नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को हिमाचल प्रदेश कॉलेजियम (Himachal Pradesh Collegium) के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें हाई कोर्ट में पदोन्नति (Promotion to High Court) के लिए दो वरिष्ठ जिला जजों की उम्मीदवारी को नजरअंदाज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने दो सीनियर जिला जजों की याचिका को स्वीकार करते हुए इस साल की शुरुआत में हुई कॉलेजियम की चयन प्रक्रिया को रद्द कर दिया। जस्टिस ऋषिकेश रॉय (Justice Hrishikesh Roy) और प्रशांत कुमार मिश्रा (Prashant Kumar Mishra) की बेंच ने कहा कि परामर्श के अभाव में कॉलेजियम का निर्णय इसलिए प्रभावित हुआ क्योंकि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने निजी तौर पर दो जिला जजों के नामों पर पुनर्विचार नहीं करने का निर्णय लिया था।
गौरतलब है कि यह फैसला कॉलेजियम के फैसले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के हस्तक्षेप का पहला उदाहरण है। ऐसे मामलों को आमतौर पर अदालत द्वारा प्रशासनिक रूप से निपटाया जाता है। वहीं, कॉलेजियम के फैसलों के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करते समय व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाता है। जजों ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को कॉलेजियम में अन्य जजों से सलाह लेनी चाहिए थी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि हाई कोर्ट कॉलेजियम को अब निर्धारित मानदंडों के अनुसार दो जिला जजों के नामों पर पुनर्विचार करना चाहिए। यह प्रक्रिया मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर के तहत होनी चाहिए जो संवैधानिक अदालतों में जजों की नियुक्ति का मार्गदर्शन करती है।
बिलासपुर के डिस्ट्रिक्ट जज चिराग भानु सिंह और सोलन के जिला जज अरविंद मल्होत्रा मई में सु्प्रीम कोर्ट पहुंचे थे। दोनों ने आरोप लगाया था कि हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट कॉलेजियम ने उनकी मेरिट और सीनियारिटी दोनों की अनदेखी की। इसके अलावा हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की स्पेसिफिक रेकमेंडेशन को भी मानने से इनकार कर दिया। सिंह ने हाल में डेपुटेशन पर सुप्रीम कोर्ट में रजिस्ट्रार के रूप में भी सेवाएं दी थीं। अपनी संयुक्त याचिका में, सिंह और मल्होत्रा ने 4 जनवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा पारित एक प्रस्ताव का हवाला देते हुए हाई कोर्ट कॉलेजियम को उनके नामों पर पुनर्विचार करने का निर्देश देने की मांग की।
जिला जजों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने तर्क दिया कि जूनियर न्यायिक अधिकारियों की सिफारिश इन-सर्विस कोटा के तहत हाई कोर्ट के जज के पद के लिए की गई। इस क्रम में याचिकाकर्ताओं की अनदेखी की गई जो अधिक सीनियर थे। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सलाह और बाद में केंद्रीय कानून मंत्री द्वारा सिंह और मल्होत्रा के नामों पर पुनर्विचार करने के अनुरोध पर भी ध्यान नहीं दिया।
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