नई दिल्ली. इंडोनेशिया (Indonesia) में बड़ी संख्या में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे रोहिंग्या मुस्लिमों (Rohingya Muslims) वहां के स्थानीय लोगों ने नाव (boat) से नीचे नहीं उतरने दिया. लकड़ी की नाव में सवार होकर 140 भूखे रोहिंग्या मुस्लिम इंडोनेशिया के उत्तरी प्रांत आचे के तट से लगभग 1 मील (0.60 किलोमीटर) दूर उतरने की कोशिश कर रहे थे. इनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे शामिल थे जिन्हें स्थानीय निवासियों (Local residents) ने उतरने नहीं दिया.
स्थानीय पुलिस ने बताया कि बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार से दक्षिण आचे जिले के लाबुहान हाजी के तट तक करीब दो हफ़्ते की यात्रा के दौरान तीन रोहिंग्या की मौत हो गई. अधिकारियों ने रविवार से 11 रोहिंग्या को उनकी तबीयत बिगड़ने के बाद सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया.
‘हम नहीं चाहते यहां अशांति पैदा हो’
दक्षिण आचे में मछुआरा समुदाय के प्रमुख मोहम्मद जबल ने कहा, “हमारे मछुआरा समुदाय ने उन्हें इसलिए यहां नहीं उतरने दिया क्योंकि हम नहीं चाहते हैं कि अन्य जगहों पर जो कुछ हुआ वो यहां हो. वो जहां गए वहां स्थानीय लोगों के बीच अशांति पैदा हुई है.” बंदरगाह पर लटके एक बड़े बैनर पर लिखा था: “साउथ आचे रीजेंसी के लोग इस क्षेत्र में रोहिंग्या शरणार्थियों के आगमन को अस्वीकार करते हैं.”
आचे पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, रोहिंग्या मुस्लिमों का समूह 9 अक्टूबर को कॉक्स बाजार से रवाना हुआ जो मलेशिया जाना चाहता था. नाव पर सवार कुछ यात्रियों ने कथित तौर पर दूसरे देशों में जाने के लिए पैसे दिए थे. जबल ने कहा कि स्थानीय निवासियों ने समूह को भोजन दिया है. इसके अलावा शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त ने भी उन्हें भोजन उपलब्ध कराया.
बांग्लादेश से रवाना हुई थी नाव
पुलिस के अनुसार, जब नाव बांग्लादेश से रवाना हुई थी, तब उसमें 216 लोग सवार थे और उनमें से 50 कथित तौर पर इंडोनेशिया के रियाउ प्रांत में उतरे थे.आचे पुलिस ने कथित तौर पर लोगों की तस्करी के लिए तीन संदिग्धों को गिरफ्तार किया है.
म्यांमार से शरणार्थी के रूप में लगभग 10 मुस्लिम रोहिंग्या बांग्लादेश में रहते हैं. इनमें लगभग 740,000 वो लोग शामिल हैं, जो 2017 में म्यांमार में हुई क्रूर हिंसा के बाद वहां से भाग गए थे. म्यांमार में रोहिंग्या अल्पसंख्यकों को व्यापक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है और अधिकांश को नागरिकता नहीं दी जा रही है.
थाईलैंड और मलेशिया की तरह इंडोनेशिया भी संयुक्त राष्ट्र के 1951 शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है और उन्हें (शरणार्थियों) स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है. हालांकि, यह देश आम तौर पर संकट में फंसे शरणार्थियों को अस्थायी आश्रय प्रदान करता है.
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