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    जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की कुल सीटें 114 लेकिन चुनाव होंगे केवल 90 पर, जानें क्या है वजह

  • August 16, 2024

    डेस्क: भारतीय चुनाव आयोग ने 10 साल बाद जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी है. इस घोषणा के साथ ही जम्मू-कश्मीर में सियासी माहौल गर्माने लगेगा. ये चुनाव वहां तीन चरणों में होंगे. चुनाव 18 सितंबर से 01 अक्टूबर तक होंगे. यानि वोटिंग केवल 14 दिनों में हो जाएगी. हालांकि परिसीमन में राज्य में जितनी सीटें निर्धारित की गईं, उतने पर चुनाव नहीं होंगे. इसकी क्या खास वजह है.

    जम्मू-कश्मीर में कुल 114 विधानसभा सीटें हैं लेकिन राज्य में विधानसभा सीटों के डिलीमिटेशन के बाद चुनाव केवल 90 सीटों पर ही होंगे. क्यों ऐसा होगा, इसकी भी वजह है. दरअसल ये 24 सीटें पीओके यानि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में राजनीतिक और प्रशासनिक परिवर्तनों के कारण इनमें से केवल 90 सीटों के लिए चुनाव होना तय है।

    वर्ष 2019 में जब जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के जरिए जब आर्टिकल 370 को हटाया गया तो राज्य में चुनावी सीटों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने के लिए परिसीमन प्रक्रिया शुरू की. मार्च 2020 में एक परिसीमन आयोग की स्थापना की गई. इसकी अंतिम रिपोर्ट मई 2022 में जारी की गई. इस रिपोर्ट ने विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 कर दी, जिसमें 06 सीटें जम्मू और 01 कश्मीर में शामिल की गई.

    114 सीटों में 24 सीटें पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के क्षेत्रों के लिए आरक्षित हैं, जिसका अर्थ है कि उन पर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है. इसलिए, चुनाव के लिए उपलब्ध सीटों की प्रभावी संख्या 90 है. जम्मू संभाग में 43 और कश्मीर संभाग में 47. राज्य का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद यहां पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं.

    राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव नवंबर-दिसंबर 2014 में हुए थे यानि दस साल पहले. चुनाव के बाद, जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन ने राज्य सरकार बनाई, जिसमें मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का 7 जनवरी 2016 को निधन हो गया. फिर राज्यपाल शासन कम समय के लिए लगा. फिर महबूबा मुफ्ती ने वहां मुख्यमंत्रेी पद के लिए रूप में शपथ ली.


    जून 2018 में भाजपा ने पीडीपी के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू हो गया. नवंबर 2018 में, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्य पाल मलिक ने राज्य विधानसभा भंग कर दी. 20 दिसंबर 2018 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को पाकिस्तान आकुपाइड कश्मीर यानि पीओके के तौर पर भारत में जाना जाता है तो पाकिस्तान में इसे आज़ाद जम्मू और कश्मीर (एजेके) के नाम से जाना जाता है. वहां पर चुनाव आटोनोमस स्थानीय स्थानीय शासन के लिए होते हैं.

    पाकिस्तान के कब्जे वाले इस इलाके में पाकिस्तान जिस स्थानीय प्रशासन के लिए एजेके विधान सभा के चुनाव यहां कराता है, उसमें 53 सदस्य हैं. इसमें 45 सामान्य सीटें शामिल हैं, जिन पर सीधे चुनाव लड़ा जाता है. 8 आरक्षित सीटें हैं. यहां पर चुनाव में भाग लेने के लिए लगभग 3.2 मिलियन मतदाता पंजीकृत हैं. 700 से ज्यादा लोग चुनाव लड़ते हैं. इसमें पाकिस्तान के मुख्य दल भी चुनाव लड़ते हैं. आमतौर पर वो पार्टी यहां चुनाव जीतती तो राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता में होती है.

    हालांकि यहां के चुनावों को भी कम चुनावी पारदर्शिता के लिए आलोचना का सामना करना पड़ता है. इस विधानसभा के पास सीमित शक्तियां हैं, इनके महत्वपूर्ण अधिकार पाकिस्तान के प्रधान मंत्री और कश्मीर परिषद के पास हैं. पिछले कुछ समय में इस इलाके में पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन भी होते रहे हैं. पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर यानि पीओके का क्षेत्रफल लगभग 13,297 वर्ग मील या 34,639 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है. ये प्रशासनिक रूप से 10 जिलों में विभाजित है. इसमें मुजफ्फराबाद, नीलम, झेलम घाटी, हवेली, बाग, रावलकोट, पूंछ, कोटली, मीरपुर और भुमर जिले आते हैं. इसके अलावा, गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र का अपना प्रशासनिक ढांचा है.

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