ढाका: बांग्लादेश (Bangladesh) में आंतरिक कलह देखा गया है। आरक्षण विरोधी प्रदर्शन (Anti-reservation protests) ने शेख हसीना (Sheikh Hasina) की सरकार को गिरा दिया। इस कारण बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना को इस्तीफा देकर भारत आना पड़ा। इस बीच बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि बांग्लादेश के प्रति भारत की आधिकारिक नीति पूरी तरह से फेल रही है। उनके मुताबिक नीति को बनाने में शक्तिशाली सिविल सेवक, सेवानिवृत्त राजनयिक, विचारक और पत्रकार शामिल थे, जिन्होंने जमीन पर राजनीतिक नब्ज को महसूस किए बिना सुरक्षा को प्राथमिकता दी।
बीएनपी के विदेशी मामलों के सेल के प्रमुख अमीर खसरू महमूद चौधरी ने भारत से बांग्लादेश में प्रचलित लोकप्रिय भावनाओं की सराहना करने का आग्रह किया। उन्होंने तर्क दिया कि बांग्लादेश में पिछले दशक में सभी तीन चुनाव धोखधड़ी वाले थे, जहां भारत ने एक समर्थक की भूमिका निभाई। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर यही प्रवृत्ति जारी रही तो भारत-बांग्लादेश संबंधों को ठीक होने में कई साल लग जाएंगे।
भारत के खिलाफ उगला जहर
उन्होंने भारत के खिलाफ जहर उगलते हुए कहा, ‘बांग्लादेश के मामले में इस इकोसिस्टम ने एक कहानी बनाई कि अगर शेख हसीना सत्ता में नहीं रहीं तो बांग्लादेश कट्टरपंथियों के हाथ में चला जाएगा। अगर हसीना नहीं होती तो भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ जाकी। भारत को इस मानसिकता से बाहर आना होगा। साउथ ब्लॉक को जागना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में जो हिंसा हुई है उसे टाला जा सकता था अगर इस साल जनवरी में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुए होते। उन्होंने इस चुनाव को धोखाधड़ी बताते हुए इस बात पर निराशा व्यक्त की कि भारत ने इसे मान्यता दी।
बांग्लादेश सरकार ने तो हद कर दी,अब बाढ़ के लिए भी भारत जिम्मेदार?
निष्पक्ष चुनाव की होती रही मांग
साल 2009 में बीएनपी शेख हसीना से हार गई थी। एक कार्यवाहक सरकार के तहत बीएनपी चुनाव की मांग कर रही है। इस मांग के कारण कई मौकों पर राजनीतिक गतिरोध देखा गया। 2014 में बीएनपी ने चुनाव का बहिष्कार किया, क्योंकि उसने इसे कार्यवाहक सरकार के तहत कराने की मांग की थी। इसने 2018 और 2024 में फिर इसका बहिष्कार किया। 2024 की जनवरी में कराए गए चुनाव में शेख हसीना जीत गई। हालांकि अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने इसकी आलोचना की।
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