उज्जैन: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपने पिता की अस्थियों को शिप्रा नदी में विसर्जित कर दिया है. सीएम मोहन यादव से उनके पिता के निधन पर निज निवास पर जब आमजन मिलने पहुंचे तो वह पिता के साथ बिताए पल को याद कर भावुक हो गए. अपने पिता की स्मृतियों को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि उज्जैन विकास प्राधिकरण के चेयरमेन से लेकर विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री बनने पर भी उनके पिता ने सरकारी सुविधा से हमेशा परहेज रखा.
उन्होंने कहा, “जब वह विधायक का चुनाव जीतकर आए और पिताजी के पैर छुए तो उन्होंने कहा जीत गए अच्छी बात है, लेकिन हमेशा स्वाभिमान की जिंदगी जीना. कभी किसी के पैरों में मत गिरना. अपने दम पर और कर्म के आधार पर आगे बढ़ना. खुद के द्वारा की गई मेहनत ही एक दिन रंग लाएगी और ऊंचाई तक पहुंचाएगी.”
मोहन यादव ने कहा “जब मैं मुख्यमंत्री बना और आशीर्वाद लेने उज्जैन आया तो घर पर चरण स्पर्श करते समय पिताजी ने कहा कि अच्छा काम करना, लोगों का भला करना. किसी को दुख पहुंचे ऐसा काम कभी मत करना. पिताजी हमेशा आशीर्वाद के साथ एक नई सीख देते थे. वो अपना काम आखिरी समय तक खुद ही करते रहे. कोई मिलने आता तो वो कभी यह नहीं कहते थे कि मैं विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री का पिता हूं. हमेशा वो सामान्य जीवन जीते रहे.”
सीएम ने कहा कि “जब मुख्यमंत्री निवास में जाते समय मैंने उनसे साथ चलने का आग्रह किया तो उन्होंने कहा मैं तो यहीं पर अच्छा हूं. आज तक तुम्हारी सरकारी कार में भी नहीं बैठा और आगे भी नहीं बैठना चाहता हूं. तुम वहां जाकर रहो और लोगों की सेवा करते रहो, मैं यहीं पर अच्छा हूं.”
“पिताजी के दैनिक जीवन का एक हिस्सा खेत पर जाना भी था. फसल तैयार होने पर उसे अपनी देखरेख में कटवाना और ट्रैक्टर ट्राली के साथ खुद फसल बेचने के लिए मंडी जाना, उनका नियम था. हम सब कहते भी थे कि यह सब आप मत किया करो, आराम करो, आपको जाने की क्या आवश्यकता है, तो वे कहते थे कि यह मेरा काम है और मैं ही करूंगा. उन्होंने कभी किसी के काम के लिए मुझसे सिफारिश नहीं की.”
सीएम डॉ. मोहन यादव अपने पिता की स्मृतियों के साथ मां को भी याद कर भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि “पिताजी की तरह ही मां भी बेहद कर्मशील थीं. दोनों ने मुझे सदैव कर्मशील बने रहने की सीख दी और उनकी इसी सीख पर मैं अब तक अडिग होकर चला हूं और आगे भी चलता रहूंगा.”
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