नई दिल्ली (New Delhi) । इस साल होने वाले 3 राज्यों के विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) में हरियाणा (Haryana) एक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस अकेले दम पर सरकार बनाने का दावा कर सकती है. 2019 में हुए विधानसभा चुनाव और 2024 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस Congress() का प्रदर्शन दमदार रहा है. पर हरियाणा कांग्रेस की दिक्कत यह है यहां की गुटबाजी कांग्रेस का डब्बा गोल कर देती है.
गुटबाजी की स्थिति को इस तरह समझ सकते हैं कि विधानसभा चुनाव संपन्न होने में सिर्फ 2 महीने बचे हैं और राज्य में 2 राजनीतिक यात्राएं निकली हुईं हैं. और दोनों में कहीं से भी कोई कम्युनिकेशन नहीं है. एक यात्रा प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा निकाल रहे हैं जिसमें उनके पुत्र सांसद दीपेंद्र हुड्डा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बताया जा रहा है. दूसरी यात्रा दलित नेता और सांसद कुमारी शैलजा के नेतृत्व में निकला हुआ है जिसमें शैलजा खुद को प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री बता रही हैं. पर 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव को कांग्रेस हाईकमान गुटबंदी के चलते अपने हाथ से निकलने नहीं देगा.
हरियाणा के राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी हरियाणा में किसी दलित को सीएम कैंडिडेट घोषित कर सकते हैं. हो सकता है कि यह कुमारी शैलजा हों या कोई और पर इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. यह फैसला राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है. क्योंकि ऐसा करना कांग्रेस के लिए कई स्तरों पर फायेदमंद साबित हो सकता है.
1-क्यों कांग्रेस के लिए यह दांव मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है
अगर कांग्रेस हरियाणा में दलित सीएम कैंडिडेट घोषित कर देती है तो समझिए कि राहुल गांधी की उन बातों पर मुहर लग जाएगी जिसमें वो दलितों के लिए बार बार हमदर्दी जताते रहे हैं. जिस तरह राहुल गांधी ने संविधान बचाओ को मुद्दा बनाया, बजट निर्माण के दौरान हलवा सेरेमनी में दलित और पिछड़े अफसरों को शामिल नहीं करने की बात उठाई, जिस तरह वे अपनी हर स्पीच में जातिगत जनगणना की डिमांड कर रहे हैं, जिस तरह उनकी हर स्पीच में दलितों और कमजोर वर्गों के हित की बात होती है, यह फैसला आम लोगों के उन पर भरोसे को पुख्ता करेगा. यह राहुल गांधी के व्यक्तित्व के लिए बड़ी उपलब्धि होगी. अभी राहुल गांधी जब ऐसी बातें करते हैं तो सवाल उठता है कि वो केवल बातें करते हैं, हकीकत में कुछ नहीं कर रहे हैं. पर पंजाब में सीएम कैंडिडेट के रूप में दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी का नाम आगे बढा़ने के बाद यह दूसरा मौका होगा जब राहुल गांधी एक दलित सीएम कैंडिडेट घोषित करेंगे. इसके पहले कर्नाटक में भी सिद्धारमैया जो दलित समुदाय से आते हैं को कांग्रेस सीएम बना चुकी है. दलित नेता मल्लिकार्जुन खरगे को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने पहले ही अपने इरादे जता दिए थे.अगर हरियाणा में दलित सीएम बनता है तो यह कांग्रेस के लिए भविष्य में पश्चिमी यूपी, दिल्ली, और पंजाब के लिए भी फायदेमंद साबित होगा.
2- हरियाणा में दलित राजनीति कितनी अहम
हरियाणा में 19% दलित वोट को साधने के लिए दलित सीएम कैंडिडेट का बड़ा फैसला पार्टी के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है. राज्य में 17 विधानसभा सीटें रिजर्व हैं. राज्य में कुल विधानसभा सीटों की संख्या 90 है. बहुमत हासिल करने के लिए कुल 46 सीट जीतनी जरूरी है. जाहिर है कि किसी दलित सीएम कैंडिडेट के नाम पर प्रदेश के दलितों का वोट एकमुश्त मिलने की संभावना बढ़ जाएगी. कांग्रेस ने इसके पहले चौधरी उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर दलितों का लुभाने का पहला कदम चल चुकी है. गौरतलब है कि उदयभान भी अनुसूचित जाति से ही आते हैं. दलितों का कुछ वोट हरियाणा में बीएसपी को भी मिलता रहा है. बीएसपी ने राज्य में इनेलो के साथ गठबंधन किया है. बीजेपी भी दलित वोट मिलने का दावा करती रही है. इसका कारण ये रहा है कि जहां जाट वोट गिरते रहे हैं वहां आम तौर पर दलितों का वोट नहीं जाता रहा है. पर संविधान बचाओ नारे और दलित सीएम कैंडिडेट के चलते राज्य में इस बार ट्रेंड बदल सकता है.रिजर्व सीटें ही नहीं , समान्य सीटों पर भी दलित वोट बहुत बड़े पैमाने पर उलट फेर करने में सक्षम होगा.
