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    कोलकाता कांड : संजय रॉय और संदीप घोष समेत 7 लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट जारी, सामने आएगा सच?

  • August 24, 2024

    नई दिल्ली. आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल (RG Kar Medical College Hospital) में महिला ट्रेनी डॉक्टर (female trainee doctor) के साथ दुष्कर्म और हत्या मामले में कुल सात लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph test) शुरू हो गया है. सीबीआई (CBI) के कोलकाता ऑफिस में आरोपी संजय रॉय, आरजी कर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष, चार डॉक्टर जो वारदात की रात पीड़िता के साथ थे. साथ ही एक वालंटियर का पॉलीग्राफ टेस्ट किया जा रहा है.

    सीबीआई क्यों चाहती है पॉलीग्राफ टेस्ट

    सीबीआई का उद्देश्य इन कर्मचारियों के बयानों को सत्यापित करना है, क्योंकि अन्य मेडिकल रिपोर्ट (जैसे पीड़िता के शरीर से लिए गए डीएनए, वेजाइनल स्वैब, पीएम ब्लड) उन्हें स्पष्ट रूप से घटना से जोड़ने में विफल रही हैं. सीबीआई यह जानना चाहती है कि क्या इन चारों ने किसी भी प्रकार से सबूतों के साथ छेड़छाड़ की थी या वे किसी षड्यंत्र का हिस्सा थे.


    आरोपी संजय के मनोविश्लेषण से भी कई अहम खुलासे हुए हैं. एक सीबीआई अधिकारी ने बताया कि आरोपी की मनोविश्लेषण से संकेत मिला है कि वह विकृत व्यक्ति था और पॉर्न देखने का आदी था. नई दिल्ली स्थित केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (CFSL) के डॉक्टरों का हवाला देते हुए अधिकारी ने पीटीआई को बताया कि कोलकाता पुलिस का स्वयंसेवी रहा आरोपी संजय रॉय ‘जानवर जैसी प्रवृत्ति’ का है. शुक्रवार के सीबीआई ने पूछताछ के बाद आरोपी संजय रॉय को सियालदह की विशेष अदालत में पेश किया था, जहां से अदालत ने आरोपी को 14 दिनों की न्यायिक हिसारत में भेज दिया.

    क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट?

    कई बार आरोपी से सच उगलवाने के लिए पुलिस पॉलीग्राफ टेस्ट करवाती है, जिसमें लाई डिटेक्टर मशीन (झूठ पकड़ने वाली मशीन) के जरिए झूठ पकड़ने की कोशिश की जाती है. इसमें आरोपी के जवाब के दौरान शरीर में होने वाले बदलाव के जरिए ये पता लगाया जाता है कि आरोपी सवाल का सही जवाब दे रहा है या नहीं. इस टेस्ट में आरोपी की शारीरिक गतिविधियों को अच्छे से रीड किया जाता है और उनके रिएक्शन के हिसाब से तय होता है कि जवाब सच है या गलत.

    कैसे काम करती है ये मशीन?

    ये एक मशीन होती है, जिसके कई हिस्से होते हैं. इसमें कुछ यूनिट्स को आरोपी की बॉडी से अटैच किया जाता है. जैसे उंगलियों, सिर, मुंह पर मशीन की यूनिट्स लगाई जाती है और जब आरोपी जवाब देता है तो इन यूनिट से डेटा मिलता है, वो एक मेन मशीन में जाकर झूठ या सच का पता लगाता है. शरीर पर कनेक्ट की जाने वाली यूनिट्स में न्यूमोग्राफ, कार्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर और गैल्वेनोमीटर होता है. साथ ही पल्स कफ हाथ पर बांधे जाते हैं और उंगलियों पर लोमब्रोसो ग्लव्स बांधे जाते हैं. इसके साथ ही मशीन से ब्लड प्रेशर, पल्स रेट आदि को भी मॉनिटर किया जाता है.

    शरीर पर लगाई जाने वाली डिवाइस में न्यूमोग्राफ के जरिए प्लस रेट और सांस आदि को मॉनिटर किया जाता है. जवाब के दौरान सांस के जरिए झूठ, सच का अंदाजा लगाया जाता है. इसकी एक ट्यूब होती है, जिसे सीने के चारों तरफ बांधा जाता है. कार्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर से दिल की धड़कन और ब्लडप्रेशर को मॉनिटर किया जाता है, क्योंकि झूठ बोलने पर इसमें असामान्य बदलाव होता है, जिससे सच का पता किया जा सकता है. साथ ही गैल्वेनोमीटर के जरिए व्यक्ति की स्किन की इलेक्ट्रिक कंडक्टिविटी को चेक किया जाता है. फिर एक रिकॉर्डिंग डिवाइस के जरिए इन डेटा को कलेक्ट किया जाता है.

    कैसे चलता है सच का पता?

    पहले आरोपी से नॉर्मल सवाल पूछे जाते हैं, जिनका केस से लेना देना नहीं होता है. फिर अधिकतर सवाल हां या ना के फॉरमेट में पूछे जाते हैं और इसके एक्सपर्ट उन मशीन के डेटा से सच पता लगाते हैं. इसमें पल्स रेट, ब्लड प्रेशर, सांस, स्किन पर होने वाले बदलाव, शारीरिक सेंस के डेटा के हिसाब से नतीजा निकाला जाता है. झूठ बोलने वाले के दिमाग से निकलता है अलग सिग्नल जो इंसान किसी सवाल का झूठा जवाब देता है, तब उसके दिमाग से एक P300 (P3) सिग्नल निकलता है. ऐसे में उसका हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है.

    क्या कोई भी करवा सकता है टेस्ट?

    पॉलीग्राफ टेस्ट करवाने के लिए पहले कोर्ट से इजाजत लेनी होती है और कोर्ट मामले में पॉलीग्राफ टेस्ट की जरुरत को देखते हुए ये टेस्ट करवाने की इजाजत देता है.

    हमेशा सटीक होता है रिजल्ट?

    लेकिन, ध्यान रखने वाली बात ये है कि पॉलीग्राफ टेस्ट हमेशा सटीक नहीं होता है. टेस्ट कभी-कभी दिखा सकता है कि कोई व्यक्ति झूठ बोल रहा है जबकि वे वास्तव में सच कह रहा होता है. दरअसल, मशीन बॉडी के रिएक्शन पर सच पता लगाती है, लेकिन कई बार आरोपी की मानसिक स्थिति की वजह से रिजल्ट गलत भी हो सकती है. सीधे शब्दों में कहें तो पॉलीग्राफ परीक्षा झूठ का पता नहीं लगाती , यह भावनाओं के संकेतों का पता लगाती है.

    क्या हुआ 8-9 अगस्त की रात

    आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल का आरोपी संजय रॉय आठ और नौ की रात अलग-अलग बहानों से कुल चार बार आरजी अस्पताल के अंदर गया था. इनमें से तीन बार तो वो अस्पताल के अंदर घूमकर बाहर निकल आया, लेकिन आरोप है कि चौथी और आखिरी बार जब वो अस्पताल से बाहर निकला, तब तक उसके हाथों ट्रेनी डॉक्टर का रेप और कत्ल हो चुका था. जांच में पता चला कि संजय रॉय वारदात वाली रात अस्पताल के पास ही एक रेड लाइट एरिया भी गया था और वहां लौटते हुए उसने रास्ते में एक लड़की से छेड़छाड़ की थी

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