नई दिल्ली: इस सर्दी में कड़ाके की ठंड (bitter cold) पड़ने के आसार हैं, और यह पिछले 25 साल का रिकॉर्ड तोड़ सकती है. एएमयू के भूगर्भ वैज्ञानिकों (Geologists of AMU) का कहना है कि उत्तरी भारत में ठंड बढ़ने का सीधा संबंध प्रशांत महासागर (pacific ocean) में चल रहे “ला-नीना” प्रभाव से है. यह जलवायु परिवर्तन उत्तरी भारत में तापमान को सामान्य से अधिक कम कर सकता है, जिससे इस बार ठंड बेहद तीव्र हो सकती है.
एएमयू के भूगोल विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ. सलेहा जमाल बताती हैं कि ला-नीना के कारण हमारे क्षेत्र में तापमान में गिरावट और उच्च दबाव वाली ठंडी हवाएं बढ़ेंगी, जो उत्तर भारत में ठंड का प्रकोप लाएंगी. उन्होंने कहा, “यह एक जलवायु चक्र है, जो मौसम में अप्रत्याशित बदलाव लाता है. जैसे कि बारिश पहले कम हुई, लेकिन फिर काफी ज्यादा बारिश से बाढ़ की स्थिति बनी. यही अस्थिरता ठंड में भी देखने को मिल सकती है.”
प्रोफेसर जमाल ने बताया कि ला-नीना का सीधा असर रबी और खरीफ की फसलों पर भी दिखेगा. मार्च और अप्रैल में असामान्य ठंड और बारिश से किसानों को नुकसान हो सकता है. उन्होंने कहा कि प्रशांत महासागर की हवाएं भूमध्य रेखा के समानांतर पश्चिम की ओर बहती हैं, जो गर्म पानी को दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर ले जाती हैं. अल-नीनो और ला-नीना जैसे प्रभाव न केवल मौसम बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर भी असर डालते हैं.
डॉ. जमाल के अनुसार, अल-नीनो और ला-नीना के प्रभाव आमतौर पर 9 से 12 महीने तक रहते हैं, लेकिन इनके आने का कोई तय समय नहीं होता. ये चक्र हर 2 से 7 साल में आते हैं और इनका असर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जलवायु को प्रभावित करता है. विशेष रूप से भारत का मानसून प्रशांत महासागर की जलवायु पर निर्भर रहता है, जिससे जलवायु में कोई भी बदलाव भारत के मौसम पर सीधा प्रभाव डालता है.
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