नई दिल्ली। यूपी (UP) के संभल (sambhal) जिले के गांव बेनीपुर चक (Benipur Chak) में आज भी रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) नहीं मनाया जाता है। शहर से पांच किलोमीटर की दूरी पर इस गांव के लोग राखी (Rakhi) देखकर दूर भागते हैं। कोई भाई (Brother) अपनी किसी बहन (sister) से राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंधवाता है कि उसकी बहन उससे कहीं ऐसा उपहार न मांग ले, जिस कारण फिर से अपना घर छोड़ना पड़ जाए। हालांकि, कई बार गांव में इस मान्यता के खिलाफ आवाज भी उठी लेकिन वो इस मान्यता को खत्म किया नहीं जा सका।
यूं तो हर त्योहार और परांपरा हमारी संस्कृति का ही हिस्सा है। सदियों से हम इसका निवर्हन भी करते आ रहे हैं। लेकिन कभी-कभार कुछ त्योहार में हुईं बातें या घटनाएं ऐसी होती हैं, जो समय के साथ मान्यता में तब्दील हो जाती हैं। जिन पर सवाल भी उठते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है संभल जिले के गांव बेनीपुर चक की। 18 अगस्त सोमवार यानि आज जहां पूरा देश रक्षाबंधन पर्व मना रहा है, वहीं, बेनीपुर चक में भाई की कलाई सूनी है। यहां के ग्रामीण रक्षाबंधन पर्व नहीं मना रहे हैं।
रक्षाबंधन पर्व न मनाने के पीछे मान्यता यह है कि कहीं इस पर्व पर बहन ऐसा उपहार न मांग लें, जिससे उन्हें पहले की तरह गांव छोड़ना पड़ जाए। गांव के बुजुर्गों की माने तो वे पहले अलीगढ़ की अतरौली तहसील के गांव सेमराई में रहते थे। ये गांव यादव और ठाकुर बहुल था। लेकिन जमींदारी यादव परिवार की थी। दोनों वर्गों में घनिष्ठता थी। बुजुर्ग बताते हैं कि कई पीढ़ियों तक ठाकुर परिवार में कोई बेटा नहीं जन्मा, इसलिए इस परिवार की एक बेटी ने यादवों के बेटों को राखी बांधना शुरू कर दिया, लेकिन एक बार ठाकुर की बेटी ने जमींदार के बेटे को राखी बांधी और उपहार में जमींदारी मांग ली। इस पर जमींदार ने उसी दिन गांव छोड़ने का निर्णय लिया। हालांकि, बाद में ठाकुर की बेटी और गांव वालों ने जमींदार को बहुत मनाया लेकिन वे नहीं माने। बाद में जमींदार अपने कुनबे संग संभल के गांव बेनीपुर चक में आकर बस गए। तब से यहां रहने वाले यादव समाज के लोग ने फैसला लिया कि अब राखी नहीं बंधवाएंगे। गांव निवासी शिक्षामित्र सुरेंद्र यादव बताते हैं कि इस गांव में यादव परिवार मेहर और बकिया गौत्र के हैं। इसी गौत्र के यादव रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाते हैं।
आसपास के कई गांवों में यह परिवार नहीं मनाते रक्षाबंधन
बेनीपुर गांव में मेहर और बकिया गौत्र के यादव परिवारों में रक्षाबंधन न मनाने की परांपरा आज भी जीवंत है। बेनीपुर चक के निवासी जबर सिंह यादव बताते हैं कि मेहर गौत्र के लोग आसपास के गांव कटौनी, चुहरपुर, महोरा लखुपुरा, बड़वाली मढ़ैया में भी रहते हैं, वे परिवार भी रक्षाबंधन नहीं मनाते हैं। वे भी दशकों पुरानी मान्यता का पालन कर रहे हैं।
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