इंदौर, विकाससिंह राठौर। इंदौर में उधार की डबल डेकर डेमो बस लाकर वाहवाही बटोरने वाले नगर निगम के लिए शहर में इन बसों का संचालन संभव नहीं है। वैसे भी ये बसें बस निर्माता कंपनी ने इंदौर में अपने फिजिबिलिटी सर्वे के लिए भेजी हैं, जिसका सेहरा निगम अपने सिर बांध रहा है। बस की कीमत 2 करोड़ से ज्यादा होना और ज्यादातर मार्गों पर इनका जाना संभव न होना ही बताता है कि इंदौर के लिए ये डबल डेकर बसें डबल घाटा बसें साबित होंगी। शहर में मुंबई से आई डबल डेकर बस न तो इंदौर के किसी सरकारी या निजी कंपनी ने खरीदी है, न ही इसे खरीदने के लिए कोई तैयार है। अभी बस इन बसों को शहर में चलाकर देखा जा रहा है। एक माह तक शहर के अलग-अलग मार्गों पर दौड़ाने के बाद इसे वापस भेज दिया जाएगा। इस बस को लाने के लिए भी कोई खास प्रयास इंदौर निगम या एआईसीटीएसएल की ओर से नहीं हुए हैं, बल्कि इसे निर्माता कंपनी ने खुद अपने प्रचार और सर्वे के लिए भेजा है, ताकि वो बसें इंदौर सहित अन्य शहरों में भी बेच सके।
इलेक्ट्रिक बसों को मिली थी सब्सिडी, लेकिन डबल डेकर को मिलना मुश्किल
इंदौर में अभी 70 इलेक्ट्रिक बसें संचालित हो रही हैं। इनमें 30 बीआरटीएस पर और 40 सिटी बसों के रूप में। इन बसों की कीमत करीब पौने दो करोड़ है। इतनी महंगी बस को इंदौर में लाना संभव नहीं था, लेकिन केंद्र सरकार की फास्टर एडोप्शन एंड मैन्यूफेक्चरिंग ऑफ हाईब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल (फेम) योजना के तहत मिली 60 से 70 प्रतिशत सब्सिडी के बाद इन बसों को लाया जा सका है, लेकिन डबल डेकर बस को ऐसी सब्सिडी मिलना संभव नहीं माना जा रहा है। इसके कारण इतनी महंगी बस न तो कर्ज में घाटे में जाता बोर्ड और न ही कोई ऑपरेटर ला सकता है।
2016 से बनाई जा रही है योजना, लेकिन कभी सफल नहीं हुई
इंदौर में मुंबई की तरह डबल डेकर बसें चलाने की योजना 2016 से बनाई जा रही है। तत्कालीन एआईसीटीएसएल के सीईओ संदीप सोनी ने भी इसके लिए ऑपरेटर्स सहित बस निर्माता कंपनियों से संपर्क किया था, लेकिन इंदौर में ज्यादातर सडक़ों पर ऐसी बसों का जाना संभव न होना और लागत में महंगा होना इन बसों के न चल पाने का सबसे बड़ा कारण है। अब इन बसों का इलेक्ट्रिक होना भी एक नई परेशानी के तौर पर जुड़ गया है।
बस की कम रेंज और मेंटेनेंस भी बड़ी चुनौती
इलेक्ट्रिक बसों को लेकर सबसे बड़ी परेशानी इसकी रेंज है, यानी फुल चार्ज होने के बाद यह कितना चल पाती हैं। अभी इंदौर में चल रही बसें 150 किलोमीटर का दावा करती हैं, लेकिन अकसर 100 से 120 किलोमीटर बाद बंद होने लगती हैं। ऐसे में भी ऑपरेटर्स परेशान होते हैं कि बसें चलाने के समय उन्हें बसों को दो से तीन घंटे चार्ज करना पड़ता है। यही परेशानी डबल डेकर में भी होगी। साथ ही इन बसों का मेंटेनेंस भी बड़ी चुनौती है। डीजल और सीएनजी बसों का मेंटेनेंस शहर में आसानी से हो जाता है, लेकिन इलेक्ट्रिक बसों की मेंटेनेंस में सबसे ज्यादा परेशानी आती है।
टेंडर ही नहीं हुए, कैसे लाएंगे बसें
शहर के महापौर और एआईसीटीएसएल बोर्ड के अध्यक्ष शहर के सपने दिखा रहे हैं कि जल्द ही इंदौर में डबल डेकर बसें चलाई जाएंगी। लेकिन हकीकत ये है कि इन बसों को यहां संचालित करने के लिए अब तक बोर्ड ने कोई टेंडर तक नहीं किए हैं। ऐसे में कैसे ये बसें जल्द ही शहर में चल पाएंगी? यह सबसे बड़ा सवाल है। सूत्रों की माने तो बहुत ज्यादा दबाव रहा तो बमुश्किल दो से तीन बसें इंदौर में लाई जा सकती हैं, निगम 10 बसें लाने की बात कर रहा है, लेकिन इसके लिए 20 करोड़ का खर्च करने वाला कोई ऑपरेटर उसके पास मौजूद नहीं है।
इंदौर को बसें देने वाली कंपनी की ही है बस
जानकारी के मुताबिक ये बस स्वीच मोबिलिटी कंपनी की है। इसी कंपनी की इलेक्ट्रीक बसें इंदौर के बीआरटीएस में दौड़ रही हैं। बताया जा रहा है कि कंपनी खुद चाहती थी कि डबल डेकर बस का भी इंदौर में ट्रायल हो और सफल होने पर इसे इंदौर में चलाया जाए। इसके लिए प्रबंधन ने ऑपरेटर्स से चर्चा भी की, लेकिन बस की भारी लागत और फायदे से ज्यादा नुकसान देखते हुए अब तक किसी भी ऑपरेटर ने इसमें रुचि नहीं दिखाई है।
महापौर ने कबूला…
सर्वे के लिए लाए हैं, सर्वे के बाद ही बता पाएंगे
डबल डेकर बसों को इंदौर में फिजिबिलिटी सर्वे के लिए ही लाए हैं। इनके संचालन को लेकर नीचले तार जैसी बातें कोई परेशानी नहीं है, इन्हें हटाया जा सकता है। यह चल पाएंगी या नहीं यह सर्वे के बाद ही बता पाऊंगा। पर्यटन के लिए डबल डेकर बस जरूर चलाई जाएगी।
– पुष्यमित्र भार्गव, महापौर
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