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    ईरान-इजरायल से भारत खरीदता है ये चीजें, अब बढ़ सकता है संकट !

  • October 07, 2024

    नई दिल्‍ली। पश्चिम एशिया लगातार संकट (West Asia continuing crisis) और असुरक्षा में है. इजराइल और हमास (Israel and Hamas) के बीच सीधे सैन्य टकराव के रूप में शुरू हुआ मामला क्षेत्रीय सुरक्षा संकट में बदल गया है. हिज़्बुल्लाह, कताइब हिज़्बुल्लाह, हशद अल-शबी, हौथिस, ईरान, पाकिस्तान और संयुक्त राज्य अमेरिका अब एक टकराव के मुहाने पर खड़े हैं.

    गाजा पर इज़राइल के हमले को 100 दिन से ज्यादा हो चुके हैं और अब तक 24000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. इस संकट का कहीं कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है. इसी बीच अब ईरान द्वारा इजराइल पर हमला एक नए संकट और नई आशंकाओं को बल दे रहा है. ईरान ने इज़राइल पर करीब 200 मिसाइलें दागीं, जो दिखाता है कि मिडिल ईस्ट में तनाव कितने चरम पर है. अब अगर इजराइल जवाबी सैन्य कार्रवाई करेगा (जिसकी प्रबल संभावना है) तो फिर जंग और बढ़ेगी.



    ईरान और इजराइल का इतिहास
    ईरान-इजराइल के बीच संघर्ष नया नहीं है. इससे पहले अप्रैल 2024 में ईरान ने ड्रोन मिसाइल द्वारा इजरायल पर हमला किया था, जो कि सीरिया में उसकी एंबेसी पर इजराइल के हमले का जवाब था. इस हमले में ईरान के 15 नागरिक मरे गए थे. इसके अलावा जनवरी 2020 में अमेरिका ने जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या की थी जिसके जवाब में ईरान ने इराक में अमेरिकी अड्डों पर हमला किया था. हालांकि उस समय क्षेत्रीय मुद्दों और वैश्विक परिदृश्य के कारण युद्ध की स्थिति नहीं बनी. लेकिन इस बार इजराइल ने आक्रामक नीति अपनाने की बात कही है. नेतन्याहू ने ईरान को गंभीर परिणाम के लिए खुलेआम चेताया है. उन पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दबाव भी है. गाजा पट्टी पर हमले के बाद उन्हें तमाम आलोचनाएं झेलनी पड़ीं लेकिन वे लगातार हिज़्बुल्लाह और हमास के खात्मे की बात कर रहें है. 1 अक्टूबर को टीवी संदेश में ईरान के एक असंतुष्ट तबके से राजनीतिक बदलाव की बात कही.

    इस पूरे माहौल में यूनाइटेड नेशंस की भूमिका न के बराबर है. वो लगातार युद्ध को न बढ़ाने की अपील कर रहा है, लेकिन उसकी बात का कोई मतलब नहीं है. उधर, अमेरिका अपने प्रेसिडेंशियल इलेक्शन में व्यस्त है, लेकिन आतंकवाद के मुद्दे पर वह इजराइल के साथ डटकर खड़ा है. जबकि रूस अभी भी यूक्रेन युद्ध से उबर रहा है और चीन भी दूर होने के कारण कम प्रभावित दिख रहा है. लेकिन दोनों एक तरीके से ईरान के खेमे में हैं. भारत लगातार शांति का संदेश देने और तनाव खत्म करवाने का प्रयास कर रहा है. कुल मिलाकर पश्चिम एशिया एक कठिन समय में है, जिसमे बड़ी शक्तियां ज्यादा कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं दिख रही हैं. जाहिर तौर पर ये बिंदु संकट और संघर्ष को और ज्यादा व्यापक करेंगे.

