अपने ही लगे है बंटाढार करने में
लक्ष्मी मेमोरियल अस्पताल के पास हर साल नाले की गाद निकाली जाती है, ताकि जलभराव नहीं हो पाए, लेकिन इस बार सफाई नहीं हो पाई और सडक़ पर से देखने में ही नाले में झाडिय़ां और गाद नजर आती है। ऐसा नहीं है कि निगम के अमले ने वहां कोशिश नहीं की, लेकिन जैसे ही वहां जेसीबी पहुंचाई गई, वह अंदर नहीं जा सकी। कारण आसपास किया गया अतिक्रमण। मालूम पड़ा कि अतिक्रमण भी उसका है, जिनकी जवाबदारी उसे रोकने की है। बस फिर क्या था दबाव में अमला वापस। दबाव बनाने वाले शान से वहां खड़े हैं और कह रहे हैं लोग भुगते तो भुगते, हमें क्या? अब जब अपने ही बंटाढार करने में लगे हैं तो इसमें दोष जनता का तो नहीं?
किसी भी दिन हो सकता है बवाल
इन दिनों भाजपा के अल्पसंख्यक नेताओं में कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कहा जा रहा है कि वक्फ बोर्ड का नया कानून आने के पहले नेताओं का एक धड़ा जमीनों के विवादास्पद मामले निपटाना चाहता है, लेकिन दूसरा धड़ा राह में रोड़ा है। फिलहाल तो जिस तरह से प्रदेश उपाध्यक्ष नासिर शाह और वक्फ बोर्ड के पदाधिकारियों में शह और मात का खेल चल रहा है, उससे किसी भी दिन कोई बड़ा बवाल हो सकता है, फिर भी बड़े भाजपा नेता इस पर चुप्पी साधे हंै। आखिर उनका हित भी तो इसमें सध रहा है।
दूर-दूर क्यों हैं भाजपा संगठन?
वार्ड 83 में उपचुनाव है, लेकिन यहां संगठन की कमी खल रही है। मालिनी गौड़ भले ही अपनी पसंद का उम्मीदवार बनवा लाई हो, लेकिन चर्चा चल पड़ी है कि संगठन के कर्ताधर्ता इससे खुश नहीं है। यही कमी उपचुनाव कार्यालय के शुभारंभ में भी नजर आईं। वैसे भाजपा के मतदाता बहुल इस वार्ड में कांग्रेस का जीतना तो मुश्किल नजर आता है, लेकिन भाजपा में जिस तरह से अंदरूनी गुटबाजी चल रही है, उससे लग रहा है कि भाजपा की लीड में एक बड़ा अंतर आ सकता है।
बम से डरे, टिकली भी दूर से फोड़ रहे
कांग्रेस बम कांड से इतनी डर गई कि आखिर तक डमी उम्मीदवार का नाम वापस नहीं लिया और अब कांग्रेस की ओर से दो-दो उम्मीदवार आमने-सामने हैं। कांग्रेस के नेताओं को यह बताना पड़ रहा है कि जिसे पंजा मिला है, वह अधिकृत है और दूसरे को पार्टी ने समर्थन नहीं दिया है। अब कितने लोगों से ये बात कहते फिरेंगे। एक तरह से कांग्रेस ने डमी का नाम वापस न लेकर अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मार ली है। वैसे बम कांड से डरी कांग्रेस अब टिकली भी दूर से फोड़ रही है, ताकि उस तक आंच न आ जाए। बात तो यह भी है कि कांग्रेस के सभी नेता वार्ड 83 में पहुंच गए हैं, लेकिन जिस तरह से वहां भाजपा ने अपना वोटों का चक्रव्यूह बना रखा है, उसे भेदना आसान नहीं लग रहा है।
चिंटू की अपील
नेता प्रतिपक्ष होते हुए चिंटू चौकसे छोटे-छोटे मुद्दों में भी कूद पड़ते हैं। अभी उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा, जिसमें में वे बोरिंग के मामले में लोगों से कह रहे हैं कि बोरिंग पर अभी किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है। अगर कोई पैसा मांगे तो सीधे मुझसे बात करो। अब चिंटू भाई को कौन समझाए कि ये सब काम तो बोरिंग वाला खुद ही कर लेता है और बोरिंग करवाने वाले से अनुमति के नाम पर पहले ही पैसा ले लेता है। जिसको बोरिंग करवाना है, वो तो पैसा दे ही देता है। बेहतर हो चिंटू भाई आप इसे कानूनी जामे में लाने की कोशिश करें, ऐसे तो कोई भी शिकायत नहीं करेगा।
आज भी ताई की टीम का कायम है जलवा
अहिल्या उत्सव के सालाना आयोजन में आज भी ताई की पूरी टीम कायम है। मजाल है कोई दूसरा आगे हो जाए। ऐसा नहीं है कि दूसरों ने प्रयास नहीं किए, लेकिन ताई की जो टीम है वह किसी को उनके बीच फटकने तक नहीं देती है। यही कारण रहा कि पांच सालों से ताई सांसद नहीं है, फिर भी उनकी टीम का जलवा अहिल्या उत्सव में कायम है। वैसे इस टीम के कुछ पेशेवर लोग गाहे-बगाहे सांसद लालवानी के आसपास देखे जा सकते हैं। आखिर उन्हें भी अपनी चलती-फिरती दुकान तो कायम रखना है।
तेल और तेल की धार दोनों देख ली
युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मितेंद्र सिंह ने पूरे प्रदेश में तेल और उसकी धार देख ली है। अब पूरी तरह से गेंद मितेन्द्र के पाले में हैं। अब उनकी गेंद का निशाना कौन होता है, कौन क्लीन बोल्ड होता है? ये तो समय ही बताएगा, लेकिन इसकी उत्सुकता अब युवा कांग्रेसियों में हैं कि कब सूची आएगी। बाहर कौन होगा और किसको पद मिलेगा। वैसे इंदौर के मामले में तेल की धार पतली ही रही है और यह किसी से छुपी भी नहीं है। बस इसी को लेकर निर्णय होना है और भोपाल से जो इशारा मिल रहा है, उसमें ज्यादा देर होते नहीं दिख रही है। नए चेहरे की तलाश शुरू हो गई है और संगठन की पसंद को यहां तवज्जो दी जा सकती है, आखिर अब कांग्रेस की मजबूती का सवाल है।
कहने वाले कह रहे हैं कि जिस तरह से पिछले सप्ताह गौरव रणदिवे कुछ ज्यादा ही एक्टिव दिखे हैं, उससे लग रहा है कि हेलिकॉप्टर की मुलाकात काम कर गई है और फिर 3-4 दिन प्रदेश संगठन मंत्री भी इंदौर में रहे हैं। संगठन के कार्यकर्ताओं की बैठक लेने वे अपनी गाड़ी की बजाय गौरव की गाड़ी में ज्यादा दिखे। अब इसके क्या मायने निकाले जाएं कुछ लोग इसे गौरव की कप्तानी सलामात रहने के रूप में देख रहे हैं तो कुछ कह रहे हैं कि गौरव के राजनीतिक जीवन में कुछ अच्छा होने वाला है। -संजीव मालवीय
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