– प्रहलाद सबनानी
भारत जो किसी वक्त में सोने की चिड़िया रहा है जिसका किसी वक्त में वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान रहा है, उस भारत के गुलाम होने के बाद उसकी अर्थव्यवस्था को मुगलों ने एवं अंग्रेजों ने तहस-नहस किया है। भारत का सनातन चिंतन जितना अधिक शक्तिशाली था गुलामी के उस दौर में उस पर किए गए आक्रमण उसे कमजोर बनाने में कामयाब रहे। परंतु, अब समय आ गया है कि भारत के प्राचीन आर्थिक चिंतन को गंभीरता के साथ देखते हुए वर्तमान आर्थिक विकास की दृष्टि को उसके साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए तभी जाकर आर्थिक विकास की दृष्टि से भारत के वैभवकाल को पुनः प्राप्त किया जा सकेगा।
भारत में प्राचीन ऋषियों और मनीषियों की परंपरा एक गृहस्थ परंपरा रही है और उस गृहस्थ परंपरा में आध्यात्म के साथ-साथ सामाजिक,राजनीतिक एवं आर्थिक चिंतन भी जुड़ा रहा है। अपने राज्य के ऋषियों के जीवन यापन की चिंता जहां राजा की प्राथमिकता में रहता था वहीं राजा को राज्य चलाने के लिए उचित मार्गदर्शन देने का सांस्कृतिक कार्य उन ऋषि-मुनियों द्वारा किया जाता था। इसलिए उन मनीषियों का चिंतन आर्थिक दिशा में भी सदैव बना रहता था। राजा अपने राज्य का विस्तार करने के साथ-साथ उसे आर्थिक रूप से और अधिक समृद्ध कैसे बनाएं इसके बारे में ऋषि-मुनियों के साथ बैठकर ही राज दरबार में चिंतन होता था और राज्य आर्थिक रूप से सशक्त बन जाते थे। इसलिए भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था।
प्राचीन भारत में धार्मिक आयोजनों एवं धार्मिक पर्यटन का भारत के आर्थिक विकास पर पूर्ण प्रभाव रहा है। प्राचीन भारत में धार्मिक आयोजनों से अर्थव्यवस्था को बल मिलता रहा है इसलिए उस कालखंड में धार्मिक आयोजन निरंतर होते रहे हैं। भारत की ऋषि परंपरा ने जन सामान्य को उन सबके साथ जोड़ कर रखा था। त्यौहारों की निरंतरता और उन्हें मनाए जाने का उत्साह भारत की तत्कालीन अर्थव्यवस्था को गति देता रहा है। आज के वक्त में भी धार्मिक पर्यटन के चलते भारतीय पर्यटन उद्योग में रोजगार के नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। वर्तमान केंद्र सरकार के द्वारा भी पिछले 10 वर्षों में भारत में विभिन्न तीर्थस्थलों को विकसित किया जा रहा है। अभी तक जो तीर्थस्थल विकसित हो चुके हैं,वहां का पर्यटन एकदम से कई गुना बढ़ गया है। वहां की आर्थिक समृद्धि बढ़ गई है। वहां के लोगों का जीवन स्तर बढ़ गया है। वहां संपत्तियों के दाम बढ़ गए हैं। इसलिए इस दिशा में सरकार अब आगे और कार्य करने जा रही है तथा कई नवीन धार्मिक कारीडोर बनाने जा रही है,क्योंकि इससे रोजगार के लाखों नए अवसर उत्पन्न होंगे।
भारत की कुटुंब व्यवस्था अपने आप में एक अनूठी कुटुंब व्यवस्था है। भारत के संयुक्त परिवार विश्व के लिए आश्चर्य का विषय रहे हैं। इन दिनों संयुक्त परिवार विघटित अवश्य होते जा रहे हैं,लेकिन बावजूद उसके आपातकाल में एक दूसरे के लिए सबके एकत्र होने की जो जिजीविषा उन सबके भीतर है वह भारत में कुटुंब व्यवस्था का अनूठा स्वरूप है, तथा यह स्वरूप देश की अर्थव्यवस्था को भी आगे बढ़ाने का काम करता है। एक परिवार में दो हाथ कमाने जाते हों और वहीं दस हाथ कमाने जाते हों, दोनों बातों का फर्क होता है। इसलिए कुटुंब व्यवस्था में एक दूसरे के लिए आपस में खड़े होने का जो व्यवहार होता है,वह व्यवहार आर्थिक चिंतन के साथ भी जुड़ कर परिवार को आगे बढ़ाने का काम करता है।
भारत में प्राचीन काल से पर्यावरण को पर्याप्त महत्व दिया जाता रहा है। देश में नदियां शुद्ध रहती थी वृक्ष घने जंगलों के रूप में रहते थे और पूरा पर्यावरण शुद्ध रहता था। पूरे विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर नदियों को,वृक्षों को,धरती को पूजा जाता है। पूरे पर्यावरण से परिवार का जुड़ाव धार्मिक रूप से रहता है। बहुत सारे व्रत और त्यौहार पर्यावरण से जुड़े हुए रहते हैं। इसलिए सनातन काल से भारत में पर्यावरण की चिंता रही है। जैविक विविधता ने भी भारत के सनातन काल को समृद्ध किया। पर्यावरण संरक्षण को उस समय में नैतिक कर्तव्य माना गया है। बाद में जब मुगलों ने भारत में शासन किया और हिंदुओं का धर्मांतरण किया तो बहुत सारी परंपराएं भी खंडित होने लगी।
सनातन काल में जिस गौ माता को पूजा जाता था मुस्लिम उस गौ माता को खाने लगे। मुस्लिम शासन काल भारत के पतन और विखंडन का समय था। उनके बाद जब इस देश में अंग्रेज आ गए तो उनकी निगाह में भारतीय अपरिपक्व और मूर्ख रहे इन दोनों के समय में, मुगलों ने और अंग्रेजों न भारत को दोनों हाथों से लूटकर खाली कर दिया। जो भारतीय अर्थव्यवस्था कभी विश्व की अर्थव्यवस्था का 33 प्रतिशत हिस्सा थी वह बहुत नीचे जा चुकी थी। पर्यावरण बिखरने लगा। नालंदा जैसे विश्वविद्यालय को नुकसान पहुंचाया गया। उसकी लाइब्रेरी को जला दिया गया। इस सब के पीछे भारत को ज्ञान के स्तर पर समाप्त करने की साजिश काम कर रही थी।
