बुधनी में तुलसी की हो गई फजीहत
बुधनी (Budhni) विधानसभा (Assembly) में सरकार (Government) ने कई मंत्रियों को भी प्रचार में झोंक रखा है। तुलसी भिया (Tulsi Bhai) भी गांव– गांव घूम रहे हैं। बुधनी के टीकामोड़ क्षेत्र में उन्होंने कह दिया कि यहां एक युद्ध चल रहा है और एक संकट है। अब भाजपा (BJP) की सेफ सीट कही जाने वाली बुधनी में कैसा युद्ध कैसा संकट? फिर भी चुनाव तो चुनाव है। तुलसी भिया ने मान लिया कि रमाकांत भार्गव मुश्किल में है, भले ही ये शिवराज की सीट है। यही नहीं जब वे लाडली बहनों को दी जाने वाली राशि का बखान करने लगे तो एक किसान ने कह दिया कि इधर से दे रहे हो और उधर बिजली बिल में ले रहे हो? इसका क्या मतलब। पेलवान को गुस्सा तो आया, लेकिन वे पी गए और किसान को चुनाव जीतने के दो दिन बाद समस्या का हल करने का वादा कर रवाना हो गए।
उपचुनाव बाद होगा इस्तीफों पर फैसला
कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी घोषित होने के बाद लगी इस्तीफों की लाइन का फैसला अभी नहीं हो पाया है। वैसे कहा जा रहा है कि जिन्होंने इस्तीफे देकर असंतोष जताया है, उन्हें मना लिया जाएगा। उपचुनाव के बाद ये कवायद शुरू हो जाएगी। पटवारी इन लोगों को चर्चा के लिए बुला रहे हैं। वैसे भी कइयों ने सीधे इस्तीफा न देकर काम नहीं करने में असमर्थता जताई है, इसलिए उन्हें बरकरार रखने की तैयारी है। वैसे सबकी निगाह इंदौर के कांग्रेसी नेता प्रमोद टंडन की तरफ है, क्योंकि उन्होंने साफ तौर पर पद अस्वीकार कर कांग्रेस से ही बाहर होने का ऐलान कर दिया था। अब उन्हें मनाया जाता है या फिर….
खुद ही कहते फिर रहे हैं मुझे नहीं बनाएंगे
भाजपा के नगर अध्यक्ष के दावेदार एक नेताजी इन दिनों अपने मुंह से ही कहते सुनाई दे रहे हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, मुझे तो वे नगर अध्यक्ष नहीं बनाएंगे। नेताजी कई बार इसके भुगतभोगी है। वे लाइन में सबसे आगे खड़े होते हैं, लेकिन जब कुछ मिलने की बारी आती है तो पूरी लाइन घूम जाती है और वे अपने आपको पीछे खड़ा हुआ पाते हैं। यह भी बता दें कि नेताजी के पास तुरुप का इक्का है, लेकिन उसका उपयोग नेताजी क्यों नहींकर रहे हैं, वे ही यह बता सकते हैं। कहने वाले कह रहे हैं कि इन्हें पद नहीं चाहिए तो फिर अपने आपको दावेदार क्यों बताते हैं?
