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    21 साल पहले बिकी न्याय नगर की 8 एकड़ जमीन सुप्रीम कोर्ट आदेश से बिल्डर को मिली, मगर भूमाफिया ने 77 हजार स्क्वेयर फीट पर तनवा डाले 71 अवैध मकान

  • July 26, 2024

    • न्याय नगर का अन्याय , मकान मालिकों की एसएलपी अभी हो गई खारिज, जिसके चलते प्रशासन को आज भारी विरोध के बीच चलवाना पड़े बुलडोजर, अवमानना की याचिका भी लगाई, नोटरी पर बेच दिए भूखंड

    इन्दौर। न्याय नगर की जिस जमीन पर तने अवैध मकानों को तोडऩे आज भारी भरकम पुलिस, प्रशासन, निगम का अमला मौके पर पहुंचा और रहवासियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। दरअसल न्याय नगर संस्था की 8 एकड़ जमीन 21 साल पहले 2003 में ही बिक गई थी। और उसके बाद शासन, प्राधिकरण बोर्ड का निर्णय भी बिल्डर के पक्ष में हुआ और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट न भी बिल्डर के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके चलते प्रशासन को जमीन का कब्जा खाली करवाकर देना है, क्योंकि हाईकोर्ट में अवमानना याचिका भी बिल्डर की ओर से दायर कर रखी है। भूमाफिया ने 77 हजार स्क्वेयर फीट जमीन पर 71 अवैध मकान तनवा दिया और भूखंडों को नोटरी के जरिए बेच डाला और अब इन मकानों को तोड़ा जा रहा है।

    प्राधिकरण की पुरानी योजना 132 जो कि बाद में 171 के नाम से जानी जाती रही। इस योजना में शामिल खसरा नंबर 83/2, 84/2, 66/2-क, 73/4/2, 74 और 75/3 की कुल रकबा 3.194 हेक्टेयर यानी लगभग 8 एकड़ जमीन श्रीराम बिल्डर्स तर्फे शशिभूषण खंडेलवाल की है, जिस पर नगर तथा ग्राम निवेश ने 7-7-2006 को ही अभिन्यास मंजूर किया था। चूंकि मास्टर प्लान में इस जमीन का उपयोग वाणिज्यिक दशाया गया है। लिहाजा अभिन्यास और नगर निगम से मिली मंजूरी भी वाणिज्यिक ही रही। इस 8 एकडज़मीन में से 77 हजार स्क्वेयर फीट जमीन पर विगत वर्षों में अवैध मकान निर्मित होने लगे।


    दरअसल भूमाफियाओं के चंगुल में जो गृह निर्माण संस्थाओं की जमीनें रही, उसमें न्याय नगर संस्था भी शामिल है, जिसकी जमीनों पर दीपक मद्दे से लेकर बब्बू-छब्बू, नागर सहित अन्य ने अवैध-खरीद फरोख्त के साथ-साथ नोटरी पर भी भूखंड बेच डाले और लोगों ने उस पर मकान लिए, जिन पर अब बुल्डोजर अदालती आदेश के चलते प्रशासन को चलाना पड़ रहे हैं। दरअसल कुछ वर्ष पूर्व जब आपरेशन भू-माफिया शुरू हुआ, तब संस्थाओं की जमीनों को मुक्त करवाकर पीडि़तों को भूखंड उपलब्ध कराने की प्रक्रिया शुरू की गई, जिसके चलते न्याय विभाग कर्मचारी गृह निर्माण संस्था की जमीनों की भी जांच तत्कालीन कलेक्टर ने करवाई और सहकारता विभाग के जरिए पूर्व में दी गई एनओसी को भी निरस्त करवा दिया। हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने इस पर भी फटकार लगाई और खासकर निगम पर सवाल उठाए कि उसे दी गई भवन अनुज्ञा को प्रतिसहत करने और रजिस्ट्रियो को शून्य करने के अधिकार कैसे हैं। अभी सुप्रीम कोर्ट ने रहवासियों की एसएलपी भी खारजि कर दी, जिसे चलते बुल्डोजर चलाकर मकानों को तोडऩे की कार्रवाई की जा रही है, जिसका आज काफी विरोध भी रहवासियों की ओर से मौके पर किया गया।

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