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उज्जैन जिले में एक दृश्य ऐसा जहाँ चंबल नदी त्रिशूल के आकार में बहती है

July 29, 2024

  • इस नदी के बीच में स्वयंभू शिवलिंग को लोग मालवा का केदारनाथ मानते हैं
  • क्योंकि 6 माह पानी में और 6 माह देते हैं दर्शन-मंदिर का निर्माण भी नहीं हो पाता

उज्जैन। जिले का एक अद्भुत और चमत्कारिक स्थान है जहाँ बहने वाली नदी भी त्रिशूल के आकार में बहती है। इस नदी के बीचों-बीच बरसों पुराने प्राचीन अपने आप में स्वयंभू कहे जाने वाले शिवलिंग को भी लोग मालवा का केदारनाथ कहते हैं। इस मंदिर पर कभी पक्का निर्माण नहीं हो सका है ग्रामीणों ने सिर्फ चबूतरा मात्र ही बनाया है।


बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन और इसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में कई प्राचीन भगवान शिव के मंदिर विराजित है जिनकी अपनी-अपनी अलग-अलग महिमा है लेकिन कुछ शिव मंदिर ऐसा भी है जो अपनी अनूठी महिमा को लेकर प्रसिद्ध पाए हुए हैं। उज्जैन जिले के इंगोरिया गाँव जाने के बाद 6 किलोमीटर दूर ग्राम दंगवाड़ा से 2 किलोमीटर चंबल नदी के बीचों-बीच स्थित एक महादेव हैं जिन्हें मालवा का केदारनाथ महादेव माना जाता है। इस मंदिर का रहस्य आज भी लोगों को हैरान करता है। यहाँ विराजित प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग जलेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्थान चंबल नदी के बीचो बीच है। चंबल नदी इस स्थान पर त्रिशूल आकार में बह रही है। बारिश के समय नदी रौद्र रूप में बहती है तो जलेश्वर महादेव अपना स्थान छोड़कर धारा की विपरीत दिशा में चले जाते हैं। यह चमत्कार देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार जलेश्वर महादेव स्वयंभू शिवलिंग हैं। लोग कहते हैं कि यह महादेव की महिमा ही है कि चंबल नदी के बीचों-बीच शिवलिंग विराजमान हैं। कितनी भी अधिक बारिश क्यों ना हो यहाँ एक बार भगवान की कोई भी प्रतिमा बहकर आई तो फिर वह महादेव के पास रुक जाती है। पानी में कितना ही तेज बहाव क्यों ना हो, जलेश्वर महादेव की प्रतिमा के साथ मंदिर के आसपास की कोई प्रतिमा नहीं बहती। ऐसे में यहा सैकड़ों देवी देवताओं की खंडित प्रतिमाएँ भी देखने को मिलती हैं। 12 ज्योतिर्लिंग में केदारनाथ मंदिर काफी प्रसिद्ध है। जैसे बाबा केदार अपने भक्तों को 6 महीने दर्शन देकर 6 महीने विश्राम करते हैं। ऐसे ही जलेश्वर महादेव की भी महिमा है। यहाँ शिवलिंग के 6 माह तक ही दर्शन होते हैं साथ ही महादेव 6 माह जलमग्न रहते हैं। इसलिए इनको मालवा के केदारनाथ कहते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि यह इतना प्रसिद्ध मंदिर है बहुत सारे लोगों की मन्नत पूरी होने के बाद उन्हें लगा महादेव धूप में विराजमान हैं। यहाँ कोई छत होना चाहिए तो यहाँ मन्नत धारियों ने छत का निर्माण भी कराया लेकिन एक चमत्कार ऐसा हुआ कि कोई आंधी तूफान नहीं फिर भी छत 2 घंटे भी नहीं टिक पाई। ऐसा एक बार नहीं कई बार हुआ। फिर लोगों ने माना कि जलेश्वर महादेव की ही महिमा है, शायद उन्हें खुले आसमान के नीचे ही रहना पसंद है, इसलिए मंदिर मे कोई नया कार्य नहीं कराया जाता। जब चंबल नदी रौद्र रूप में बहती है तब यहाँ अद्भुत नजारा देखने को मिलता हैं। बड़े-बड़े पेड़, पत्थर अपना स्थान छोड़ देते हैं लेकिन जलेश्वर महादेव विपरीत दिशा में स्थापित होकर मंदिर से ज्यादा से ज्यादा 10 फीट की दूरी पर दिखाई देते हैं। नदी के पानी का स्तर कम हो जाने के बाद कोई भी भक्त शिवलिंग को वापस जलाधारी पर रख कर स्थापित कर देता है। जिस दिशा में पानी बहता है। शिवलिंग उसके विपरीत दिशा में चला जाता है। इसी के साथ मंदिर की घंटी, ध्वज भी जरा भी बरसात में बहकर कहीं नहीं जाते, ना ही क्षतिग्रस्त होते हैं।

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