नई दिल्ली: घाटी में पिछले कुछ महीनों से आतंकी घटनाएं बढ़ी है. इसको लेकर सरकार ने कई ठोस कदम भी उठाए. इसी बीच भारतीय सेना ने आतंकवादियों को मुहतोड़ जवाब देने के लिए और आतंकवाद से निपटने का एक और बड़ा प्लान बनाया है. अब सेना आतंकवादियों के उनके ठिकाने पर ही उनको मौत के घाट उतार देगी. मेड इन इंडिया को बढ़ावा देते हुए भारतीय सेना ने दो खतरनाक हथियार तैयार किए है.
इन हथियारों से आर्मी न केवल आतंकियों का सफाया करेगी बल्कि आर्मी बिना किसी जवान की जान गवाएं अपने तमाम ऑपरेशन भी कर सकेगी. भारतीय सेना ने अपनी जरूरतों को देखते हुए दो नए इनोवेशंस किए हैं. दोनों हथियारों को आर्मी डिजाइन ब्यूरो ने आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर बनाया है. इससे भारतीय सेना को कई सर्च ऑपरेशंस करने में भी बड़ी मदद मिलेगी. इनमे से एक हथियार तो आईडी बम को भी ढूढं कर उड़ा देगा.
आर्मी का पहले हथियार का नाम है “एक्सप्लोडर”. ये एक एडवांस मानवरहित ग्राउंड व्हीकल है. ऐसे हथियारों को यूजीवी कहते हैं. इसमें छह पहिये लगे हैं. इसकी ऊंचाई भी कुछ खास लंबी नहीं है, ये मात्र डेढ़ फीट का है. इसे कॉम्बैट और ऑपरेशनल रोल्स के लिए डिजाइन किया गया है. इसे किसी भी तरह की जमीन और लोकेशन पर ऑपरेट किया जा सकता है.
इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह दूर से इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईडी) को ढूंढ कर उसे उड़ा सकता है. इसे आसानी से रिमोट से कंट्रोल कर ऑपरेट किया जा सकता है. इसकी रेंज वायर के साथ 2 किमी और वायरलेस 2.5 किमी है. इसमें एक सेल्फ डेस्ट्रक्शन मोड भी होता है, यानी जरूरत पड़ने पर ये हथियार खुद को उड़ा सकता है. इसके अलावा ये एक लोकेशन से दूसरे लोकेशन पर भी ऑपरेशन को अंजाम दे सकता है.
मेड इन इंडिया को बढ़वा देते हुए सेना ने “अग्निअस्त्र” नाम का एक और हथियार बनाया है. ये आतंकियों को उनके ही ठिकानों पर घुस कर मौक के घाट उतार देगा. ये एक मल्टी-टारगेट रिमोट-कंट्रोल्ड ब्लास्टर सिस्टम है. इसके साथ ही ये एक टारगेट पोर्टेबल डेटोनेशन सिस्टम भी है, जो रिमोट डेटोनेशन तकनीक में भारत की एक बड़ी उपलब्धि है. अग्निअस्त्र की रेंज 10 किमी है. मल्टी-टारगेट रिमोट-कंट्रोल्ड ब्लास्टर यानी अग्निअस्त्र का उद्देश्य उग्रवाद और आतंकवाद विरोधी अभियानों में उपयोग करना है. इसका काम बारूदी सुरंगों, IED और आतंकियों का सफाया करना है.
इस बार घाटी में हुए कई हमलों में देखा गया कि घटना को अंजाम देने के बाद वो किसी के घर में छिपते जाते थे. इसके बाद सेना को सर्च ऑपरेशन में जवानों को ग्रैनेड या हथियार लेकर घर के अंदर घुसना पड़ता था. जो न केवल जान जोखिम में डालने वाला होता था, बल्कि उसके लिए काफी तैयारियां भी करनी पड़ती थीं. हालांकि इस हथियार के बनने के बाद से अब सेना को ऐसा नहीं करना पड़ेगा. सेना अब बिना किसी जवान की जान जोखिम डालकर इससे ही आतंकियों के ठिकानों ढूढ़ पाएगी. भारतीय सेना ने अपनी जरूरतों को देखते हुए इन दोनों ‘अस्त्रों’ को खुद ही डिजाइन किया है. जिसके बाद आतंकियों को मार गिराने का काम ये दोनों हथियार करेंगे.
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