भोपाल। हिमालय के तराई क्षेत्र (Himalayan foothills) में सक्रिय पर्यटकों से निकलने वाला प्लास्टिक वेस्ट (Plastic waste) न सिर्फ इन इलाकों की स्वच्छता को प्रभावित कर रहा है। बल्कि यह नदियों के रास्ते अपने देश के कई शहरों तक भी पहुंच कर नुकसान के हालात बना रहा है। अब इस स्थिति से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विमर्श (Discussion International level) शुरू हुआ है। जिसके बेहतर परिणाम जल्दी ही सामने आने लगेंगे। स्वच्छता मिशन को आगे बढ़ाने वाली इस योजना को मप्र की राजधानी भोपाल (Madhya Pradesh capital Bhopal) से आकार मिलने वाला है।
पड़ोसी मुल्क नेपाल के काठमांडू में आयोजित तीन दिवसीय सेमिनार के दौरान यह निष्कर्ष निकल आया है। सेमिनार में देश विदेश के तकनीकी विशेषज्ञों ने अपने अनुभव साझा करते हुए कचरा प्रबंधन पर अपने सुझाव प्रस्तुत किए। सेमिनार में भारत, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश आदि देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए हैं।
सराही गई मप्र की कवायद
काठमांडू में आयोजित इस तीन दिवसीय संगोष्ठी में मप्र के भोपाल से पर्यावरणविद सैयद इम्तियाज अली भी मौजूद हैं। इम्तियाज इससे पहले कश्मीर, नैनीताल, हिमाचल आदि प्रदेशों में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर अपना प्रेजेंटेशन दे चुके हैं। जिसपर कार्य करते हुए इन प्रदेशों ने प्लास्टिक वेस्ट की समस्या से छुटकारा पाया है। काठमांडू सेमिनार के दौरान सैयद इम्तियाज ने हिमालय की तराई से निकलने वाले प्लास्टिक वेस्ट के मैनेजमेंट की कार्ययोजना प्रसूत की। उनके इस पेपर प्रेजेंटेशन को इस अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में मौजूद स्पीकर्स, रिसर्चर्स, एकेडमिक और डिप्लोमेटिक लोगों ने सराहा भी और इस भोपाल मॉडल में रुचि भी दिखाई।
समस्या से निजात भी, रोजगार भी मिलेगा
पर्यावरणविद सैयद इम्तियाज अली ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सेमिनार भारत के स्वछता अभियान को सराहा गया है। इसमें होने वाले नवीन अभिनव प्रयोग को भी सेमिनार में शामिल देशों ने अपनाने में रुचि दिखाई है। इम्तियाज ने कहा कि प्लास्टिक वेस्ट, मनुष्य के बालों से निर्मित तरल खाद, गोकाष्ट, प्लास्टिक से रोड़ निर्माण तकनीक को पड़ोसी देश नेपाल ने अपनाने पर भी अपनी सहमति दी है। उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट के लागू होने से जहां प्लास्टिक वेस्ट से निजात मिलेगी, वहीं रोजगार के साधन भी विकसित होंगे।
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