वो तो चाहते ही हैं कि अनुच्छेद 370 फिर से लागू हो जाए… घाटी के आतंकी मुफ्त की रोटी खाएं… और फौजियों पर गोलियां बरसाएं… इसलिए सरकार बनते ही हंगामा शुरू कर डाला… विरोधियों को सदन में ही लात-घूंसों से पीट डाला… और आक्रोश की आग में जलते देशवासी मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के आस्तीनों के सांपों से घाटी को बचाने और कश्मीर को ही दिल्ली से चलाने की गुहार करने लगे… यह जायज भी है और कवायद भी है… सरकार बने जुम्मे-जुम्मे चार दिन नहीं हुए और आठ आतंकी घटनाएं अंजाम दे डाली… कौन नहीं जानता शेख अब्दुल्ला के वफादारों को या मुफ्ती मोहम्मद सईद के गद्दारों को…एक आतंक को पालता है, दूसरा आतंक के तलवे चाटता है…सईद परिवार ने आतंकी छोड़े थे तो शेख ने पाल-पोसकर बड़े किए थे…इन दोनों की ही बदौलत कश्मीर की बर्फ लाल हुई थी…निरपराध मारे गए थे…पंडित हकाले गए थे और फौजियों की लाशें बिछीं… जिस राज्य में पत्थरबाजी कर बच्चे पेट पालते हों…नौजवान हथियार उठाकर घर चलाते हों और महिलाएं आतंक की ढाल बनकर खड़ी हो जाती हों, वहां राष्ट्रवाद की कल्पना करना…देशप्रेम के बारे में सोचना नासमझी ही नहीं, बल्कि नादानी भी कही जा सकती है…केंद्रशासित होकर अच्छा भला कश्मीर चल रहा था…आतंक नियंत्रण में था और फौजियों का रुतबा रुअदब सडक़ों पर दिखता था…पर्यटकों ने कश्मीरियों की तकदीर बदल दी थी…रोजगार-कारोबार चलने लगा था…अनुच्छेद 370 हटने का न तो मलाल किसी के चेहरे पर नजर आ रहा था और न ही आतंक सर उठा रहा था…फिर केंद्र सरकार के जेहन में लोकतंत्र की खुजली शुरू हुई और आतंक…खौफ….दहशत… मौत सभी ने एक साथ घुसपैठ कर ली…कश्मीर का गुरूर लौटाने की सारी कोशिशों पर कश्मीरियों की चुनी हुई सरकार ने न केवल पानी फेर दिया, बल्कि देश की रक्षा के लिए जुटे फौजियों की जान लेना भी आतंकियों ने शुरू कर दिया…यह नादानी नहीं बेवकूफी थी… लोकतंत्र का अधिकार उन्हें दिया जाना चाहिए, जो राष्ट्रवादी हों…देशप्रेमी हों…देश से प्रेम करने वाले हों, न कि देश के गद्दार और गद्दारों के वफादार हों…कश्मीर में पाकिस्तानी घुसपैठियों की तादाद इस कदर है कि उनके जेहन में सोते-उठते, बैठते केवल भारत से गद्दारी का जहर निकलता है, जो कश्मीरियों में घुलता है…घाटी के लोगों को पाकपरस्त बनाया जाता है और फौजियों की जान लेने के लिए उकसाया जाता है…नतीजा सामने है… शेख अब्दुल्ला को सत्तानशीं हुए चंद दिन भी नहीं बीते कि हर दिन कश्मीर की गलियों से आतंक की गूंज सुनाई देने लगी है…खास बात यह है कि इस बार यह आतंक नया रूप लेकर आया है…पिछले दस सालों में सेना और केंद्र सरकार ने पाकपरस्त आतंकियों के हजारों खाते बंद करने के साथ ही उन्हें मारने और दरबदर बनाने के साथ मोहताजी के आलम में जीने को मजबूर कर दिया था…लेकिन कश्मीर में सरकार की बहाली के साथ ही ऐसे स्थानीय नौजवानों ने छोटे-मोटे संगठन बना लिए, जिनके जुर्म का पिछला कोई रिकार्ड नहीं है…यह लोग अनुच्छेद 370 हटने के बाद मुखर हुए…उत्तरप्रदेश और बिहारी मजदूरों को निशाना बनाने के साथ ही बाजारों में हमले कर आतंक की वापसी का संदेश दे रहे हैं…ऐसे आतंकियों के खात्मे के लिए जहां सेना ने हथियार उठाए, वहीं सत्ता के टेंटुए बने शेख अब्दुल्ला मिमियाते हुए बोले कि सेना आतंकियों को मारने के बजाय उन्हें पकड़े और पूछताछ करे…उन आतंकियों पर रहमदिली दिखाए, जो जान लेने पर आमादा हो जाते हैं…खौफ और रौब जमाने के लिए हमले की साजिश रचते हैं और उनकी ढाल कश्मीरी ही नहीं, बल्कि सरकार के नुमाइंदे तक बन जाते हैं… कश्मीर से आतंक को मिटाना है…फौजियों की शहादत पर रोक लगाना है तो शेख को सडक़ पर लाना होगा… कश्मीरी आतंक के तरफदार नेताओं को नजरबंदी में डालना होगा…कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाना होगा…एक बार फिर दिल्ली से ही कश्मीर को चलाना होगा…तभी आतंक का टेंटुआ दबेगा और खौफ और रौब मिटेगा…
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