मुंबई । अभय देओल (Abhay Deol) ने गिनी-चुनी फिल्मों (Film) में काम किया है। उनका कहना है कि वह भेड़चाल में नहीं पड़ते बल्कि क्रिएटिविटी (Creativity) को चुनते हैं। अभय ने यह भी बताया कि उनसे कहा गया था कि भारत के लोग गरीब हैं इसलिए उनके लिए ऐसी फिल्में बनाई जाती हैं जिन्हें देखकर वे अपने दुख को भूल सकें। उन्हें विकसित सिनेम समझ नहीं आएगा। अभय ने बिना नाम लिए बताया कि ये सब उन्होंने अपने आसपास के लोगों से ही सुना था।
विदेशी फिल्में देखकर हुए बड़े
फिल्मफेयर से बातचीत में अभय देओल बोले, ‘हम विदेशी फिल्में देखकर बड़े हुए हैं और मुझे इस बात से परेशानी होती थी कि वे लोग ऐसा कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं। हम उन्हें सिर्फ बैकग्राउंड या कल्चर क्यों नहीं दे रहे? हर कोई हीरो या हिरोइन क्यों है? ये मैं 1980 और 1990 की बात कर रहा हूं। अब यह सुधर गया है लेकिन तब सब कुछ बहुत ब्लैंक ऐंड वाइट था।’
फिल्में बनाती हैं संस्कृति
अभय ने बताया, ‘हमें बताया जा रहा था कि हमारा देश गरीब है, यहां पढ़े-लिखे लोग नहीं हैं इसलिए आपको उन्हें स्पूनफीड करना पड़ता है। उन्हें उनकी दुखभरी जिंदगी से बाहर लाना पड़ेगा, पलायनवादी सिनेमा…और मैं बस उनसे ये कहना चाहता था कि लेकिन अगर हम उन्हें ऐसे ही ट्रीट करते रहेंगे तो वो कभी भी… क्योंकि फिल्में ही संस्कृति बनाती हैं।’
करना चाहते हैं क्रिएटिव काम
अभय से पूछा गया कि वह किसकी बात कर रहे हैं तो उन्होंने किसी एक शख्स का नाम नहीं लिया बस कहा कि 1980 के दशक में जब वह देओल खानदान में बड़े हो रहे थे तो उनके आसपास के लोगों से यही सीखा। अभय ने कहा कि वह क्रिएटिव काम करना चाहते हैं कि कॉम्पिटीशन में घुसना पसंद नहीं। इसके लिए उन्होंने शबाना आजमी और नसीरुद्दीन शाह जैसे एक्टर्स की राह पकड़ी और देव डी, मनोरमा सिक्स फीट अंडर जैसी फिल्में कीं।
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