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    मन्नत मांगकर उपवास रखने वाले लोगों को रौंदकर निकलती हैं गाँव की गायें

  • November 02, 2024

    • दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा पर उज्जैन जिले के गाँव में निभाई जाती है यह परंपरा जिसमें होते हैं ग्रामीण घायल
    • उज्जैन जिले के भिड़ावद गाँव में आज सुबह गायों के नीचे लेटे लोग-हालांकि आज कोई घायल नहीं हुआ

    उज्जैन। जिले के बडऩगर तहसील के गाँव के भिड़ावद में सदियों से चली आ रही एक परंपरा लोगों के न सिर्फ रोंगटे खड़े कर देती है बल्कि देखने वालो के दिल भी दहल जाते हैं। चार हजार लोगों की आबादी वाले भिड़ावद गाँव में दीपावली के दूसरे दिन दर्जनों लोग मन्नते लेकर सैंकड़ों गायों के पैरों तले रुधने के लिए लेट जाते हैं। कुछ ही पलों में सैकड़ों गाय जमीन पर लेटे लोगों के ऊपर से गुजर जाती है। इस मंजर को देखने के लिए हर साल इस गाँव में अल सुबह से लोग जमा होते हैं।


    उज्जैन से करीब से 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बडऩगर तहसील के ग्राम भिड़ावद में अनूठी और रोगंटे खड़ी कर देने वाली आस्था देखने को मिली। गाँव में आज सुबह गौरी पूजन किया गया। पूजन के बाद ग्रामीण जमीन पर लेटे और उनके ऊपर से दौड़ती गाय को देख कई लोगों की साँसें थम गई। मान्यता है कि ऐसा करने से गाँव में खुशहाली आती है और उपवास रखने वाले लोगों की मन्नते पूरी होती हैं। परम्परा के पीछे लोगों का मानना है कि गाय में 33 करोड़ कोटि के देवी देवताओं का वास रहता है और गाय के पैरों के नीचे आने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है। बडऩगर तहसील के ग्राम भिडावद में गोवर्धन पूजा पर सैकड़ों दौड़ती हुई गाय गाँव के लोगों को रोंदती हुई उनके ऊपर से निकली। दीपावली के बाद पड़वा और गोवर्धन पूजा के दिन इस अनूठी परंपरा का निर्वहन कई वर्षों से होता आ रहा है। मन्नत पूरी होने पर ग्रामीण प्रत्येक वर्ष इस परंपरा में भाग लेते है। परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है इस परंपरा में उपवास रखने वाले ग्रामीण 5 दिन मंदिर में रहकर भजन-कीर्तन करते हुए मंदिर में ही रहते हैं और दीपावली के अगले दिन सुबह गायों के पूजन के बाद गाँव में जमीन पर लेट जाते हैं। इसके बाद गाँव की एक दर्जन से अधिक गाय उनके ऊपर से एक साथ दौड़ती हुई निकलती है। परम्परा अनुसार दीपावली के पाँच दिन पहले सभी ने ग्यारस के दिन अपना घर छोड़ दिया। गाँव के माता भवानी के मंदिर में आकर रहने लगे थे। दीपावली के अगले दिन मन्नत धारियों को गायों के सामने जमीन पर लेटाया गया और ढोल बजाकर एक साथ गायों को इनके ऊपर से निकाला गया। दीपावली के बाद भिड़ावद गाँव के ग्रामीण सूरज निकलने से पहले ही सदियों से चली आ रही गौरी पूजन की परंपरा की तैयारियों में जुट जाते हैं। सूरज निकलते ही मंदिरों में घंटियाँ बजने लगती हैं। माता का रूप माने जाने वाली सैकड़ों गायों को स्नान कराया जाता है। इनके सींग और शरीर को आकर्षक रंगों से सजाया जाता है। इसके बाद गाँव के लोग चौक में जमा हो जाते हैं। ग्रामीण अपनी गायों को तैयार करते है। गाय जब उपवासधारी लोगों के ऊपर से निकल जाती है, उसके बाद गाँव में जश्न शुरू हो जाता है। इसके बाद गाँव में जुलूस निकाला जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में ये परंपरा कब शुरू हुई किसी को याद नहीं लेकिन गाय के पैर के नीचे आने के बाद भी आज तक कोई भी घायल नहीं हुआ है। ग्रामीण गाय को सुख समृद्धि और शांति का प्रतीक मानते है। गाँव के लोग मन्नतधारियों को साथ लेकर गाँव के चौक में जमा होते है यहाँ पर माँ गौरी (गौ माता) का पूजन किया जाता है, ढोल धमाकों के बीच चौक में माँ गौरी की पूजा के लिए मन्नती पूजा की थाली सजा कर लाते है जिसमें पूजन सामग्री के अलावा गाय का गोबर विशेष रूप से रखा जाता है जिसकी पूजा साक्षात गौरी के रूप में की जाती है। पूजा के बाद नारियल फोड़ कर पूजा संपन्न करते है और फिर माँ गौरी का आह्वान परंपरागत गीत गाकर गाँव के चौक में आने की विनती करते है और सुख, शांति का आशीर्वाद देने का आह्वान करते है। भिड़ावद गाँव के राजू चौधरी ने बताया कि इस साल पाँच लोग लाखन अग्रवाल, राधेश्याम अग्रवाल, रामचंदर चौधरी, कमल मालवीय, सोनू सिसौदिया ने उपवास रखा है। इन्हीं लोगों के ऊपर से गाय रौंदते हुए निकली है लेकिन किसी को कोई चोंट नहीं आई है। ग्रामीणों का भी मानना है कि सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा में आज तक कोई घायल नहीं हुआ है ना कोई जनहानि हुई है।

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