नई दिल्ली । संतान की प्रगति एवं सुख संपन्नता के लिए किया जाने वाला हल षष्ठी व्रत (Hala Shashthi Vrat) भाद्र पद कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि को किया जाता है। इसी तिथि को बलराम जी (Balaram Ji) का जन्म मध्यान्ह के समय ही हुआ था। इसी कारण इस व्रत का सम्बन्ध श्रीकृष्ण (Sri Krishna) के बड़े भाई श्री बलराम जी से है। इसे बलराम जयंती के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिर्विद दिवाकर त्रिपाठी से जानें करेक्ट डेट-
इस वर्ष भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि 24 अगस्त 2024 दिन शनिवार को दोपहर 12:41 से आरंभ होकर 25 अगस्त 2024 दिन रविवार को दिन में 10:24 तक व्याप्त रहेगी। इस कारण से उदयकालिक षष्ठी तिथि 25 अगस्त को प्राप्त हो रही है। इस दिन भरणी नक्षत्र सम्पूर्ण दिन सहित रात में 10 बजकर 18 मिनट व्याप्त रहेगी तत्पश्चात कृतिका नक्षत्र लग जायेगी। वृद्धि योग दिन में 9 बजकर 27 मिनट तक पश्चात ध्रुव योग आरम्भ होगा।
हल षष्ठी व्रत मध्यान्ह व्यापिनी भाद्रपद षष्ठी तिथि में पूजा का विधान है। मध्यान्ह में भाद्रपद कृष्ण षष्ठी होने से हलषष्ठी व्रत के लिए यह दिन पूर्ण प्रशस्त है। यद्यपि इसके पूर्व दिन 24 अगस्त को भी मध्यान्ह में पष्ठी तिथि है परन्तु पंचमी तिथि से युक्त होने पर वह ग्राह्य नहीं रहेगा। पंचमी के स्वामी सर्प और पष्ठी तिथि के स्वामी पष्ठी देवी होने से वह उतना प्रशस्त नहीं माना जाएगा। जितना कि सप्तमी से युक्त पष्ठी तिथि । यदि सप्तमी से युक्त पष्ठी तिथि में मध्याह्न प्राप्त हो तो वही तिथि हलषष्ठी व्रत के लिए ग्राह्य एवं शुभ कारक होती है। क्योंकि सप्तमी के स्वामी भगवान सूर्य है। पष्ठी और सप्तमी का संयोग इस व्रत के लिए सर्वोत्तम रहता है। इसलिए हल षष्ठी व्रत 25 अगस्त दिन रविवार को किया जाएगा।
पूजा के लिए मध्याह्न का समय उत्तम माना जाता है। इस वर्ष रविवार होने से दिन में 9 बजे के पश्चात और 10: 24 मिनट के अंदर लाभ चौघड़िया होने से यह समय पूजा के लिए पूर्ण प्रशस्त है। अतः इस समय पूजा का समायोजन अत्यंत उत्तम माना जाएगा। एक मान्यता के अनुसार माता सीता जी का जन्म भी इसी तिथि को हुआ था। बलराम जी को बलदेव, हलधर, हलायुध और संस्कार नाम से भी जाना जाता है। बलराम जी का प्रधान आयुध अर्थात हथियार हल और मूसल है। इन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम हलषष्ठी रखा गया है। इसे ललही षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में इसे तिना छठ भी कहा जाता है। क्योंकि इस व्रत में तिन्नी के चावल का प्रयोग होता है। इस व्रत में हल द्वारा जुते अन्न का प्रयोग वर्जित है। इस दिन गाय के दूध, दही और घी का भी प्रयोग नहीं किया जाता है। उसके स्थान पर भैंस के दूध दही को पूजन एवं खाने में प्रयोग किया जाता है।
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