नई दिल्ली । दिल्ली पुलिस(Delhi Police) ने उच्च न्यायालय(High Court) को बताया है कि पूर्व आईएएस अधिकारी पूजा(Former IAS officer Pooja) खेडकर ने कई प्रकार की दिव्यांगता दिखाने(show disability) के लिए दो प्रमाणपत्र प्रस्तुत (Certificate presented)किए थे और उसकी जांच से पता चला है कि इनमें से एक दस्तावेज ‘जाली’ और ‘मनगढ़ंत’ हो सकता है। दिल्ली पुलिस ने यह दलील खेडकर की अग्रिम जमानत याचिका के जवाब में दी। खेडकर पर धोखाधड़ी और गलत तरीके से ओबीसी तथा दिव्यांगता कोटे का लाभ प्राप्त करने का आरोप है।
एजेंसी ने कहा कि खेडकर ने क्रमशः सिविल सेवा परीक्षा-2022 और सिविल सेवा परीक्षा-2023 के लिए दो दिव्यांगता प्रमाणपत्र जमा किए हैं।
स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि सत्यापन के बाद, ‘जारीकर्ता चिकित्सा प्राधिकरण, अहमदनगर, महाराष्ट्र’ ने हालांकि दावा किया है कि ‘लोकोमोटर’ दिव्यांगता, श्रवण दोष और आंखों से कम दिखने संबंधी प्रमाणपत्र ‘सिविल सर्जन कार्यालय रिकॉर्ड’ के अनुसार जारी नहीं किया गया था और ‘दिव्यांगता प्रमाणपत्र के जाली और मनगढ़ंत होने की अधिक आशंका है।
‘लोकोमोटर डिसेबिलिटी’ या चलन-संबंधी दिव्यांगता उस दिव्यांगता को कहते हैं जिसमें व्यक्ति के पैर ठीक से काम नहीं करते। इस मामले में अगली सुनवाई पांच सितंबर को होगी।
खेडकर ने आरक्षण का लाभ पाने के लिए यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, 2022 के लिए अपने आवेदन में कथित रूप से गलत जानकारी दी थी। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने 31 जुलाई को उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी थी और भविष्य की परीक्षाओं में शामिल होने के लिए उन पर रोक लगा दी थी। खेडकर ने सभी आरोपों से इनकार किया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 29 अगस्त को खेडकर को गिरफ्तारी से दी गई अंतरिम संरक्षण की अवधि पांच सितंबर तक के लिए बढ़ा दी थी। यूपीएससी और दिल्ली पुलिस दोनों ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज करने का अनुरोध किया है।
यूपीएससी ने पिछले महीने खेडकर के खिलाफ कई कार्रवाई शुरू की थी, जिसमें फर्जी पहचान बताकर सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होने के लिए उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करना भी शामिल था।
दिल्ली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की है। यहां की एक सत्र अदालत ने एक अगस्त को खेडकर को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि उनके खिलाफ गंभीर आरोप हैं, जिनकी ‘गहन जांच की आवश्यकता है’।
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