कभी तय करते थे मंच पर कौन बैठेगा
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता संघ से संगठन में आए। सत्ता का स्वाद भी चखा, लेकिन शनिवार को नेहरू स्टेडियम में हुए कार्यक्रम में उनकी ऐसी दुर्गति होगी, यह कभी सोचा नहीं था। कभी उनका ऐसा जलवा हुआ करता था कि प्रदेश में उनके बगैर भाजपा का पत्ता नहीं हिलता था। खैर राजनीति में समय एक सा नहीं रहता। उन्हें मुख्य मंच पर जगह नहीं मिली और उससे दूर एक मंच पर बिठाया गया, जहां साधु महात्मा बैठे थे। वहीं से बैठे बैठे वे सारा मांजरा देखते रहे और सोच रहे होंगे कि जिन्हें उन्होंने आगे बढ़ाया, उन्होंने ही ऐसी स्थिति कर दी। उनके साथ दो नंबर के एक वरिष्ठ नेता भी थे। उनकी आंखें बयां कर रही थी कि वे नाराज हैं। वे भी कभी अपने आपको तो कभी मुख्य मंच पर बैठे नेताओं को देख रहे थे।
सक्रिय सदस्य नहीं बनाए पद की इच्छा रखने वालों ने
भाजपा के मंडल ओर वार्ड स्तर के कार्यकर्ताओं ने सोचा था कि इस बार भी सदस्यता अभियान में फर्जीवाड़ा चल जाएगा, लेकिन हुआ इसके उलट ही। जब सदस्य बनाकर सक्रिय सदस्य बनाने की बारी आई तो कईयों ने अपने हिसाब से संख्या गिना डाली, लेकिन नगर अध्यक्ष गौरव रणदीवे की सख्ती के चलते उन्हें अपने मोबाइल चेक करवाना पड़े, जिसमें लोड मोदी एप पर उनके द्वारा बनाए गए सदस्यों की वास्तविक संख्या आ गईं। इनमें तो कई वार्ड तथा मंडल के दावेदार हैं। गौरव ने भी कह दिया कि कम से कम 50 सदस्य तो बनाना ही होंगे। अब वे लोग सदस्य बनाने के लिए जहां भी का रहे हैं, वहीं वे पहले कह देते हैं कि हम तो सदस्य बन चुके। बेचारे मिन्नतें करते फिर रहे हैं कि कोई तो ऐसा मिले जो अभी तक सदस्य नहीं बना हो।
चुनावी माहौल में ठंडी पड़ी कांग्रेस
प्रदेश में दो बड़ी विधानसभा में उपचुनाव चल रहे है, लेकिन इंदौर की कांग्रेस ठंडी पड़ी हुई है। इंदौर शहर और ग्रामीण में तो मानो कांग्रेस केवल भोपाल और दिल्ली के आदेश बजाने में लगी रहती है। कोई कार्यक्रम आया तो ठीक, नहीं तो घर में बैठे हैं। ऐसा ही कुछ कार्यकारी अध्यक्ष भी कर रहे हैं। कहने को तो 5–5 कार्यकारी अध्यक्ष यहां बने हुए हैं, लेकिन इनमें से देवेंद्र यादव को छोड़ दिया जाए तो बाकी कुछ खास नहीं कर रहे हैं और जिलाध्यक्षों के बदलाव की लिस्ट का इंतजार कर रहे हैं। शहर अध्यक्ष चढ्ढा ने तो इस बार दिवाली पूजा तक नहीं की। उनके विरोधियों ने तो कह दिया कि माना उनके घर में गमी हुई थी, लेकिन उनकी दुकानों पर तो रोशनी चमक रही थी।
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
श्रमिक क्षेत्र के एक कांग्रेसी पार्षद को लेकर उनकी ही पार्टी के नेताओं ने बताया कि वे अपना कार्यकाल खत्म होने के पहले अपने श्रेत्र में अतिक्मण कर दुकानें तैयार करवा रहे हैं। इसके फोटो भी खींचकर विरोधियों ने रख लिए हैं कि चुनाव आयेगा तो काम आयेंगे कि पार्षद और उनके परिवारवालों ने जनसेवा के नाम पर क्या किया? हद तो तब हो गई जब उक्त पार्षद ने अपने ही पास की एक दुकान की जांच करवाने जोनल अधिकारी को भिजवा दिया। दुकानदार भी भाजपाई निकला और कार्रवाई रुकवा दी।
…शहर में हुए एक आयोजन से संघ और संगठन के कुछ नेता नाराज हैं। हालांकि नाराजगी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन आयोजकों को लेकर जो फीडबैक गया है, वह ठीक नहीं था। फिर भी आयोजन हुआ, लेकिन हिंदुत्व के हित में किए गए इस आयोजन में संघ का कोई बड़ा पदाधिकारी मंच पर नजर नहीं आया। भाजपा के कुछ नेता जरूर सीएम प्रोटोकाल के तहत उनके साथ थे।
संजीव मालवीय
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