भोपाल। बीजेपी सरकार (BJP Goverment) द्वारा लगता मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) समेत देशभर में शहरों और संस्थाओं (Cities and Institutions) के नाम बदलने की मुहिम चलाई जा रही है। इसको लेकर लगातार दूसरी पार्टियां मुद्दा भी बना रही हैं। इतने सालों बाद अब कांग्रेस (Congress) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) भी बीजेपी की राह पर आती नजर आ रही हैं। दरअसल कांग्रेस और बसपा ने नाम पर संबोधित किए जाने वाले गांवों, मोहल्लों, मजरे, टोलों और स्कूलों के नाम बदलने की मांग की है। साथ ही तत्काल सर्वे कराकर ऐसे जातिसूचक स्थानों के नाम बदलने की मांग सरकार से की है। इसको लेकर दोनों ही पार्टियों ने राज्यपाल मंगू भाई पटेल को पत्र लिखा है।
कांग्रेस द्वारा राज्यपाल को लिखे पत्र में लिखा गया है कि मध्यप्रदेश की सरकार सम्प्रदाय एवं भाषाई पूवाग्रहों के कारण संस्थानों के नाम परिवर्तन पर विगत 20 वर्षों से निरंतर जोर देती आ रही है, किन्तु दुर्भाग्य है कि हजारों गांव मजरे टोले, शालाएं, जाति सूचक शब्दों के साथ नामांकित की गई है जिससे समाज में ऊंच नींच, श्रेष्ठ-अश्रेष्ठ का भाव पैदा होता है और अपनी बसाहट बताने में लोगों को शर्म भी महसूस होती है। उदाहरण के लिए टीकमगढ़ जिले में यूईजीएस लोहरपुरा, यूईजीएस ढिमरोला, यूईजीएस ढिमरयांना, यूईजीएस चमरोला, चमरोला खिलक, बजारियापुरा, चढरयाना आदि ऐसे हजारों गांव है, जो हर जिले में स्थित है।
पत्र में आगे लिखा गया है कि नाम के कारण ही ये बसाहटे, हेय दृष्टि से देखी जाती है और सामाजिक, भेदभाव का शिकार होती है ।आपसे मेरा आग्रह है कि साम्प्रदायिक सोच के आधार पर गांव, जिलों, मजरे टोलों के नाम बदलने के साथ-साथ सरकार सामाजिक समरसता में बाधक इन गांवों के नाम बदलने की शुरूआत करें। कांग्रेस पार्टी के विचार विभाग की तरफ से मैं मांग करता हूं कि सामाजिक न्याय, समता और भेदभाव रहित, समाज को स्थापित करने की दिशा में यह नींव का पत्थर साबित होगा।
इधर बसपा नेता अवधेश प्रताप सिंह राठौर ने राज्यपाल मंगु भाई पटेल को ई-मेल के जरिए पत्र भेजा है। राठौर ने मांग की है। कि कई गांवों, बसाहटों और स्कूलों के नाम जातिसूचक हैं। ऐसे में उनके नाम बदले जाने चाहिए। पूरे मप्र में करीब 5 हजार से ज्यादा ऐसे नाम हैं जो जातिसूचक हैं। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि जिन शब्दों से असमानता का बोध होता है। उन नामों को बदलने में कोई हर्ज नहीं हैं। आप जब संप्रदाय, भाषा के आधार पर जब स्टेशनों के नाम बदल रहे हैं, गांवों के नाम बदल रहे हैं, तो ऐसे गांवों के नाम सबसे पहले बदलने चाहिए। उन्होंने कहा कि बीजेपी दावा तो बहुत करती है कि हम जाति को नहीं मानते। उनका ध्यान इस तरफ क्यों नहीं जाता। ये सोच का अंतर है। भाजपा को ये बताना चाहिए कि क्या वो इन जाति सूचक गांवों, कस्बों, मजरों टोलों के नाम जारी रखना चाहती है। जहां से अस्पृश्यता का बोध हो, विषमता, ऊंच-नीच का बोध हो।
इन नामों के दिए उदाहरण
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