र लगाने, आग से लडऩे के साधन जुटाने और नहीं पाए जाने पर बिल्डिंगों को सील करने के फरमान थमा रखे हैं… वर्षों पहले जिन भवनों को बिना फायर सेफ्टी साधनों के पूर्णता का प्रमाण पत्र दे डाला… अब उन बिल्डिंगों में घर, दफ्तर, आफिस, कार्यालय खोलने वाले लोगों पर दबाव डाला जा रहा है… सोसायटियों के पदाधिकारियों को हड़क़ाया जा रहा है… नैतिकता के नाम ही नहीं बल्कि कायदे-कानून और नियमों के चलते यह जरूरी भी है और जिम्मेदारी भी, लेकिन नियमों और कायदों को लेकर अपनी कालर ऊंची करने वाला जिला प्रशासन अपने गिरेबां में कभी झांककर नहीं देखता कि उनका फायर ब्रिगेड विभाग किस मरी अवस्था में सांस लेकर अव्यवस्था और अभाव की हालत में झुलसा पड़ा है… ना उसके पास दमकलें हैं ना संसाधन… ना वाहन है और ना कर्मचारी… ना ठोर है ना ठिकाना… वर्षों से शहर के एक कोने में सिमटा पड़ा कलेक्टोरेट और नगर निगम परिसर में टैंकर खड़े कर शहरभर में दौडऩे की कोशिश में ही वो इतना हांप जाता है कि उसके पहुंचने तक आग ना केवल इमारतों को राख बना देती है, बल्कि लोगों के जीवन पर भी बन आती है… लोग इमारतों में फायर संसाधन लगा भी लेंगे तो पानी कहां से लाएंगे… टैंक बना भी लेंगे तो उतनी देर पानी चला पाएंगे… ऊची-ऊंची इमारतों के नक्शे पास कर करोड़ों की फीस हड़पने वाला निगम ना फायर संसाधन जुटाने मे मदद करता है… ना आग बुझाने के लिए झोनों पर टैंकर रखता है… शहर इतना बड़ा और ट्रैफिक के दबाव से गुजरने लगा है कि दमकलें घंटे दो घंटे में भी नहीं पहुंच पाती है और आग सब कुछ जला डालती है… दमकलकर्मी भी इतने प्रशिक्षित नहीं हैं कि वो आग बुझा पाए या आग में घिरे लोगों को निकाल पाएं… कल एबी रोड पर लगी आग बिल्डिंग में लगी थी और फायर वैन सडक़ पर पानी डाल रही थी… यदि वहां आग से जूझने वाले आम लोग नहीं होते तो कई लोग लाश बन जाते… फिर माथा पीटती सरकार और शोक प्रकट करते मुख्यमंत्री… वैसे भी सरकार हो या प्रशासन इन्दौर को दूध देती गाय समझता है और इतना दूध निचोड़ लेता है कि उसके बच्चों को दो बूंद दूध भी नहीं मिलता है… इधर जिला प्रशासन वसूली करता है… उधर निगम बर्बरता के लिए मचलता है… शहर में 29 गांव जोड़ लिए… वहां सडक़ है ना पानी और ना ही ड्रेनेज… लेकिन उसे सम्पत्ति कर वसूलना है और जो सम्पत्ति कर लागू है उसमें वृद्धि करना है… अपना दाना ढूंढ़ती सरकार को हर 6 माह में गाइड लाइन बढ़ाना है और अपना खजाना भराना है… ऐसे कई धीमे जहर से मरते इन्दौर के लोगों के इलाज के लिए राहत का अस्पताल जनप्रतिनिधियों और नेताओं को खोलना चाहिए, मगर आलम यह है कि शहर के नेता खुद गुलामी के बीमार हैं… वो खुद अधिकारियों के आगे धोक लगाते हैं और सरकार के आगे गूंगे बन जाते हैं… मुख्यमंत्री इंदौर आते हैं… शहर के प्रभारी कहलाते हैं… लेकिन उनके सामने जनता की समस्याएं रखने के बजाय नेता अपने वजूद से जूझते नजर आते हैं… वो भी सरकारी भोंपू की तरह अलख जगाते हैं… जागने वाले लोगों को सुलाते हैं… और सोते लोगों को सहलाते हैं… उन्हें पता है उन्हें पांच साल बाद जनता के बीच जाना है… इस दौरान कई आग जलती रहेगी, कई बुझती रहेगी… लेकिन उनकी लौ रोशन रहेगी… अब तो नेताओं को चुनाव का भी डर नहीं सताता… जनता को तो वैसे ही मुसलमानों का डर बताकर हिन्दूवाद जगाकर बहला लिया जाता है… इसीलिए शहर जलता रहेगा… हंटर चलता रहेगा… पीठ उधड़ती रहेगी और हम जय-जय सियाराम बोलतेे रहेंगे…
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