मुस्लिम शासक हिंदुओं के धर्मांतरण पर, हिंदुओं को मारने पर और उनकी संपत्ति हड़पने पर काम कर रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ब्राह्मणों को मारकर रोज सवा मन जनेऊ जलाता था। मंदिरों को नष्ट कर उन पर मस्जिदें बना दी गई। दक्षिण ने अपने आपको इस मुस्लिम आक्रमण से बहुत बचाया और इसीलिए भारत के दक्षिण भाग में आज भी समृद्ध मंदिर हैं,जो उस कालखंड के गौरव की प्रस्तुति के रूप में हमारे सामने खड़े हुए हैं। इसी कालखंड में भारत का भक्ति काल जरूर समृद्ध हुआ और उसने भारत के निवासियों को मानसिक ताकत प्रदान की। तुलसीदास की भक्ति के सामने अकबर जैसा आदमी डर गया और झुक गया।
भारत की आजादी की लड़ाई तो सफलतापूर्वक लड़ी गई परंतु एक दुष्परिणाम भारत विभाजन के रूप में भी सामने आया,जिसमे लाखों हिंदुओं का नरसंहार हुआ। आजादी के 70 वर्ष में भारत की वह आर्थिक उन्नति नहीं हो पाई जैसी कि अपेक्षा की गई थी। वर्ष 2014 में केंद्र में एक मजबूत सरकार ने शासन को संभाला। कठोर आर्थिक निर्णय लिए। जनता का भी उन्हें साथ मिला तथा लगभग 10 वर्ष के कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हो गई। वर्तमान सरकार के समक्ष बहुत बड़ी बड़ी चुनौतियां हैं और आज भारत, बहुत सी विदेशी ताकतों एवं उनके षड्यंत्रों के साथ जूझ रहा है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि जो संकल्प लेकर भारतीय परम्पराओं के अनुरूप सरकार काम कर रही है, उसमें भारत की अर्थव्यवस्था शीघ्र ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी।
यह इस अर्थव्यवस्था की ताकत है कि कोरोना खंडकाल में भारत ने अपने 80 करोड़ गरीब लोगों को निशुल्क अन्न उपलब्ध कराया तथा कोरोना की वैक्सीन भी समस्त नागरिकों को निशुल्क उपलब्ध कराई गई। भारत अब न सिर्फ सड़क निर्माण के क्षेत्र में बड़ा काम कर रहा है, अपितु वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है। साफ सफाई, गरीबों के लिए मकान, गरीबों के लिए शौचालय जैसे छोटे-छोटे विषय भी सरकार की प्राथमिकता में हैं। सरकार किसानों का ध्यान रख रही है, किसानों को समृद्ध बना रही है और उद्योगों को भी नई दिशा प्रदान कर रही है, नए संसाधन प्रदान कर रही है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत है कि जब विश्व के अन्य देशों में मंदी की स्थिति बन रही है और वहां की अर्थव्यवस्था नीचे की ओर जा रही है तब भारत की अर्थव्यवस्था दिन-ब-दिन समृद्ध होती जा रही है।
देश में कुटीर एवं लघु उद्योग के गौरवशाली दिन वापिस लाने हेतु निरंतर कई प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार ने सहकारिता मंत्रालय का गठन कर देश में सहकारिता आंदोलन को सफल होने का रास्ता खोला है। भारत के आर्थिक विकास में विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संस्थानों का भी बहुत बड़ा योगदान होने लगा है। बहुत सारे धार्मिक संस्थान बड़े-बड़े अस्पताल खोलकर सेवा का कार्य कर रहे हैं। समाज के विभिन्न वर्गों के द्वारा इलाज की बहुत सारी सुविधाएं देश में कई अस्पतालों में मुफ्त में प्रदान की जा रही है। सरकार ने भी एम्स के माध्यम से चिकित्सा सुविधाएं सारे देश में उपलब्ध करवाने का काम किया है। विभिन्न सामाजिक संगठन भी अपना योगदान समाज की सेवा के साथ देश की अर्थव्यवस्था के विकास में प्रदान कर रहे हैं।
भारत का योग सारे विश्व के लिए मार्गदर्शक हो गया है और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत के साथ अन्य राष्ट्र भी उन्नति करते जा रहे हैं। भारतीय नागरिक विदेशों में जाकर झंडे गाड़ रहे हैं। अमेरिका की अर्थव्यवस्था में भारतीयों का बहुत बड़ा योगदान है। प्रवासी भारतीय कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारतीयों का डंका आज पूरे विश्व में बज रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में प्रवासी भारतीय भी अपना योगदान कर रहे हैं। विश्व के कई देशों में भारतीय मूल के नागरिकों की बढ़ती संख्या एवं भारतीय सनातन दर्शन का प्रसार विदेशों में हो रहा है। भारत की तरह वहां पर भी मंदिरों का निर्माण हो रहा है। भारत की साधना पद्धति वहां स्वीकार की जाने लगी है।
(लेखक, आर्थिक मामलों के जानकार एवं वरिष्ठ स्तम्भकार हैं।)
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