नयी दिल्ली। उच्च कार्बन उत्सर्जन परिदृश्य के तहत जलवायु परिवर्तन के कारण 2070 तक एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 16.9 प्रतिशत का घाटा हो सकता है, जबकि भारत में जीडीपी में 24.7 प्रतिशत का घाटा हो सकता है। एक नई रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया है।
इसमें कहा गया है कि यदि जलवायु संकट में तेजी जारी रही तो इस क्षेत्र के 30 करोड़ लोग तटीय जलप्लावन के खतरे में आ सकते हैं, तथा 2070 तक प्रतिवर्ष खरबों डॉलर मूल्य की तटीय परिसंपत्तियों को नुकसान पहुंच सकता है।
एडीबी के अध्यक्ष मासात्सुगु असाकावा ने कहा, “जलवायु परिवर्तन ने इस क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय तूफानों, गर्म लहरों और बाढ़ से होने वाली तबाही को बढ़ा दिया है, जिससे अभूतपूर्व आर्थिक चुनौतियां और मानवीय संकट बढ़ा है।”
उन्होंने कहा कि इन प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल, अच्छी तरह से समन्वित जलवायु कार्रवाई आवश्यक है, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।
उन्होंने कहा कि यह जलवायु रिपोर्ट तत्काल अनुकूलन आवश्यकताओं के वित्तपोषण के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है और हमारे विकासशील सदस्य देशों की सरकारों को न्यूनतम लागत पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के तरीके के बारे में आशाजनक नीतिगत सिफारिशें प्रदान करती है।
रिपोर्ट में कहा गया, “साल 2070 तक उच्च उत्सर्जन परिदृश्य के तहत जलवायु परिवर्तन से एशिया और प्रशांत क्षेत्र में जीडीपी में 16.9 प्रतिशत की कुल हानि हो सकती है। इस क्षेत्र के अधिकांश भाग को 20 प्रतिशत से अधिक की हानि का सामना करना पड़ेगा।”
रिपोर्ट के अनुसार, “मूल्यांकित देशों और उपक्षेत्रों में, ये नुकसान बांग्लादेश (30.5 प्रतिशत), वियतनाम (प्रतिशत), इंडोनेशिया (प्रतिशत), भारत (24.7 प्रतिशत), ‘शेष दक्षिण पूर्व एशिया’ (23.4 प्रतिशत), उच्च आय वाले दक्षिण पूर्व एशिया (22 प्रतिशत), पाकिस्तान (21.1 प्रतिशत), प्रशांत (18.6 प्रतिशत) और फिलीपींस (18.1 प्रतिशत) में केंद्रित हैं।”
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