3-कुमारी शैलजा की यात्रा पर कांग्रेस की चुप्पी
आम तौर पर हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गुट सबसे ताकतवर है.लोकसभा चुनावों में सबसे अधिक टिकट हुड्डा समर्थकों को ही मिले थे. 2019 के विधानसभा चुनावों में भी भूपेंद्र हुड्डा गुट ही प्रभावी रहा है. लोकसभा चुनावों में भूपेंद्र हुड्डा का गुट और कुमारी शैलजा का गुट बिल्कुल अलग पार्टियों की तरह काम कर रहे थे. दोनों गुटों ने हरियाणा में अपनी यात्राएं निकाली हुईं हैं. कुमारी शैलजा के पोस्टरों में चौधरी बीरेंद्र सिंह और रणदीप सुरजेवाला की तस्वीरें हैं, पर प्रदेश अध्यक्ष उदयभान और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तस्वीरें गायब हैं.
शैलजा की यात्राओं में उन्हें प्रदेश में सीएम का कैंडिडेट बताया जा रहा है जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा की यात्राओं में दीपेंद्र हुड्डा को सीएम कैंडिडेट बताया जा रहा है. हुड्डा गुट को प्रदेश के 4 सांसदों का समर्थन हासिल है जबकि शैलजा के साथ कोई सांसद नहीं है पर चौधरी बीरेंद्र सिंह और रणदीप सुरजेवाला उनके साथ हैं. पर शैलजा गुट की यात्रा पर हाईकमान की चुप्पी से स्थानीय लोग हैरानी व्यक्त कर रहे हैं. हरियाणा की राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार अजय दीप लाठर कहते हैं कि इसमे कोई दो राय नहीं हो सकती कि कांग्रेस हाईकमान कुमारी शैलजा को सीएम का कैंडिडेट घोषित कर दे. दरअसल कुमारी शैलजा की बेदाग छवि और उनका महिला होना भी उनके पक्ष में जा सकता है. सोनिया गांधी से उनकी नजदीकी भी जगजाहिर है. लाठर कहते हैं कि हरियाणा के जाट इस समय केवल बीजेपी को हारते हुए देखना चाहते हैं . इसके लिए वो कुमारी शैलजा को भी सीएम कैंडिडेट के रूप में स्वीकार कर लेंगे.
4-डीके शिवकुमार का मामला नजीर है
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के विजय के पीछे राज्य के वर्तमान डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी पर सीएम सिद्धरमैया को बनाया गया. इसके पीछे 2 कारण काम कर रहे थे. पहली सिद्धारमैया का दलित होना और दूसरी डीके शिवकुमार पर ईडी और सीबीआई के मामलों का होना. कांग्रेस इस बात को अच्छी तरह समझती है कि आज की तारीख में किसी सीएम को जेल भेजने का दुस्साहस कभी भी केंद्र कर सकता है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के केस में हम देख चुके हैं. चूंकि भूपिंदर सिंह हुड्डा पर भी सीबीआई और ईडी के केस दर्ज हैं इसलिए कभी भी उनको जेल की हवा खानी पड़ सकती है. दूसरे हुड्डा की नजदीकियां राबर्ट वाड्रा से रही हैं. हुड्डा के चलते ही राबर्ट वाड्रा का नाम कई मामलों में घसीटा गया है. कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि अब फिर से पुराने गड़े मुर्दे उखाड़े जाएं. हालांकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा इन्हीं सब बातों के चलते अपने नाम के बजाय सीएम कैंडिडेट के लिए अपने बेटे का नाम आगे बढ़ा रहे हैं. पर हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र हुड्डा के नाम पर एक बार सभी एकमत हो भी सकते हैं पर उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए सभी गुट कभी भी तैयार नहीं होंगे.
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