नई दिल्ली। जगन्नाथ पुरी (Jagannath Puri) का रत्न भंडार 46 साल बाद गणना के लिए खोला गया. हाईकोर्ट (High Court) के पूर्व जज की अध्यक्षता में बनी कमेटी जब रत्न भंडार खोलने पहुंची तो पुरी के महाराजा (Maharaja) को भी बुलाया गया. पुरी के महाराजा जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) के मुख्य सेवक होते हैं. इस नाते उनकी मौजूदगी में रत्न भंडार खोला गया. पुरी के वर्तमान महाराजा गजपति दिव्यसिंह देव (Gajapati Divya Singh Dev) (चतुर्थ) हैं. गजपति एक उपाधि है, जो पुरी के महाराजाओं के लिए 15वीं शताब्दी से इस्तेमाल होती रही है.
कौन हैं पुरी के महाराजा?
गजपति दिव्यसिंह देव (चतुर्थ) भोई राजवंश से ताल्लुक रखते हैं. साल 1970 में जब उनके पिता महाराजा बीरकिशोर देव की मृत्यु हुई, तब वह गद्दी पर बैठे. उस समय उनकी उम्र मात्र 17 साल थी. महाराजा गजपति दिव्यसिंह देव (चतुर्थ) की शुरुआती पढ़ाई-लिखी पुरी के कान्वेंट स्कूल में हुई. इसके बाद राजकुमार कॉलेज, छत्तीसगढ़ चले आए. यहां से दिल्ली के मशहूर सेंट स्टीफन्स कॉलेज में दाखिला लिया और हिस्ट्री में ग्रेजुएशन की. 1975 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई पूरी की. फिर अमेरिका की नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी चले गए और एलएलएम की डिग्री ली.
Gajapati Kings of #Odisha-….Divyasingha Deva(6/6)#UtkalaDibasa Maharaj Divyasingha Deva 4th is d present Gajapati. pic.twitter.com/8BIokk2Ahz
— Shri Jagannatha (@shrijagannatha) April 1, 2015
मंदिर के मुख्य सेवक और अध्यक्ष
पुरी के महाराजा गजपति दिव्यसिंह देव (चतुर्थ) (Puri King Gajapati Divyasingha Deva), जगन्नाथ मंदिर के अधयसेवक (मुख्य सेवक) और प्रबंध समिति के अध्यक्ष हैं. इस नाते वह जगन्नाथ पुरी से जुड़े तमाम धार्मिक अनुष्ठानों की अगुवाई भी करते हैं. वह सबसे पहले ‘छेरा पहरा’ में शामिल होते हैं, जिसमें रथ यात्रा (पुरी) के दौरान रथों की प्रतीकात्मक सफाई शामिल है. महाराजा गजपित दिव्यसिंह देव (चतुर्थ) श्री जगन्नाथ तत्व, गबेषण ओ प्रसार उपसमिति जैसी विद्वानों की एक टीम की अगुवाई भी करते हैं.
किस राजवंश ने रखी मंदिर की नींव
जगन्नाथ पुरी की स्थापना 1150 ईस्वी में गंग राजवंश के शासनकाल में हुआ था. उस समय राजा चोडगंग गद्दी पर थे. उन्होंने ही मंदिर की नींव रखी. साल 1161 में मंदिर तैयार हुआ. कई ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि राजा चोडगंग ने अपने शासनकाल में पुरी के ‘जगमोहन’ और ‘विमान’ भाग का निर्माण करवाया. उन्होंने न सिर्फ मंदिर का निर्माण कराया, बल्कि भारी-भरकम दान भी दिया. जिसमें सोने के हाथी, घोड़े, बहुमूल्य रत्न, बर्तन और फर्नीचर जैसी चीजें शामिल थीं.
पुरी के खजाने में क्या-क्या मिला?
जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार दो हिस्सों में बंटा है- बाहरी चेंबर और अंदरूनी चेंबर. बाहरी चेंबर में ऐसी चीजें रखी जाती हैं, जिन्हें बार-बार निकालना पड़ता है. मसलन-भगवान के ऐसे आभूषण जो रथ यात्रा और दूसरे मौकों पर पहनाए जाते हैं. इसके अलावा नियमित मिलने वाला चढ़ावा. जबकि भीतरी चेंबर में सदियों पुराना खजाना रखा है. जिसमें सोने, चांदी, हीरा, मोती और तमाम तरह के रत्नों से बने आभूषण और बेशकीमती चीजें शामिल हैं.
भीतरी चेंबर: सरकार द्वारा गठित कमेटी को भीतरी चेंबर के अंदर मोटे कांच से बनी तीन और लोहे की एक बड़ी आलमारी मिली. जबकि 3 फीट ऊंची और 4 फीट चौड़ी लकड़ी के दो संदूक और लोहे का एक संदूक मिला. सबमें सोना भरा हुआ था. टीम ने पहले इन संदूकों को बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन ये इतने भारी थे कि अपनी जगह से हिले तक नहीं. बाद में इन संदूकों को महाप्रभु जगन्नाथ के शयनकक्ष में शिफ्ट कर दिया गया. अनुमान लगाया जा रहा है कि अभी तक भीतरी चेंबर में जो खजाना मिला है, उसकी कीमत 100 करोड़ रुपए से ज्यादा हो सकती है.
बाहरी चेंबर: इससे पहले बाहरी चेंबर (Jagannath Puri Temple Treasure) में भी बेशकीमती हीरे, मोती, सोने, चांदी के जेवरात और तमाम आभूषण मिले थे. इन्हें 6 संदूक में भरकर स्ट्रांग रूप में शिफ्ट किया गया है. पुरी के महाराजा गजपति दिव्यसिंह देव ने बताया कि रत्न भंडार में ताला लगाकर चाबी सरकारी खजाने में जमा कर दी गई है. अब दोनों रत्न भंडार ASI को दिए जाएंगे, ताकि उनकी लेजर स्कैनिंग की जा सके और टूटफूट की मरम्मत हो सके.
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