पटना । बिहार कोकिला (Bihar Nightingale)शारदा सिन्हा (Sharda Sinha)का आज अंतिम संस्कार(funeral today) किया जाएगा। शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान सिन्हा(Sharda Sinha’s son Anshuman Sinha) ने बताया था कि गुरुवार की सुबह राजेंद्रनगर आवास से गुलबी घाट के लिए अंतिम यात्रा निकलेगी। उन्होंने अंतिम इच्छा जाहिर की थी कि उनका अंतिम संस्कार गुलबी घाट पर हो। गुरुवार यानी आज राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार गुलबी घाट पर होगा। इससे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ कराने की घोषणा की थी। उन्होंने पटना के जिलाधिकारी को इसके लिए सभी आवश्यक व्यवस्था कराने का निर्देश दिया था। मुख्यमंत्री ने शारदा सिन्हा के राजेंद्रनगर स्थित आवास पर जाकर उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प-चक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी थी।
8 भाई-बहनों मं इकलौती थीं शारदा सिन्हा
आज दुनिया भर में स्वर कोकिला शारदा सिन्हा के करोड़ों चाहने वाले हैं। वहीं लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के पहले दिन शारदा सिन्हा का दुनिया से अलविदा कहना चाहने वालों को भावुक कर रहा है। हुलास पंचायत के वार्ड 2 में दिवंगत सुखदेव ठाकुर की पांचवी संतान शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को हुआ था। शारदा अपने 8 भाई-बहनों में इकलौती थी।
पिता ने शारदा सिन्हा को किया प्रोत्साहित
शारदा सिन्हा ने सातवीं कक्षा उत्तीर्ण कर सुपौल के विलियम्स हाईस्कूल में दाखिला लिया। यहां संगीत शिक्षक पंडित रघु झा ने उन्हें संगीत शिक्षा देते हुए शारदा के सुर-ताल को असाधारण करने में भूमिका निभाई। शारदा के लिए अभी मुख्य चुनौती आना बांकी था। दरअसल जानने वाले बताते हैं कि उस जमाने में स्टेज पर बेटियों का गायिकी करना ठीक नहीं माना जाता था। इसके कारण शारदा के गायिकी करने पर स्थानीय ग्रामीणों के साथ परिजनों के बीच दबे मुंह विरोध उठना शुरू हो गया था। इस बीच शारदा के पिता ने पूरा साथ दिया और उन्हें गायिकी करने के लिए प्रोत्साहित किया।
पहली बार गांव में हुनर का प्रदर्शन
हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही नवरात्र में छुट्टी पर शारदा सिन्हा अपने परिवार संग घर हुलास पहुंची थीं। इस दौरान हुलास पंचायत के ब्राह्मण टोला के दुर्गा मंदिर में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होना था। शारदा के पिता के कहने पर आयोजनकर्ताओं ने शारदा को अपना हुनर दिखाने का अवसर दिया। शारदा ने पहली बार इसी स्टेज पर अपनी प्रतिभा लोगों के सामने प्रस्तुत किया। इसके बाद लोग शारदा के गायिकी के कायल हो गए थे।
शारदा सिन्हा को था पान खाने का शौक
शारदा सिन्हा पान खाने की काफी शौकीन थी। वह नए-नए जगहों पर मिलने वाले पान का स्वाद लेने से पीछे नहीं हटती थी। यह बात और है कि मिथिला में मिलने वाले पान का स्वाद उन्हें बेहद पसंद था।
नौ महीने पहले हुलास पहुंची थी शारदा
शारदा सिन्हा महज नौ महीने पहले मार्च में अपने पैतृक गांव हुलास में भाई पदनाम शर्मा के पुत्र की शादी के रिसेप्शन में शिरकत करने पहुंची थी। इस दौरान वह गांव में अपने परिजनों के अलावा स्थानीय लोगों से मिलकर हाल जाना था। हुलास पंचायत वार्ड 2 निवासी चचेरे भाई विजय ठाकुर, ननद निर्मला देवी सहित अन्य परिजन बताते हैं कि किसी ने यह नहीं सोचा था कि शारदा दीदी का गांव आना आखिरी बार रह जाएगा।
शारदा सिन्हा के पैतृक गांव में सन्नाटा
सुप्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन की खबर सुनते ही मंगलवार की रात उनके पैतृक गांव सुपौल जिले के हुलास पंचायत के वार्ड 2 में मातम पसर गया। शारदा सिन्हा के प्रशंसकों के साथ उनके परिजनों के बीच दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। चाहने वालों के आसूं थम नहीं रहे हैं। हर कोई गमगीन है। साल 1978 में लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के प्रसिद्ध गीत उग हो सूरज देव गाकर उन्होंने लोकगायिका के तौर पर अपनी अलग पहचान बनाई।
जेपी नड्डा शारदा सिन्हा को देंगे श्रद्धांजलि
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा गुरुवार को एक दिवसीय दौरे पर पटना आ रहे हैं। वे लगभग तीन बजे पटना आएंगे। इसके बाद वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ गंगा किनारे अवस्थित छठ घाटों का भ्रमण करेंगे। इसके बाद भाजपा अध्यक्ष राजेन्द्रनगर जाएंगे। वहां वे बिहार कोकिला शारदा सिन्हा को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। इसके बाद वे दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगे।
शारदा सिन्हा को अंदाजा हो गया था कि अंत करीब है
