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    सुप्रीम कोर्ट ने CM धामी के एक फैसले को लेकर की टिप्पणी, कहा- यह सामंती युग नहीं कि जैसा राजा बोले वैसा चले

  • September 05, 2024

    नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को उत्तराखंड (Uttarakhand) के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Chief Minister Pushkar Singh Dhami) से इंडियन फॉरेस्ट सर्विस (Indian Forest Service) के अधिकारी राहुल को राजाजी टाइगर रिजर्व (Rajaji Tiger Reserve) के निदेशक के रूप में नियुक्त करने पर सवाल पूछा, क्योंकि इसी अफसर को पहले अवैध पेड़ काटने के आरोप में जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से हटा दिया गया था. उत्तराखंड हाई कोर्ट ने लगभग दो साल पहले जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी नेशनल पार्क में पेड़ों की अवैध कटाई का संज्ञान लिया था. अदालत ने तब आईएफएस अधिकारी राहुल को कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक के पद से हटाने का निर्देश दिया था.

    जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में पेड़ों की अवैध कटाई और निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया था और मार्च 2024 में इसकी जांच के लिए एक कमेटी के गठन का आदेश दिया था. इस मामले में बुधवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई, केवी विश्वनाथन और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘हम सामंती युग में नहीं हैं कि जैसा राजा जी बोले वैसा चले. सीएम को इस फैसले के पीछे कुछ तर्क देना चाहिए था, हम कम से कम इसकी उम्मीद करते हैं.’ शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से मामले में मुख्यमंत्री का एफिडेविट दायर करने के लिए कहा.


    SC ने पूछा- वह सीएम हैं, तो क्या कुछ भी कर सकते हैं?
    वरिष्ठ वकील और एमिकस क्यूरी के परमेश्वर ने पीठ को बताया कि संबंधित आईएएस अधिकारी पर पहले भी आरोप पत्र दायर किया जा चुका है. उन्होंने कहा, ‘सिविल सर्विसेज बोर्ड द्वारा आईएफएस अफसर राहुल की राजाजी नेशनल पार्क में पोस्टिंग के लिए कोई सिफारिश नहीं की गई थी, यह एक राजनीतिक पोस्टिंग है.’ इस पर जस्टिस गवई ने कहा, ‘इस देश में लोगों के विश्वास पर खरा उतरने जैसा कोई सिद्धांत है या नहीं? संवैधानिक पदों पर बैठे लोग जो चाहे नहीं कर सकते. जब जनता समर्थन में नहीं है तो उन्हें वहां तैनात नहीं किया जाना चाहिए था. बावजूद इसके वह सीएम हैं, तो क्या कुछ भी कर सकते हैं?’

    अदालत की यह टिप्पणी तब आई जब उत्तराखंड सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एएनएस नाडकर्णी ने मुख्यमंत्री के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि सीएम के पास ऐसी नियुक्तियां करने का विवेकाधिकार था. शीर्ष अदालत शुरू में अपने आदेश में सीएम से एक हलफनामा दायर करने के लिए कहने को इच्छुक थी, लेकिन वकील ने कहा कि उत्तराखंड सरकार अगली सुनवाई के दौरान खुद स्पष्टीकरण देगी. जस्टिस बीआर गवई, केवी विश्वनाथन और प्रशांत कुमार मिश्रा पीठ वन संबंधी मामलों की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (Central Empowered Committee) की रिपोर्ट पर विचार कर रही थी.

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