साफ कमरे में कचरा (kachara) बिखेर दो… फिर साफ करने के लिए कहो… धुले हुए कपड़े (Clothes) जमीन पर रगड़ दो… फिर धोने के लिए कहो… बर्तनों (Pottery) के ढेर लगा दो और खाने में नुक्स निकालते रहो… बहू (daughter-in-law) को सताने के लिए निर्दयी (cruel) सास (mother-in-law) जिस तरह प्रपंच रचाती है, उसी तरह भाजपा (BJP) भी अपने कार्यकर्ताओं की न केवल बेवजह जान निकालती है, बल्कि खुद को भी दांव पर लगाकर उन्हें आजमाती है… 75 साल की मेहनत से भाजपा ने गुलशन सजाया… एक-एक फूल चुन- चुनकर गुलदस्ता बनाया… जिन गुलों की महक ने उन्हें सत्ता का सुख और सुकून पहुंचाया उन्हीं गुलों को नोंचकर उसकी खुशबू को रौंदकर उसी गुलशन को तोड़कर फिर से नया बाग बनाना… नए गुल खिलाना और जनसंघ से जनता पार्टी और जनता पार्टी से भारतीय जनता पार्टी के सफर को नया आयाम देने के लिए सदस्यता अभियान चलाने का तुक समझ में नहीं आया… सारे नेता कामकाज छोड़कर सदस्य बनाने में भिड़े हैं… प्रधानमंत्री से लेकर सारे मंत्री और मुख्यमंत्री दोबारा सदस्यता ले रहे हैं और नेताओं से लेकर कार्यकर्ता तक लोगों से हाथ जोड़-जोड़कर सदस्य बनाने को कह रहे हैं… कुछ लक्ष्य की लाज बचा रहे हैं… कुछ लक्ष्य से पीछा छुड़ाना चाह रहे हैं… कुछ फर्जी सदस्य बना रहे हैं… कुछ जबरिया सदस्य बनाने का आरोप लगा रहे हैं… विरोधी मजाक उड़ा रहे हैं… पता नहीं भाजपाई अपने कार्यकर्ताओं से क्या चाह रहे हैं… नया भाजपाई झंडा उठाने नहीं आएगा… बिना मतलब के रैलियों में नहीं जाएगा… धन तो दूर है, तन-मन देने के लिए वक्त निकालना वक्त खराब करना मानकर टरकाएगा… हां, इस अभियान का फायदा असामाजिक तत्व जरूर उठाएंगे… सदस्य बनने के बाद पार्टी का तमगा लगाकर लोगों को डराएंगे-धमकाएंगे और अधिकारियों पर रौब जमाएंगे… यह सदस्यता अभियान उन समर्पित कार्यकर्ताओं की निष्ठा और त्याग पर तब भारी पड़ता नजर आएगा, जब नया-नवेला उनके बराबर बैठकर उन्हें चिढ़ाएगा… वैसे भी भाजपा का कार्यकर्ता तो कार्यकर्ता, नेता भी अब बुरी तरह थक चुका है… केन्द्रीय नेतृत्व से लेकर प्रादेशिक नेतृत्व और शहरी कमान तक हर दो-चार माह में एक थकाऊ कार्यक्रम ले आते हैं… कभी बूथ के नेताओं को लक्ष्य थमाते हैं तो कभी विधायक और मंत्रियों को काम पर लगाते हैं… फिर आकलन कर लताड़ते हैं… सत्ता से लेकर संगठन तक को जब नाकामी नजर आती है तो वह अधिकारियों के कांधों पर चढ़ जाते हैं… तहसीलदार हो या पटवारी… आयुक्त हो या संभागायुक्त… निगम हो या प्राधिकरण सारे विभाग भाजपाई कार्यक्रमों में लग जाते हैं और जनता के कामों पर पलीता लगाते हैं… कुल मिलाकर सास भी कभी बहू की तरह हर कोई सास बनकर बहू पर जुल्म ढाता नजर आ रहा है… सजी-संवरी भाजपा को ढोलकर नई भाजपा बनाने के लिए मरे जा रहे हैं…
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