ढाका: शेख हसीना सरकार (Sheikh Hasina Government) के पतन के बाद मोहम्मद युनुस (Mohammad Yunus) के नेतृत्व में बनी बांग्लादेश (Bangladesh) की अंतरिम सरकार (interim government) कट्टरपंथियों (Fanatics) के आगे पूरी तरह से बिछ गई है। हाल ही में मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने ढाका में चरमपंथी समूह हिफाजत-ए-इस्लाम के नेता मामुनुल हक और समूह के सदस्यों के साथ बैठक की थी। इस बैठक की तस्वीरों के सामने आने के बाद विवाद खड़ा हो गया है। साथ ही सवाल भी उठ रहा है कि क्या अंतरिम सरकार बांग्लादेश के कट्टरपंथियों के आगे बेबस है। बीती 31 अगस्त को मोहम्मद यूनुस और हिफाजत नेताओं के बीच बैठक हुई थी, जो चुनाव सुधारों और समय पर चुनाव कराने को लेकर केंद्रित थी। इस दौरान हिफाजत-ए-इस्लाम के नेताओं ने अपनी मांग भी रखी थी।
बांग्लादेश में चरमपंथियों को खुली छूट
अंतरिम सरकार ने देश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी पर लगा प्रतिबंध भी वापस ले लिया है, जिसने भारत को चिंता में डाल दिया है। जमात-ए-इस्लामी के पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से पुराने रिश्ते रहे हैं और यह बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने में शामिल रही है। हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद कट्टरपंथी एक बार फिर से बांग्लादेश में खुलकर सामने आए हैं। देश भर में अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया गया है।
अल-कायदा से जुड़े चरमपंथी की रिहाई
हाल ही में अंतरिम सरकार ने अल-कायदा से जुड़े आतंकी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला के प्रमुख जशीमुद्दीन रहमानी को रिहा कर दिया। रहमानी बांग्लादेश के एक ब्लॉगर की हत्या करने के मामले में जेल में बंद था। यह रिहाई भारत के लिए भी चिंता का विषय है क्योंकि आतंकी समूह स्पीपर सेल की मदद से चरमपंथी नेटवर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।
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क्या है हिफाजत-ए-इस्लाम?
हिफाजत-ए-इस्लाम का गठन 2010 में हुआ था। यह रूढ़िवादी इस्लामी मूल्यों को बनाए रखने का प्रयास करता है। कट्टरपंथी विचारों के लिए जाना जाने वाला यह संगठन संवैधानिक सिद्धांतों और सामाजित सुधारों का विरोध करता है। उनकी गतिविधियां विशेष रूप से मदरसे चलाने और रूढ़िवादी इस्लामी विचारों का प्रचार करने में रही हैं। इस संगठन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत यात्रा के दौरान विरोध प्रदर्शनों को आयोजित किया था। इसका नेता मामुनुल हक अपने कट्टर भाषणों के लिए जाना जाता है।
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