नई दिल्ली: बांग्लादेश (Bangladesh) में छात्रों के हिंसक प्रदर्शन के बाद शेख हसीना (Sheikh Hasina) को देश छोड़कर भागना पड़ा और फिलहाल वह भारत में शरण ले रखी हैं. उस समय बांग्लादेश के सेना प्रमुख (Bangladesh Army Chief) ने दावा किया था कि शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन अब उनके बेटे और सलाहाकार साजिब वाजेय जॉय ने दावा किया कि शेख हसीना ने भारत भागने से पहले प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया था, क्योंकि सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों ने उनके अधिकारिक आवास गणभबन को घेर लिया और उन्हें इस्तीफा देने का मौका नहीं मिला था.
हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने वाशिंगटन से मीडिया को बताया कि उनकी मां ने कभी आधिकारिक तौर पर इस्तीफा नहीं दिया. उन्हें समय नहीं मिला. उन्होंने एक बयान देने और अपना इस्तीफा सौंपने की योजना बनाई थी, लेकिन फिर प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री के आवास को घेर लिया. इस कारण उनके पास और समय नहीं था. वह इस्तीफा नहीं दे सकीं. वह अभी भी प्रधानमंत्री हैं. हालांकि अब बांग्लादेश में नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनुस के नेतृत्व में एक अतंरिम सरकार ने शपथ ली है और मंत्रालय का भी बंटवारा हो गया है. ऐसे में शेख हसीना के बेटे का दावा कई सवाल पैदा कर रहा है.
साजिब वाजेय जॉय के बयान के बाद यह सवाल उठने लगे कि क्या शेख हसीना अभी भी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं? क्योंकि उनके बांग्लादेश छोड़ने से पहले बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमां ने ऐलान किया था कि शेख हसीना ने देश छोड़ने से पहले इस्तीफा दे दिया था, लेकिन इस बाबत अभी तक शेख हसीना की ओर से कोई बयान नहीं आया है, लेकिन अब उनके बेटे से उनके इस्तीफे को खारिज कर दिया है.
शेख हसीना के बेटे के दावे पर सेंटर फॉर रिचर्स इंडो बांग्लादेश रिलेशंस द्वारा प्रकाशित पुस्तक हिंदू डिक्रेसेंट बांग्लादेश एंड वेस्ट बंगाल के लेखक बिमल प्रमाणिक कहते हैं कि यदि शेख हसीना ने इस्तीफा नहीं दिया है, तो वह अभी भी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं. ऐसे में मोहम्मद युनुस के नेतृत्व में गठित सरकार पूरी तरह से अनैतिक, असंवैधानिक और गलत है. अंतरिम सरकार की कोई वैद्यता नहीं है. अंतरराष्ट्रीय स्तर भी इस अंतरिम सरकार को मान्यता नहीं मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत सरकार की ओर से अंतरिम सरकार के गठित होने पर बधाई दी गई है. सरकार को भी अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.
दूसरी ओर, बांग्लादेश मामलों के विशेषज्ञ पार्थ मुखोपाध्याय शेख हसीना के बेटे के दावे को पूरी तरह से खारिज करते हुए कहते हैं कि शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के साथ ही सेना प्रमुख ने उनके इस्तीफे के ऐलान किया था. हालांकि यह सच है कि शेख हसीना ने खुद ही राष्ट्रपति को खुद जाकर इस्तीफा पत्र नहीं सौंपा था. निश्चित रूप से किसी संदेशवाहक के माध्यम से इस्तीफा पत्र भेजा था.
उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि शेख हसीना के बेटे ने संदेहास्पद स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश की है. ऐसी योजना थी शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में शेख हसीना के तख्तापलट और अंतरिम सरकार के खिलाफ केस फाइल किया जाएगा, लेकिन इसकी भनक प्रदर्शन कर रहे छात्रों और अंतरिम सरकार को लग गई. प्रदर्शनकारी छात्रों के संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ओबैदुल हसन और अन्य न्यायाधीशों के घेराव की धमकी दी और इस्तीफे की मांग.
उनका कहना था कि ये न्यायाधीश शेख हसीना सरकार द्वारा नियुक्त किए गये हैं. छात्र संगठनों द्वारा यह धमकी दी गई थी कि यदि उनलोगों ने इस्तीफा नहीं दिया तो सुप्रीम कोर्ट पर कब्जा कर लिया जाएगा और उन्हें जला दिया जाएगा. छात्र संगठनों की धमकी के बाद मुख्य न्यायाधीश ओबैदुल सहन सहित सात न्यायाधीशों ने इस्तीफा दे दिया.
दूसरी ओर, शेख हसीना के साजिब वाजेय जॉय लगातार यह बयान दे रहे हैं कि शेख हसीना बांग्लादेश लौटेंगे. जानकारों का मानना है कि इसके पीछे उनकी रणनीति है कि शेख हसीना के तख्तापलट के बाद वहां के लोगों की सहानुभूति पाया जा सके. इसके साथ ही वह अंतरराष्ट्रीय स्तर भी शेख हसीना के स्टेट्स को बरकरार रखना चाह रहे हैं, क्योंकि शेख हसीना को शरण देने को लेकर ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों को रूख बहुत सकारात्मक नहीं है.
शेख हसीना ने भारत में शरण ले रखी है, लेकिन भारत सरकार की ओर से अंतरिम सरकार को बधाई और सहयोग का आश्वासन दिया गया है. बीएनपी के नेता ने शेख हसीना को भारत में शरण देने पर आपत्ति जताई है. ऐसे में शेख हसीना भारत में कितने दिनों तक रह पाएगी. इसे लेकर भी संदेह जताया जा रहा है.
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