नई दिल्ली । एक देश एक चुनाव(one country one election) पर कैबिनेट ने मुहर(The cabinet approved) लगा दी है। खास बात है कि केंद्र सरकार (Central government)के इस फैसले का चुनाव बिहार(Bihar Elections) में NDA यानी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस के साथी दलों ने भी किया है। कहा जा रहा है कि यह पहला मौका है जब बिहार के साथी दल और भारतीय जनता पार्टी के सुर किसी मुद्दे पर एक हुए हैं। दरअसल, इससे पहले जनता दल (यूनाइटेड) और लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) की लेटरल एंट्री और वक्फ बोर्ड बिल के मामले में राय अलग थी।
वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे पर जेडीयू, लोजपा (र) और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) कैबनेट के प्रस्ताव का समर्थन करते नजर आ रहे हैं। मीडिया से बातचीत में जेडीयू के सलाहकार केसी त्यागी ने बताया, ‘बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सालों पहले ही एक देश एक चुनाव को लेकर अपना समर्थन जाहिर कर दिया था। यह हमारे जैसे कम इलेक्शन फंड वाले छोटे दलों के लिए मददगार होगा।’
पार्टी प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा, ‘केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह और राज्यसभा सांसद संजय कुमार झा जैसे हमारे वरिष्ठ नेताओं ने रामनाथ कोविंद कमेटी के सामने अपना मत रखा था। यह स्वागतयोग्य कदम है। जो लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि हमने 1967 तक एक देश एक चुनाव का पालन किया था।’
क्या बोली LJP (R)
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने इसे ऐतिहासिक कदम करार दिया है। उन्होंने लिखा, ‘एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को मंजूरी देकर केंद्रीय कैबिनेट ने आज देशहित में एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है। ‘एक देश, एक चुनाव’ देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और सशक्त बनाएगा, चुनावी खर्च कम करेगा और विकास कार्यों में तेजी लाएगा।’
उन्होंने आगे लिखा, ‘साथ ही, चुनावों में पारदर्शिता बढ़ेगी और सरकारी कोष पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ कम होगा। चुनावों में सुरक्षा की दृष्टिकोण से पारा मिलिट्री फोर्स, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका को भी सरल बनाएगा। ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्ताव का समर्थन मेरे नेता, मेरे पिता श्रद्धेय रामविलास पासवान जी ने भी किया था और मैं, मेरी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) #OneNationOneElection के प्रस्ताव का समर्थन करती है।’
HAM की राय
केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने लिखा, ‘हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। चुनावों की इस निरंतरता के कारण देश हमेशा चुनावी मोड में रहता है।इससे न केवल प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय प्रभावित होते हैं बल्कि देश के खजाने पर भारी बोझ भी पड़ता है। ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ से दलित मतदाताओं को भी सुविधा होंगी। अब वोट के लूटेरों का राज नहीं चलेगा।’
कोविंद कमेटी के प्रस्तावों के मुताबिक पहले फेज में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होंगे और फिर दूसरा फेज 100 दिनों के भीतर होगा, जिसमें स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे, लेकिन विपक्ष कह रहा है कि ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ मुमकिन नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पूरे देश में एक चुनाव हो सकता है. अगर हां तो कैसे?
प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किला से अपने पहले संबोधन में जो वादा किया था, उसे पूरा करने की तैयारी कर ली है. देश में सभी चुनाव एक साथ कराए जाने का रास्ता धीरे धीरे साफ हो रहा है. मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन पर कोविंद कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है. वहीं कांग्रेस कह रही है कि एक देश एक चुनाव नहीं चलने वाला है।
बता दें कि वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार करने के लिए मोदी सरकार ने पिछले साल सितंबर में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था. कमेटी ने इस साल मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में ये प्रस्ताव दिया गया था।
मोदी 3.0 के 100 दिन पूरे हुए तो सरकार का तूफानी स्टैंड आ गया. अब वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर सरकार की कोशिशें अपनी जगह हैं और विपक्ष के सवाल अपनी जगह. इसमें कोई शक नहीं कि वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करने में चुनौतियां हैं, लेकिन ऐसी कोई चुनौती नहीं जिसे देश के फायदे के लिए मात नहीं दी जा सके।
62 सियासी दलों से ली गई राय
समिति ने एक देश-एक चुनाव पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए 62 सियासी दलों से राय ली थी. इन राजनीतिक दलों में से 32 ने समर्थन, 15 ने विरोध और 15 ने इस पर जवाब देने से इनकार कर दिया था. जेडीयू ने जहां बिल का समर्थन किया है, तो वहीं चंद्रबाबू नायडू की पार्टी ने मामले में अपनी राय नहीं दी है. इतना ही नहीं मायावती ने इसका समर्थन किया है।
कोविंद कमेटी ने की थी शीर्ष 10 से सिफारिशें
1. सरकार को एक साथ चुनाव कराने के चक्र को बहाल करने के लिए कानूनी रूप से स्वीकार्य तंत्र विकसित करना चाहिए।
2. पहले चरण में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं।
3. दूसरे चरण में, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ इस तरह से समन्वयित किया जाएगा कि नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव संसदीय और विधानसभा चुनावों के 100 दिन के भीतर कराए जाएं।
4. लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के उद्देश्य से राष्ट्रपति, आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख को ‘‘नियत तारीख’’ के रूप में अधिसूचित करेंगे।
5. ‘नियत तिथि’ के बाद और लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पहले चुनावों के माध्यम से गठित सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल केवल बाद के संसदीय चुनावों तक की अवधि के लिए होगा। इस एक बार की अस्थायी व्यवस्था के बाद, सभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित किये जायेंगे।
6. सदन में त्रिशंकु स्थिति या अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी भी स्थिति में नई लोकसभा के गठन के लिए नए चुनाव कराए जा सकते हैं।
7. जहां लोकसभा के लिए नए चुनाव आयोजित किए जाते हैं तो ऐसी स्थिति में सदन का कार्यकाल ‘‘केवल सदन के तत्काल पूर्ववर्ती पूर्ण कार्यकाल की शेष अवधि के लिए होगा।’’
8. जब राज्य विधानसभाओं के लिए नए चुनाव आयोजित किए जाते हैं, तो ऐसी नई विधानसभाएं – जब तक कि उन्हें पहले ही भंग न कर दिया जाए – लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के अंत तक बनी रहेंगी।
9. भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग के परामर्श से एक एकल मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) तैयार किया जाएगा और यह ईसीआई द्वारा तैयार की गई किसी भी अन्य मतदाता सूची का स्थान लेगा।
10. एक साथ चुनाव कराने के लिए रसद व्यवस्था करने के लिए, भारत निर्वाचन आयोग ईवीएम और वीवीपैट जैसे उपकरणों की खरीद, मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की तैनाती और अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं के लिए पहले से योजना और अनुमान तैयार कर सकता है।
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