नई दिल्ली(New Delhi) । आपराधिक मामलों (Criminal cases)की जांच में DNA फिंगरप्रिटिंग (DNA fingerprinting)की भूमिका निर्णायक (Role decisive)साबित हुई है। इसके बावजूद पिछले तीन दशक से देश(For three decades, the country) में इसका मजबूत ढांचा खड़ा नहीं हो पाया है। नतीजा यह है कि देशभर की फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं में DNA फिंगरप्रिंटिंग के करीब आठ लाख मामले जांच के लिए लंबित पड़े हैं। प्रयोगशालाओं में DNA प्रोफाइलिंग के मामलों की जांच के लंबित होने की दर 79 फीसदी है। करंट साइंस जर्नल में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिकों की कमी, आधुनिक मशीनों की अनुपलब्धता और राज्यों में प्रयोगशालाओं की असमान मौजूदगी के कारण जांच में भारी विलंब हो रहा है। फॉरेंसिक साइंस इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 70.5 फीसदी आपराधिक मामलों में नमूने जांच के लिए भेजे जाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, विकसित देशों में प्रति दस लाख आबादी पर 200-500 फॉरेंसिक वैज्ञानिक होते हैं, वहीं भारत में यह संख्या महज 3.3 है। जबकि नए अपराध कानून में फॉरेंसिक जांच पर विशेष ध्यान देने को कहा गया है।
जरूरी सामान आयात करना पड़ रहा
फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं के लिए जरूरी DNA क्वांटिफिकेशन किट, एसटीआर किट, पीसीआर मशीन, जेनेटिक एनलाइनजर तथा एनलालिसिस सॉफ्टवेयर विदेशों से आयात होते हैं और बेहद महंगे हैं। इसलिए सभी प्रयोगशालाओं के पास इनकी उपलब्धता नहीं है। अनेक प्रयोगशालाएं महज नमूने एकत्र करती हैं और उन्हें दूसरी लैब को भेज देती हैं।
यूपी-बिहार आबादी में ज्यादा पर प्रयोगशालाएं कम
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे ज्यादा आबादी वाले प्रदेशों में फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं की कमी है। या सभी फारेंसिक प्रयोगशलाओं में DNA फिंगरप्रिटिंग या प्रोफाइलिंग की जांच की व्यवस्था नहीं है।
क्या है DNA फिंगरप्रिटिंग
DNA फिंगरप्रिटिंग में किसी व्यक्ति की विशेष अनुवांशिक विशेषताओं के आधार पर पहचान की जाती है। इसके उपयोग से उसकी पहचान या अपराध में उसकी संलिप्तता का पता चलता है। देश में कई चर्चित मामलों जैसे राजीव गांधी हत्याकांड, निठारी हत्याकांड, नैना साहनी तंदूर कांड, प्रियदर्शनी मट्टू केस, निर्भया मामले में DNAन जांच निर्णायक साबित हुई थी।
भारत में 1989 से शुरू हुआ तकनीक पर काम
– 1984 में ब्रिटेन के वैज्ञानिक सर एलेक जेफरी ने पहली बार DNA फिंगरप्रिटिंग तकनीक का इस्तेमाल एक अपराध को सुलझाने में किया था।
– 1989 में भारत में सीसीएमबी हैदराबाद ने इस तकनीक पर काम शुरू किया।
– 1991 में भारत में पहली बार केरल में पितृत्व के एक मामले को DNA जांच के जरिये सुलझाया गया था।
– 1996 में हैदराबाद में सेंटर फॉर DNA फिंगरप्रिटिंग एंड डायग्नोसिस (सीडीएफडी) की स्थापना हुई।
– 1998 में सीएफएसल कोलकात्ता ने पहली बार DNA फिंगरप्रिटिंग जांच केंद्र शुरू किया।
अब यह है स्थिति
– देश में सात केंद्रीय, 32 राज्य स्तरीय, 80 क्षेत्रीय और 529 मोबाइल फारेंसिक यूनिट हैं।
– 80 विश्वविद्यालयों एवं संस्थानाों में फॉरेंसिक की पढ़ाई या प्रशिक्षण होता है।
एक-दो घंटे में निकलता है निष्कर्ष
आज DNA जांच के लिए अत्याधुनिक मशीनें उपलब्ध हैं, जिनसे 1-2 घंटे में नतीजे निकाले जा सकते हैं। इंटरपोल के सर्वे के अनुसार 70 देशों ने अपराधियों एवं लापता लोगों का राष्ट्रीय डाटाबेस तैयार करना शुरु कर दिया है, जिसमें भारत भी शामिल है।
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