    भारत की चिंता और भूमिका
    इस पश्चिम एशियाई संकट में भारत के लिए तीन चुनौतियां नजर आ रही हैं. पहला- इजराइल-हमास संघर्ष में भारत ने शुरू से ही बहुत ‘सकारात्मक तटस्थता’ बनाए रखी है पर हालांकि करीब 8.7 मिलियन भारतीय पश्चिम एशियाई देशों में रहते हैं और काम करते हैं. इस प्रकार की राजनीतिक अस्थिरता, हिंसा और संघर्ष उन सभी को प्रभावित करेगा. विदेश में काम करने वाले भारतीयों द्वारा राजस्व और प्रेषण यहां आता है, जो विदेशी मुद्रा का स्त्रोत भी है. दूसरा- भारत अब अपना लगभग 40% तेल रूस से लेता है.

    पर इस तेल के अलावा आयात का बड़ा हिस्सा पारंपरिक रूप से पश्चिम एशिया- इराक, सऊदी, संयुक्त अरब अमीरात से होता है. तनाव बढ़ने से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ गई हैं, जिसका असर भारत पर भी देखने को मिल सकता है. तीसरा- पिछले वर्ष के संघर्ष ने भारत की कनेक्टिविटी योजनाओं में बाधा उत्पन्न की है- IMEEC की घोषणा हुए एक वर्ष से अधिक समय हो गया है, G20 में लॉन्च होने के एक महीने बाद शुरू हुए संघर्ष के कारण संस्थापकों की एक भी बैठक नहीं हुई है.

    ईरान-आईएनएसटीसी, चाबहार आदि के माध्यम से कनेक्टिविटी की भारत की योजनाओं पर क्षेत्र में किसी भी संघर्ष का अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है. इस संघर्ष के कारण इजराइल के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध भी खतरे में हैं. भारत की राजनितिक प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है, क्योंकि वह पश्चिम एशियाई क्षेत्र में लगातार शांति स्थापित करने का प्रयास कर रहा है और वैश्विक दक्षिण में अपने नेतृत्व के लिए अपना दावा भी कर रहा है.

    भारत की प्राथमिकता
    भारत, पश्चिम एशिया में लगातार शांति की बात करता रहा है. वह दोहराता रहा है कि इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष पर उसकी सैद्धांतिक नीति है. भारत ने दो राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया है लेकिन इस संघर्ष में कूटनीतिक तौर पर रणनीतिक बचाव बनाए रखा है. भारत का यह स्पष्ट मत है कि इज़राइल पर हमास के 7 अक्टूबर के हमले को वो “आतंकवादी हमला” मानता है, और यह भी कहता है कि यह मौजूदा तनाव का “मूल कारण” है. एक तरीके से हमास वाले मसले पर भारत, इजरायल के साथ खड़ा है. अबहालिया घटना पर लौटें तो भारत के लिए ईरान हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है. दोनों देशों का साझा सभ्यतागत इतिहास है.

    फ़ारसी और संस्कृत भाषाओं में बहुत समानता है. कुछ बाधाओं के बावजूद, पीएम मोदी ने मई 2016 में ईरान का दौरा किया और ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने फरवरी 2018 में भारत का. दोनों यात्राओं के दौरान मध्य एशिया और अफगानिस्तान में व्यापार, कनेक्टिविटी और पारगमन पर केंद्रित कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए.

    भारत भले ही थोड़ी मात्रा में ईरान से कच्चा तेल लेता है लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी भारत का बजट बिगाड़ने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती हैं. इससे रुपये पर भी दबाव पड़ सकता है और विदेशी पूंजी प्रवाह पर भी नकारात्मक असर हो सकता है. ईरान से भारत न केवल कच्चा तेल बल्कि सूखे मेवे, रसायन और कांच के बर्तन भी खरीदता है. ईरान के इजरायल पर हमले से सप्लाई चेन प्रभावित हो सकती है जिससे इस व्यापार पर भी असर होगा. कुल मिलाकर ईरान और इजराइल दोनों भारत के लिए अहम हैं. इसीलिये भारत नहीं चाहता कि ये संघर्ष व्यापक हो.

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