शारदा सिन्हा के पुत्र अंशुमान सिन्हा ने भावुक होकर बताया कि उनकी मां ने एक जानलेवा बीमारी के खिलाफ बेहद कठिन लड़ाई लड़ी, लेकिन अंत में वह जीत नहीं सकीं। उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखे जाने से पहले ही उन्हें अंदाजा हो गया था कि अंत करीब है। उन्होंने मेरी बहन वंदना और मुझसे कहना शुरू कर दिया था कि चीजें बहुत कठिन होती जा रही हैं और हमें उनके बिना रहना सीख लेना चाहिए। गायन के प्रति उनका जुनून इतना था कि ऑक्सीजन सपोर्ट पर भी वह गुनगुना रही थीं। इसका एक वीडियो भी वायरल भी हो रहा है। उनके पति का निधन सितंबर में हो गया था। देवर डॉ. नंदकिशोर बताते हैं कि पति के श्राद्धकर्म के दौरान ही उन्होंने कहा था कि वह भी कुछ दिनों की मेहमान हैं।
गीत के लिए घर-जमीन दांव पर लगाया
महाकवि विद्यापति के गीत के लिए शारदा सिन्हा ने अपने घर एवं जमीन जायदाद को दांव पर लगा दिया था। महाकवि विद्यापति के भगवती गीत जय जय भैरवि असुर भयाउनि पशुपति भामिनि माया का करीब पचास वर्ष पहले रिकार्डिंग होना था। शारदा सिन्हा ने जब यह गीत गाकर एच एम वी के मैनेजर को सुनाया तो मना कर दिया कि ऐसा क्लासिकल गीत नहीं चलेगा। तब शारदाजी ने कहा रिकार्डिंग कराया जाये। यदि आपको घाटा लगेगा तो मैं अपनी घर-जमीन बेचकर भरपाई कर दूंगी। इसके बाद रिकार्डिंग हुआ तथा गीत हिट कर गया। मैथिली साहित्य संस्थान, पटना के कोषाध्यक्ष डॉ शिवकुमार मिश्र बताते हैं कि यह वाकया खुद पद्मभूषण शारदा सिन्हा ने 2018 में पटना संग्रहालय में सम्मान समारोह में सुनाया था।
शारदा सिन्हा ने 1974 के आंदोलन में भी भाग लिया था
केंद्रीय कृषि मंत्री रामनाथ ठाकुर ने बताया कि शारदा सिन्हा ने आपातकाल के विरोध में हुए आंदोलन में भाग लिया था। तब महिला समिति के सदस्य के रूप में उनकी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका हुआ करती थी। केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि 1974 में आंदोलन के क्रम में होने वाली सभाओं में भी वे बढ़ चढ़ कर भाग लेती थी। कभी पति के साथ तो कभी अकेले ही आंदोलन में आती थी। बीमार होने और एम्स में भर्ती होने के बाद वे उनका हाल चाल लेने गए थे, लेकिन उनसे बात करने का अवसर नहीं मिल सका।
संगीत शिक्षक थीं शारदा सिन्हा
शारदा सिन्हा के देवर डॉ. नंदकिशोर बताते हैं कि बड़े भाई ब्रजकिशोर से शारदा सिन्हा की शादी वर्ष 1970 में हुई थी। शारदा सिन्हा के पिता भी शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। ब्रजकिशोर समस्तीपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। डॉ. नंदकिशोर सिंह मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। शादी के बाद शारदा सिन्हा का रहन-सहन पति के साथ बाहर ही हुआ। उनके पति ब्रजकिशोर की नौकरी बाद में शिक्षा विभाग के अधिकारी के तौर पर हो गई। वह शिक्षा विभाग के डिप्टी डायरेक्टर पद से रिटायर हुए थे। बाद में शारदा सिन्हा की नौकरी भी समस्तीपुर के एक कॉलेज में संगीत शिक्षक के रूप में हो गयी थी।
शादी के बाद शारदा सिन्हा को मिली थी प्रसिद्धि
लोक गायिका शारदा सिन्हा की गायिकी पर रोक नहीं लगाने की शर्त पर ही उनके पिताजी ने बेगूसराय जिले के मटिहानी प्रखंड के सिहमा बबुरबन्ना में ब्रजकिशोर सिन्हा को अपनी बेटी का हाथ सौंपा था। यह गांव दियारा क्षेत्र में है। शारदा सिन्हा की शादी के समय उनके ससुराल का घर फूस का था। लोक गायिका के रूप में उन्हें प्रसिद्धि शादी के बाद ही हुई। उन्हें गायिका के रूप में स्थापित करने में उनके परिवार खासतौर पर उनके पति का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनके निधन से सिहमा गांव गम में डूबा है।
कई मंत्रियों ने शारदा सिन्हा को दी श्रद्धांजलि
बिहार के मुख्यमंत्री ने स्थानिक आयुक्त, नई दिल्ली को शरदा सिन्हा के परिवार के सदस्यों से समन्वय स्थापित कर उनका पार्थिव शरीर वायुयान से पटना भिजवाने का निर्देश दिया था। पार्थिव शरीर के पटना एयरपोर्ट पहुंचने पर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, विजय सिन्हा, सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री माहेश्वर हजारी, नगर विकास मंत्री नितिन नवीन, पूर्व केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे सहित अन्य गणमान्य लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित की थी।
गुलाबी घाट पर अंतिम संस्कार
बुधवार को शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान सिन्हा ने फेसबुक पोस्ट के जरिए शारदा सिन्हा के अंतिम संस्कार को लेकर जानकारी दी थी। अंशुमान सिन्हा ने लिखा था, ‘मां का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन हेतु हमारे आवास “नारायणी” , रोड नंबर 6 , राजेंद्र नगर ,पटना में रखा गया है। मां ( शारदा सिन्हा) जी की अंतिम यात्रा कल सुबह 7 बजे उनके आवास राजेंद्र नगर रोड नंबर 6 से प्रस्थान करेगी । अंतिम संस्कार का कार्यक्रम गुलबी घाट पर संपन्न किया जाएगा।’
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