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    स्पर्म के मालिक की सहमति से मौत के बाद भी बच्चा पैदा करने पर कानूनी रोक नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

  • October 05, 2024

    नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने शुक्रवार को राजधानी के सर गंगाराम अस्पताल (Sir Gangaram Hospital) को एक मृत व्यक्ति के फ्रीज कराए गए स्पर्म सरोगेसी (Sperm surrogacy) से बच्चा पैदा करने के लिए उसके माता-पिता (Parents) को सौंपने के निर्देश दिए। इस दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि यदि स्पर्म या ऐग के मालिक की सहमति प्राप्त हो जाए तो उसकी मौत के बाद बच्चा पैदा करने पर कोई रोक नहीं है। मौत के बाद प्रजनन का मतलब एक या दोनों जैविक माता-पिता की मृत्यु के बाद सहायक प्रजनन तकनीक (सरोगेसी) (Assisted reproductive technology (surrogacy) का उपयोग करके गर्भधारण की प्रक्रिया से है।


    जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने इस तरह के पहले निर्णय में कहा, “वर्तमान भारतीय कानून के तहत, यदि स्पर्म या ऐग के मालिक की सहमति का सबूत पेश किया जाता है, तो उसकी मौत के बाद प्रजनन पर कोई रोक नहीं है।” अदालत ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय इस निर्णय पर विचार करेगा कि क्या मौत के बाद प्रजनन या इससे संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए किसी कानून, अधिनियम या दिशा-निर्देश की आवश्यकता है।

    अदालत ने यह फैसला सुनाते हुए सर गंगाराम अस्पताल को निर्देश दिया कि वह दंपती को उनके मृत अविवाहित बेटे के संरक्षित रखे गए स्पर्म उन्हें तत्काल प्रदान करें, ताकि सरोगेसी के माध्यम से उनका वंश आगे बढ़ सके।

    क्या है मामला
    याचिकाकर्ता के कैंसर से पीड़ित बेटे की कीमोथेरेपी शुरू होने से पहले 2020 में उसके वीर्य के नमूने को फ्रीज करवा दिया गया था, क्योंकि डॉक्टरों ने बताया था कि कैंसर के इलाज से बांझपन हो सकता है। इसलिए उनके बेटे ने जून 2020 में अस्पताल की आईवीएफ लैब में अपने स्पर्म को फ्रीज करने का फैसला किया था। जब मृतक के माता-पिता ने वीर्य का नमूना लेने के लिए अस्पताल से संपर्क किया तो अस्पताल ने कहा कि अदालत के उचित आदेश के बिना नमूना जारी नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने 84 पेज के फैसले में कहा कि याचिका में संतान को जन्म देने से संबंधित कानूनी व नैतिक मुद्दों समेत कई महत्वपूर्ण मसले उठाए गए हैं। अदालत ने कहा, “माता-पिता को अपने बेटे की अनुपस्थिति में पोते-पोती को जन्म देने का मौका मिल सकता है। ऐसे हालात में अदालत के सामने कानूनी मुद्दों के अलावा नैतिक, आचारिक और आध्यात्मिक मुद्दे भी होते हैं।”

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